नई दिल्ली: नोबेल शांति पुरस्कार-2024 जापानी संगठन ‘निहोन हिडानक्यो’ को दिया गया है। जापानी संगठन को ये पुरस्कार ‘परमाणु हथियारों से मुक्त दुनिया हासिल करने के प्रयासों और लोगों के माध्यम से यह प्रदर्शित करने के लिए कि परमाणु हथियारों का दोबारा इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए’ के लिए दिया गया है।
नोबेल समिति की ओर से कहा गया, ‘निहोन हिडानक्यो ने हजारों प्रभावितों के विवरण उपलब्ध कराए हैं, प्रस्ताव और सार्वजनिक अपीलें जारी की हैं और दुनिया को परमाणु निरस्त्रीकरण की तत्काल आवश्यकता की याद दिलाने के लिए हर साल अपने प्रतिनिधिमंडल संयुक्त राष्ट्र और विभिन्न शांति सम्मेलन में भेजे हैं।’
‘निहोन हिडानक्यो’ हिरोशिमा और नागासाकी पर अगस्त 1945 में हुए परमाणु बम हमले में बचे लोगों का शुरू किया गया आंदोलन रहा है। नोबेल समिति ने अपनी प्रेस विज्ञप्ति में लिखा है, ‘मानव इतिहास के इस क्षण में हमें खुद को याद दिलाना जरूरी है कि परमाणु हथियार क्या हैं, दुनिया में अब तक देखा गया सबसे विनाशकारी हथियार।’
नोबेल समिति ने कहा कि दुनिया भर में व्यापक संघर्ष के बीच यह पुरस्कार ‘परमाणु निषेध’ के मानदंड को कायम रखने का प्रतीक है।
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The Norwegian Nobel Committee has decided to award the 2024 #NobelPeacePrize to the Japanese organisation Nihon Hidankyo. This grassroots movement of atomic bomb survivors from Hiroshima and Nagasaki, also known as Hibakusha, is receiving the peace prize for its… pic.twitter.com/YVXwnwVBQO— The Nobel Prize (@NobelPrize) October 11, 2024
इससे पहले पिछले साल ईरानी कार्यकर्ता नर्गेस मोहम्मदी को ‘ईरान में महिलाओं के उत्पीड़न के खिलाफ उनकी लड़ाई और सभी के लिए मानवाधिकारों और स्वतंत्रता को बढ़ावा देने की उनकी लड़ाई के लिए’ शांति के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
कई बार विवादों में रहा है नोबेल शांति पुरस्कार
चिकित्सा, भौतिकी और रसायन विज्ञान के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार आमतौर पर वैज्ञानिकों के शोध कार्य के प्रकाशित होने के कई वर्षों बाद प्रदान किए जाते हैं। दूसरी ओर शांति पुरस्कार कई वैश्विक राजनेताओं और ऐसे लोगों या संगठनों को भी दिए जाते रहे हैं, जिससे विवाद भी पैदा होता रहा है।
नोबेल शांति पुरस्कार कई कारणों से विवादास्पद रहे है। इसमें राजनीति की भी भूमिका रही है। कई लोगों ने पुरस्कार समिति पर राजनीति से प्रेरित होने का आरोप लगाया है। इसके अलावा इस पर ज्यादा यूरोप केंद्रित होने, अयोग्य लोगों को पुरस्कार देने जैसे विवाद भी हैं। कई नोबेल शांति पुरस्कार ऐसे रहे हैं जिसे लेकर आरोप लगे हैं कि यह किसी देश के राष्ट्रीय मामलों में ‘हस्तक्षेप’ की कोशिश है। कई ऐसे लोगों लोगों को नजरअंदाज किए जाने के भी आरोप हैं, जिन्हें ये पुरस्कार मिलना चाहिए था लेकिन नहीं दिया गया।
उदाहरण के तौर पर 1994 का पुरस्कार यासर अराफ़ात, शिमोन पेरेज और पूर्व इजराइली पीएम यित्जाक राबिन को ‘पश्चिम एशिया में शांति बनाने के उनके प्रयासों के लिए’ दिया गया। नोबेल समिति के सदस्य कोरे क्रिस्टियनसेन ने (फिलिस्तीन लिबरेनशन ऑर्गनाइजेशन (पीएलओ) के माध्यम से आतंकवाद को प्रायोजित करने का हवाला देते हुए और उन्हें ‘दुनिया का सबसे प्रमुख आतंकवादी’ बताया और विरोध में इस्तीफा दे दिया था।
ऐसे ही 2009 का पुरस्कार बराक ओबामा को दिया गया था जबकि उन्हें अमेरिकी राष्ट्रपति बने अभी 9 महीने ही हुए थे। ओबामा को ये पुरस्कार ‘अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति और लोगों के बीच सहयोग को मजबूत करने के उनके असाधारण प्रयासों के लिए’ दिया गया था।