खेती बाड़ी-कलम स्याही: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले किसान की डायरी

यादव और मुस्लिम मतदाताओं के प्रभुत्व वाला अररिया जिले के नरपतगंज का इलाका अपने लिए एक सैंपल की तरह है। यहां कुल 3 लाख 78 हजार मतदाता हैं, जिसमें 92 हजार मुस्लिम और 86 हजार से कुछ अधिक यादव मतदाता हैं।

Narpatganj

Photograph: (AI Image/Grok)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब बिहार में रोड शो कर रहे थे और फिर दूसरे दिन जनसभा को संबोधित करने में जुटे थे, ठीक उसी वक्त राज्य के सीमांत जिले के कुछ इलाकों में बेमौसम बारिश के कारण मक्का की फसल को समेटने वाले किसान भारी नुकसान की कहानी सुना रहे थे। लेकिन राजनीति का व्याकरण किसानों की व्यथा कथा से दूर ही रहना मुनासिब समझता है। ऐसे में किसानी कर रहे हम जैसे लोग अपना काम-धाम पूरा करने के बाद अपनी डायरी लिखने में जुट जाते हैं।

दरअसल देश में जब भी और जहां भी चुनाव होते हैं तो अपनी नजर सबसे पहले पंचायत स्तर पर ठहर जाती है। अभी कुछ महीने बाद बिहार में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और मैं राज्य के सीमांत जिलों में बिखरे विधानसभा क्षेत्रों को पढ़ने समझने में लगा हूं। इन इलाकों में विधायकों और उनके क्षेत्रों को घूमते हुए अक्सर वार्ड सदस्य, जिला पार्षद, मुखिया जैसे ग्राउंड प्लेयर्स से गुफ्तगू करने लगता हूं। राजनीति में कॉरपोरेट कल्चर आने के बाद भले ही प्रचार-प्रसार या कहें पॉलिटिकल पीआर एजेंसियां चुनावी गुणा भाग करने लगी रहती है लेकिन आज भी ग्राउंड की सच्चाई जानने के लिए किसी भी विधानसभा क्षेत्र के हर एक वार्ड तक आपको पहुंचना ही पड़ेगा।

हाल ही में जब अररिया जिला के नक्शे में बंटे विधानसभा क्षेत्रों को देखने निकला तो अपनी गाड़ी रूक गई नरपतगंज विधानसभा में। बेस्वादी होती राजनीति के बीच स्वाद खोजने में जुटे हम जैसे लोग चुनाव के दौरान यात्रा और बातचीत को अहमियत देते हैं।

यादव और मुस्लिम मतदाताओं का प्रभुत्व

यादव और मुस्लिम मतदाताओं के प्रभुत्व वाला यह इलाका अपने लिए एक सैंपल की तरह है। यहां कुल 3 लाख 78 हजार मतदाता हैं, जिसमें 92 हजार मुस्लिम और 86 हजार से कुछ अधिक यादव मतदाता हैं। इस आंकड़े से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि यहां की ‘पॉलिटिक्स’ कैसी होगी।

फिलहाल यहां से एक रिटायर्ड पुलिसकर्मी जय प्रकाश यादव भाजपा कोटे से विधायक हैं। 2014 में जय प्रकाश यादव भाजपा में शामिल हुए और 2020 में उन्हें पार्टी ने टिकट दिया। सीमांत जिले में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की पृष्ठभूमि के बिना जय प्रकाश यादव को भाजपा ने अपना निशान देकर चुनाव में उतारा था। इसकी भी अलग ही कहानी है। उन्होंने 2020 विधानसभा चुनाव में 30 हजार से अधिक के अंतर से जीत दर्ज की। जय प्रकाश यादव ने राजद के उम्मीदवार को हराने का काम किया। राजद ने भी यादव समुदाय से आने वाले को अनिल कुमार यादव को टिकट दिया था।

अररिया जिले की नरपतगंज विधानसभा सीट कई मायने में महत्वपूर्ण है। यहां कुल 14 बार चुनाव हुए हैं, जिनमें 13 बार यादव उम्मीदवार ने ही जीत दर्ज की है। 2009 के परिसीमन के बाद इस विधानसभा क्षेत्र का भूगोल बदल गया। इस विधानसभा क्षेत्र में अभी नरपतगंज प्रखंड की सभी 29 पंचायत व भरगामा प्रखंड की 15 पंचायत शामिल हैं। यह सुपौल जिले से सटा विधानसभा क्षेत्र है। 1962 में अस्तित्व में आने के बाद यहां से पहला विधायक बनने का सौभाग्य कांग्रेस के डूमरलाल बैठा को प्राप्त हुआ। खास बात यह कि पहले चुनाव में यह क्षेत्र सुरक्षित था, लेकिन इसके बाद यह सीट सामान्य हो गई।

इस सीट पर पहली बार वोटिंग 1962 में हुई। 1972 तक इस सीट पर कांग्रेस का ही कब्जा रहा। 2005 और 2010 के चुनाव में यह सीट बीजेपी के खाते में गई। 2010 के चुनाव में बीजेपी के देवंती यादव ने आरजेडी के अनिल कुमार यादव को हराया था। लेकिन 2015 के चुनाव में अनिल कुमार यादव विजयी रहे। 2020 में नरपतगंज सीट पर सीधी लड़ाई बीजेपी और आरजेडी के बीच रही। बीजेपी के जय प्रकाश यादव ने आरजेडी के अनिल कुमार यादव को पटखनी दी।

इन सब आंकड़ों से इतर जब हमने इस विधानसभा क्षेत्र के अलग अलग पंचायतों की यात्रा शुरु की तो लगा कि जाति और धर्म को लेकर ही इस इलाके में मतदाताओं की गोलबंदी है। खासकर यादव समुदाय और मुस्लिम। बिहार की राजनीति के हिसाब से लालू यादव की पार्टी एक समय में मुस्लिम और यादव को अपना वोट बैंक मानती थी लेकिन धीरे-धीरे इस समीकरण में भाजपा ने भी सेंध लगाने की कोशिश की। नरपतगंज विधानसभा क्षेत्र इस तथ्य का सबसे मजबूत उदाहरण है।

संत महर्षि मेंही के अनुनायियों का भी खास प्रभाव

इस इलाके की राजनीति में संत महर्षि मेंही के अनुनायियों का भी खास प्रभाव रहा है। वर्तमान विधायक तो उन्हीं के अनुनायी हैं, जिसे यहां संत मत कह जाता है। खासकर यादव टोलों में तो आपको महर्षि मेंही का आश्रम मिल ही जाएगा। कई आश्रमों को नजदीक से देखते हुए और स्थानीय लोगों से बातचीत के आधार पर यह कहा जा सकता है कि महर्षि मेंही के अनुनायी स्थानीय विधायक का समर्थन कर रहे हैं। इसके पीछे एक तार विधायक के परिवार से भी जुड़ा है। उनके बड़े भाई महर्षि मेंही के केवल अनुनायी ही नहीं बल्कि वे उनके मुख्य आश्रम जो भागलपुर स्थित कुप्पा घाट में है, वहां रहते हैं। उन्होंने शादी नहीं की है और संत मत का प्रचार करते हैं।

संत मत के प्रचार प्रसार वाले इस इलाके में हमने राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की नब्ज को भी टटोलने की कोशिश की। नरपतगंज बाजार में हमारी मुलाकात डॉ. मनोज साह से होती है। पेशे से चिकित्सक मनोज जी इलाके में संघ की गतिविधियों के प्रचार प्रसार से जुड़े हैं। उन्होंने बताया कि इस विधानसभा क्षेत्र में संघ सक्रिय है और शाखाएं भी लगती हैं। हाल ही में प्रांत प्रचारक भी नरपतगंज आए थे। भाजपा विधायक को लेकर उन्होंने कहा- “हालांकि वे सुलभ हैं, क्षेत्र में आसानी से उपलब्ध हैं लेकिन यह भी सच है कि कुछ शिकायतें भी हैं। संघ में उनका विरोध है क्योंकि वे स्वंयसेवक विधायक नहीं हैं।”

मनोज की बातों को सुनते हुए लगा कि जहां एक ओर संघ के लोग उनसे नाराज हैं तो वहीं दूसरी ओर इसी के समानांतर महर्षि मेंही के अनुनायी उनके साथ हैं। दरअसल धर्म के एक सिरे को वे संतमत के जरिए थामे हुए हैं। शायद इसी का बैलेंस लेकर वे राजनीति कर रहे हैं।

फुलकाहा और घुरना बाजार

इसी विधानसभा क्षेत्र का एक इलाका है – फुलकाहा बाजार। हम जब वहां गए तो ग्राउंड में भाजपा और जदयू के गठबंधन को लेकर बातचीत सुनने को मिली। यह एक समृद्ध बाजार है। नेपाल सीमा से सटा यह इलाका हर साल बाढ़ का सामना करता है। फुलकाहा को प्रखंड बनाने की मांग स्थानीय व्यवसायी करते आए हैं। यहां राष्ट्रीय जनता दल भी मजबूत स्थिति में है।

इसी विधानसभा क्षेत्र में आता है घुरना बाजार। यह नेपाल सीमा से काफी नजदीक है। बॉर्डर रोड पर स्थित यह इलाका मुस्लिम आबादी से घिरी है। यहां की समस्या धर्म और बाजार से संबंधित है। यहां के लोग एक ओर जहां भाजपा विधायक को अपना समर्थन देते दिखे तो वहीं अररिया के भाजपा कोटे के सांसद प्रदीप सिंह के खिलाफ दिखे। राजनीति का यह रूप दरअसल विधानसभा और लोकसभा चुनाव के मूड को दर्शाता है।

राजद को इस विधनसभा क्षेत्र में कमजोर नहीं आंका जाना चाहिए और दूसरी तरफ प्रशांत किशोर की पार्टी जनसुराज का झंडा भी इस इलाके में खूब दिखने को मिला। मामला उधर भी कमजोर नहीं है क्योंकि राजद और भाजपा के असंतुष्ट खेमे की नजर प्रशांत किशोर की राजनीति पर है। बाद बांकी परिणाम तो समय ही बताएगा।

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