शनिवार को बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने पटना में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में आरोप लगाया कि बिहार के विश्वविद्यालय अराजक तत्वों के हाथों सौंप दिए गए हैं।
पटना के प्रतिष्ठित बिहार नेशनल कॉलेज में हुए बम विस्फोट में एक विद्यार्थी की मृत्यु से आहत कुलाधिपति ने दुख व्यक्त करते हुए कहा कि पटना विश्वविद्यालय के कुलपति चार महीने बाद भी इसी तरह की एक अन्य घटना की रिपोर्ट राजभवन को नहीं सौंप सके हैं।
45 साल पहले जब जगन्नाथ कौशल चंडीगढ़ से बिहार के राज्यपाल बनकर आए थे, तब उनके बच्चों ने भी पटना विश्वविद्यालय में नामांकन कराया था। उसी विवादास्पद बिहार नेशनल कॉलेज में एक कार्यक्रम के दौरान कॉमन रूम का उद्घाटन करते हुए उन्होंने कहा था, "यदि मेरा वश चले तो मैं राज्य के सभी विश्वविद्यालयों को बंद कर दूं, ताला लगा दूं।" आज की स्थिति भी कुछ अलग नहीं है।
भ्रष्टाचार में डूबे बिहार के कई विश्वविद्यालय
हाल के वर्षों में राज्य के लगभग सभी विश्वविद्यालय पूरी तरह से भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं। राज्य के बाहर के लोग शायद इस पर विश्वास न करें, लेकिन यहां एक ही विश्वविद्यालय के कुलपति, प्रति-कुलपति, रजिस्ट्रार और 20 प्राचार्य भ्रष्टाचार के आरोप में जेल भेजे जा चुके हैं। मगध विश्वविद्यालय के कुलपति राजेंद्र प्रसाद के आवास से निगरानी विभाग ने तीन करोड़ रुपये नकद बरामद किए थे। इसी विश्वविद्यालय के तीन अन्य कुलपति – प्रो. अरुण कुमार, प्रो. फहीमुद्दीन अहमद और प्रो. बी.एन. रावत – भी जेल भेजे गए।
वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय, बिहार विश्वविद्यालय, मिथिला विश्वविद्यालय और कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति भी जेल गए हैं।
एक कुलपति पर आरोप है कि एक ‘अति महत्वपूर्ण व्यक्ति’ की पत्नी ने उनके विश्वविद्यालय से एम.ए. की परीक्षा दी, आठ विषयों में से केवल एक में उपस्थित हुईं, बाकी सात में अनुपस्थित रहीं, फिर भी प्रथम श्रेणी में पास कर दी गईं।
राज्य में दो कुलपतियों पर उनकी ही महिला शिक्षकों ने यौन शोषण के आरोप लगाए हैं। पिछले महीने पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय के कुल सचिव ने राज्यपाल से लिखित शिकायत की और थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई कि उन्हें अपने ही कुलपति से जान का खतरा है।
लालू के सत्ता में आने के बाद से विश्वविद्यालयों की तेजी से बिगड़ी स्थिति
1990 के बाद जब लालू प्रसाद यादव मुख्यमंत्री बने, बिहार के विश्वविद्यालयों की स्थिति तेजी से बिगड़ गई। कुलपतियों की नियुक्ति में मेरिट की सबसे बड़ी क्षति हुई, और जातीय आधार पर नियुक्तियों की परंपरा शुरू हुई। विश्वविद्यालयों को विभिन्न जातियों के नाम पर "डिस्ट्रिब्यूट" कर कुलपति बनाए जाने लगे। राजभवन की जगह आर्य कुमार रोड की एक गली में राष्ट्रीय जनता दल के नेता रंजन प्रसाद यादव के घर कुलपतियों की बैठक होने लगी। यहीं पर उच्च शिक्षा विभाग के निदेशक और इंटरमीडिएट काउंसिल के अध्यक्ष भी बैठने लगे। यहीं नीतिगत फैसले लिए जाने लगे, यहां तक कि शिक्षकों के प्रोमोशन और डिमोशन के फैसले भी वहीं होते थे।
तत्कालीन राज्यपाल मोहम्मद शफी कुरैशी, जो चांसलर भी थे, ने एक बार कहा था, "अब तो रंजन यादव सुपर चांसलर हो गए हैं।" एक कुलपति, जो दिल्ली-पटना राजधानी एक्सप्रेस से नेता जी के साथ सफर कर रहे थे, उनके साथ नेता जी का परिवार भी था। बच्चे ने कोच में शौच कर दिया, और कुलपति ने अपने हाथों से सफाई की।
पहले जब शारंगधर सिंह, के.के. दत्त, सचिन दत्त और महेन्द्र प्रताप जैसे विद्वान कुलपति होते थे, वे शिक्षा मंत्री के यहां भी नहीं जाते थे। स्वयं मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह पटना विश्वविद्यालय के कुलपति से सलाह लेने उनके घर जाते थे। 1977 तक पटना विश्वविद्यालय के कुलपति का आधिकारिक आवास गांधी मैदान के दक्षिण कोने पर था, जहां अब मौर्य होटल है।
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री डॉ. केदारनाथ प्रसाद, जो इंडियन एजुकेशन सर्विस के अधिकारी थे, ने मुख्य सचिव को लिखित आपत्ति दी थी कि उनकी अनुमति के बिना पटना कॉलेज में डीएम ने पुलिस भेज दी। उन्होंने कहा था कि वे प्रमंडल के आयुक्त से भी वरिष्ठ हैं।
जब पटना के डीएम ने राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय में परीक्षा पर रोक लगाई, तो कुलपति अतर देव सिंह ने विरोध करते हुए परीक्षा का आयोजन कराया। वे भी इंडियन एजुकेशन सर्विस के अधिकारी थे।
यदि आज विश्वविद्यालयों की स्थिति खराब है, तो उसके लिए राज्यपाल भी जिम्मेदार हैं। पिछले 15 वर्षों में बिहार में कुछ ऐसे राज्यपाल भी आए, जिन पर खुले तौर पर यह आरोप लगे कि उनके करीबियों ने दो-दो करोड़ रुपये में कुलपति पद बेचे। एक बार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राजभवन द्वारा नियुक्त छह कुलपतियों की नियुक्ति को रोक दिया था।
वर्तमान में सत्ता पक्ष के अनुषांगिक संगठनों द्वारा भेजे गए नामों पर नियुक्तियाँ हो रही हैं। एक कुलपति ने दावा किया कि उनका नाम “हाई कमान” से भेजा गया था।
जब हम विद्यार्थी थे, तब कुलपति भी लेक्चर लेने आते थे। मुझे स्मरण है कि सचिन दत्त, जो केंद्र में वित्त सचिव थे, सेवानिवृत्त होकर पटना विश्वविद्यालय के कुलपति बने और पटना कॉलेज के बी.ए. लेक्चर थिएटर में इकोनॉमिक्स पढ़ाने आते थे। महेन्द्र प्रताप, जो कैम्ब्रिज से पीएचडी थे, अंग्रेजी का क्लास लेते थे। जॉर्ज जैकब और ए.के. धान, जो यूपीएससी के अध्यक्ष रहे थे, कुलपति रहते हुए भी कक्षाएं लेते थे।
अब यदि राज्यपाल को पीड़ा हो रही है, रोना आता है, तो उन्होंने ऐलान कर दिया है – "अब राजभवन में नहीं, कॉलेज में ही बैठकें होंगी।"