राज की बातः अब्दुल गफूर जिनके अधीन दो पूर्व मुख्यमंत्री काम करते थे

गफूर साहब को एक निर्भीक, कड़क और नो नॉनसेंस मुख्यमंत्री के रूप में याद किया जाता है। वे ऐसे सीएम थे जिनसे मिलना बहुत ही आसान था। इनके 4 के जी एवेन्यू स्थित सरकारी आवास में बिना अपॉइंटमेंट के आप मिल सकते थे।

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Photograph: (इंस्टाग्राम)

1975 में आपातकाल की घोषणा से कुछ सप्ताह पहले तक अब्दुल गफूर बिहार के मुख्यमंत्री थे। 11 मार्च तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे अब्दुल गफूर ऐसे मुख्यमंत्री थे जिनकी कैबिनेट में दो पूर्व मुख्यमंत्री- केदार पांडेय और दरोगा प्रसाद राय- मंत्री के रूप में काम करते थे। गफूर साहब जो बिहार विधान परिषद के सभापति भी रह चुके थे, को इंदिरा गांधी ने दरोगा प्रसाद राय की जगह मुख्यमंत्री बनाया था और पहले केदार पांडेय की जगह दरोगा राय को।

गफूर और राय दोनों को इंदिरा गांधी ने दिल्ली बुलाया था। दोनों नेता एक साथ इंडियन एयरलाइंस की जहाज से पटना लौटे। हवाई अड्डे पर भावी मुख्यमंत्री हाथ में एक न्यूजपेपर लिए अकेले ही निकले,कोई स्वागत नहीं। वहीं, निवर्तमान मुख्यमंत्री के सैकड़ों समर्थक दरोगा प्रसाद राय के समर्थन में नारा लगा रहे थे। इनमें युवा छात्र नेता लालू प्रसाद यादव भी थे,जो अगले साल ही गफूर साहब के खिलाफ छात्र आंदोलन का नेतृत्व करने वाले थे।

गफूर साहब को एक निर्भीक, कड़क और नो नॉनसेंस मुख्यमंत्री के रूप में याद किया जाता है। वे ऐसे सीएम थे जिनसे मिलना बहुत ही आसान था। इनके 4 के जी एवेन्यू स्थित सरकारी आवास में बिना अपॉइंटमेंट के आप मिल सकते थे। कई बार लोग सीढ़ियों पर चढ़ते समय उन्हें वहीं मिल जाते।

गफूर साहब को शाम में अपनी 52 नंबर की उजली रंग की फिएट कार को शहर के पश्चिम कोने में बैले रोड पर खुद ड्राइव करते हुए देखा जा सकता था। सिक्योरिटी के नाम पर एक सिपाही भी नहीं रहता था, न कोई पायलट कार। सीएम हाउस में भी नहीं।

उनके काम करने का तरीका ट्रांसपेरेंट होता। उनके सचिवालय में भी अफसरों की फौज नहीं होती थी। वसंत कुमार दुबे उनके सचिवालय के मुखिया होते थे। मुख्यमंत्री के पास एक सामान्य नागरिक ने एक आवेदन दिया,जिस पर मुख्य मंत्री ने अंग्रेजी में आदेश दिया,विभागीय अधिकारी को, There was a  similar case of Chapra,what can be done about this"?  आशय साफ था कि छपरा के मामले में जो निर्णय लिया है,ऐसा ही निर्णय इस मामले में भी लेना है।

गफूर साहब को छात्र संघर्ष समिति के हिंसक हुए आंदोलन का भी सामना करना पड़ा। पूरे बिहार में आगजनी,पुलिस फायरिंग हो रही थी। सरकार परेशान थी क्योंकि आंदोलनकारी मुख्यमंत्री के इस्तीफे की मांग कर रहे थे। गफूर साहब ने कड़े शब्दों में बिहार विधान सभा में कहा, "सरकार के हाथ लंबे होते हैं, कानून से कोई नहीं बच सकता"। डिफेंस ऑफ इंडिया रूल्स के तहत सैकड़ों लोग गिरफ्तार हुए।  

एक दिन उन्होंने एक आदेश खुद बफ शीट पर लिखकर सूचना और जनसंपर्क निर्देशक को भेजा था जो किसी तरह जयप्रकाश नारायण के पास पहुंच गया। जिसमें लिखा था, "The Searchlight is hell bent upon publishing false and concocted stories, it should be delisted at once and the order shall be implemented effectively." सर्चलाइट एक अंग्रेजी दैनिक था जिसे जन संपर्क विभाग के सूची से हटाने का निर्देश था। जेपी के कहने पर विपक्ष के नेताओं ने एक मेमोरेंडम तत्कालीन राज्यपाल आर डी भंडारे को दिया और सरकार से इस आदेश को वापस लेने की मांग की।

जॉर्ज फर्नांडिस के नेतृत्व में शुरू रेलवे कर्मचारियों के हड़ताल के चलते, बिहार की कोयला खदानों से कोयला निर्यात करना मुश्किल हो गया था। प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्री को पत्र लिख कर ट्रकों से कोयला परिवहन का निर्देश दिया। एक न्यूज एजेंसी की छोटी सी रिपोर्ट थी कि पीएम ने सीएम को ट्रैकों की व्यस्था करने को कहा है। मैंने मुख्यमंत्री आवास में शाम में फोन लगाया और अपने परिचय देने के साथ पूछा" कितने ट्रक की व्यस्था हो गई है? फोन खुद गफूर साहब ने उठाया था। उनका जवाब था- ट्रक का इंतजाम करना मुख्यमंत्री का काम है क्या? मैने कहा, लेकिन प्रधानमंत्री जी ने आपको लेटर उसी के लिए भेजा है। गफूर साहेब बोले, "लेटर आया होगा, मैने ट्रांसपोर्ट कमिश्नर को भेज दिया होगा।"

उस समय मुख्यमंत्री खुद फोन उठाते थे। यह परंपरा जगन्नाथ मिश्र जो 11 मार्च 1975 को उनकी जगह मुख्यमंत्री बने,  के समय तक जारी रही।

गफूर साहब के मुख्यमंत्री काल में रेल मंत्री ललित नारायण मिश्र की हत्या हो गई थी। उनके पैतृक ग्राम बलुआ बाजार में अंतिम संस्कार हो रहा था। पटना से विशेष ट्रेन से पत्रकारों को भी ले जाया गया था। प्रधानमंत्री भी उस अवसर पर उपस्थित थीं। अंग्रेजी दैनिक के दो पत्रकारों ने मुख्यमंत्री से निवेदन किया, "हमलोग बिहार के बाहर के प्रतिनिधि हैं। रिपोर्ट जल्दी फाइल करना है। जब तक फ्यूनरल चल रहा है,स्टेट प्लेन से हमलोगों को पटना पहुंचा दीजिए।" मुख्यमंत्री ने बताया कि अभी तो प्रधानमंत्री जी भी नहीं निकली है,और आप लोगों को जल्दी है।" पत्रकारों ने जब फिर जल्दी भिजवाने का अनुरोध किया तब, मुख्यमंत्री ने अपने पायजामा पर हाथ रखा और कहा, "इतनी जल्दबाजी है, तब ईसी पर बैठ जाए।"

ललित बाबू की हत्या के बाद गफूर साहब के खिलाफ पार्टी के कुछ नेताओं ने इंदिरा गांधी के पास इन्हें हटाने के अभियान चलाया। मिश्र समर्थक एक विधायक ने विधान मंडल में बताते हुए कहानी बताई, "कल दिल्ली में दीदी से मिले। उन्होंने पूछा आप लोग गफूर साहब को क्यों हटाना चाहते हैं। हमनेजवाब दिया, "हमलोग आपको दीदी बोलते हैं और वे हमलोगों को बहन लगा कर गाली देते हैं।"परिवर्तन हुआ और डॉ जगन्नाथ मिश्र ने मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान हुए।

गफूर साहब छज्जूबाग स्थित सरकारी आवास में शिफ्ट हो गए। पूर्व मुख्यमंत्री प्रतिदिन शाम फ्रेजर रोड स्थित एक न्यूज एजेंसी में आते, चाय का दौर चलता और अपने पुराने मित्र- मंटू दादा जो ब्यूरो चीफ थे,के साथ गप करते। उन्होंने ही दादा को विधान परिषद का सदस्य मनोनीत करवाया था 

कालांतर में गफूर साहब केंद्र सरकार में नगर विकास और आवास मंत्री भी बने। कांग्रेस छोड़ कर नीतीश कुमार की समता पार्टी से लोकसभा सदस्य भी बने।

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