नई दिल्लीः राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) बार एसोसिएशन ने एनजीटी की मुख्य और क्षेत्रीय पीठों में न्यायिक और विशेषज्ञ सदस्यों के रिक्त पदों को भरने के लिए सुप्रीम कोर्ट तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है। एनजीटी बार एसोसिएशन के इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।
एनजीटी बार एसोसिएशन द्वारा दायर की गई याचिका में कहा गया कि एनजीटी अधिनियम की धारा 4 (1) के तहत कम से कम 10 न्यायिक सदस्यों और 10 विशेषज्ञ सदस्यों की आवश्यकता है। लेकिन न्यायाधिकरण ने वर्तमान में केवल चार न्यायिक सदस्य और छह विशेषज्ञ हैं। जबकि इन दोनों पदों पर संयुक्त रूप से 20-20 लोग होने चाहिए।
एनजीटी बार एसोसिएशन ने क्या कहा?
एसोसिएशन ने अपनी याचिका में यह तर्क दिया है कि नियुक्तियों में देरी की वजह से एनजीटी के न्यायिक और विशेषज्ञ कार्यों के पूरी तरह ठप होने का खतरा है क्योंकि कई प्रमुख सदस्य रिटायर होने वाले हैं।
इसमें आगे कहा गया कि इन सदस्यों के रिटायरमेंट से वैधानिक कोरम की आवश्यकता पूरी करना असंभव हो जाएगा। याचिका में कहा गया “अपेक्षित न्यूनतम संख्या से कम सदस्यों के कारण विभिन्न पीठों पर अपेक्षित कोरम को पूरा करने के लिए अक्सर विभिन्न क्षेत्रीय पीठों पर बैठे विभिन्न सदस्यों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से जोड़कर पीठों का गठन किया जाता है। हालांकि इससे आवेदकों, अपीलकर्ताओं और प्रतिवादियों/विपक्षियों को भारी असुविधा होती है।”
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इस याचिका में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व में दिए गए आदेशों का भी हवाला दिया गया है जिनमें न्यायाधिकरणों में न्याय निर्णय के लिए पर्याप्त और समान संरचना की अनिवार्य प्रकृति पर बल दिया गया।
इसमें 2023 और 2025 में पारित किए गए उन आदेशों का भी उल्लेख है जिनमें निरंतरता बनाए रखने के लिए न्यायिक और विशेषज्ञ सदस्यों का कार्यकाल बढ़ाया गया था।
NGT के और सदस्यो हो रहे हैं रिटायर
याचिका में आगे कहा गया है कि केंद्र सरकार ने 2 अगस्त 2025 को दो न्यायिक सदस्यों और चार विशेषज्ञ सदस्यों की नियुक्ति की थी लेकिन अभी तक केवल चार विशेषज्ञों ने ही पदभार ग्रहण किया है।
इसमें आगे कहा गया है कि विशेषज्ञ सदस्य डॉ. अफरोज अहमद 13 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं और विशेषज्ञ सदस्य डॉ. ए मेंथॉल वेल 14 जनवरी 2026 को रिटायर हो रहे हैं।
याचिका में आगे कहा गया कि एनजीटी एक विशिष्ट वैधानिक निकाय है जिसकी स्थापना पर्यावरण की रक्षा के लिए की गई है जो संविधान के अनुच्छेद – 21 के तहत जीवन के अधिकार का एक मूल घटक है। न्यायिक और विशेषज्ञ सदस्यों की समय पर नियुक्ति न होने से न सिर्फ पर्यावरण के लिहाज से जरूरी मामलों की प्रगति में बाधा होगी बल्कि न्यायाधिकरण बंद हो सकता है।
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गौरतलब है कि एनजीटी की स्थापना 10 अक्तूबर 2010 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल एक्ट, 2010 के तहत की गई। इसका उद्देश्य पर्यावरण से जुड़े जरूरी मुद्दों, वनों और राष्ट्रीय संसाधनों का संरक्षण और पर्यावरण से जुड़े कानूनी अधिकारों को लागू करना है।

