स्टॉकहोमः रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज ने सोमवार को तीन अमेरिकी अर्थशास्त्रियों, डेरॉन ऐसमोग्लू, साइमन जॉनसन और जेम्स ए. रॉबिन्सन, को इस वर्ष के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया। इन अर्थशास्त्रियों ने यह स्पष्ट किया है कि देशों के बीच समृद्धि में इतना बड़ा अंतर क्यों है और क्यों कुछ देश अमीर हैं जबकि अन्य गरीब।
डेरॉन ऐसमोग्लू और साइमन जॉनसन (मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी) तथा जेम्स ए. रॉबिन्सन (शिकागो विश्वविद्यालय) सामाजिक संस्थाओं के महत्व पर जोर देते हैं, जो एक देश की समृद्धि निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
अकादमी ने बताया कि उपनिवेशों में कुछ क्षेत्रों में स्वदेशी आबादी का शोषण किया गया, जबकि अन्य में समावेशी राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था का निर्माण किया गया। इस कारण पूर्व उपनिवेश, जो कभी समृद्ध थे, अब गरीब हो गए हैं और जो गरीब थे, वे अमीर हो गए हैं।
इन अर्थशास्त्रियों का मानना है कि राजनीतिक व्यवस्था में सुधारों का वादा करते समय अभिजात वर्ग के नियंत्रण को बनाए रखना एक बड़ी चुनौती है। जब सत्ता में बैठे लोग आर्थिक सुधारों का वादा करते हैं, तब लोगों का विश्वास इस बात पर निर्भर करता है कि क्या वे पुराने शासन की ओर लौटेंगे या नहीं।
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The Royal Swedish Academy of Sciences has decided to award the 2024 Sveriges Riksbank Prize in Economic Sciences in Memory of Alfred Nobel to Daron Acemoglu, Simon Johnson and James A. Robinson “for studies of how institutions are formed and affect prosperity.”… pic.twitter.com/tuwIIgk393— The Nobel Prize (@NobelPrize) October 14, 2024
अकादमी के अध्यक्ष जैकब स्वेन्सन ने कहा, “देशों के बीच आय में भारी अंतर को कम करना हमारे समय की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है।” उन्होंने कहा कि विजेताओं ने सामाजिक संस्थाओं के महत्व को बताया है, जिनका विकास पर सीधा प्रभाव पड़ता है।
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इन शोधकर्ताओं ने यह भी इंगित किया है कि लोकतंत्र और सही संस्थाओं का निर्माण निवेश को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक है। यदि संस्थाएं मजबूत हैं और कानून का शासन प्रभावी है, तो विकास की प्रक्रिया सुनिश्चित होती है। इस संदर्भ में, भारत के विकास का उदाहरण दिया जा सकता है, जहां सरकार ने व्यापार की सुगमता पर ध्यान केंद्रित किया है। इसके तहत उचित संस्थागत ढांचा और बुनियादी ढांचे का विकास किया गया है।
शोधकर्ताओं ने कहा कि जब तक राजनीतिक व्यवस्था यह गारंटी देती रहेगी कि अभिजात वर्ग नियंत्रण में रहेगा, तब तक कोई भी भविष्य के आर्थिक सुधारों के उनके वादों पर भरोसा नहीं करेगा। पुरस्कार विजेताओं के अनुसार यही कारण है कि कोई सुधार नहीं होता है।
हालांकि, सकारात्मक परिवर्तन के विश्वसनीय वादे करने में असमर्थता यह भी बता सकती है कि कभी-कभी लोकतंत्रीकरण क्यों होता है। अकादमी ने स्पष्ट किया, “जब क्रांति का खतरा होता है तो सत्ता में बैठे लोगों को दुविधा का सामना करना पड़ता है। वे सत्ता में बने रहना पसंद करेंगे और आर्थिक सुधारों का वादा करके जनता को खुश करने की कोशिश करेंगे, लेकिन लोगों को यह विश्वास नहीं होगा कि स्थिति सामान्य होते ही वे पुरानी व्यवस्था में वापस नहीं लौटेंगे।”