मुंबई भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) ने मझगांव सिविल एवं सत्र न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश एजाजुद्दीन सलाउद्दीन काजी और कोर्ट क्लर्क चंद्रकांत हनुमंत वासुदेव के खिलाफ कथित तौर पर 15 लाख रुपये की रिश्वत मांगने और स्वीकार करने का मामला दर्ज किया है। यह कार्रवाई एक वाणिज्यिक मामले में कथित तौर पर अनुकूल आदेश के लिए ली गई रिश्वत के लिए की गई है।
एसीबी द्वारा जारी किए गए एक प्रेस नोट के मुताबिक, शिकायतकर्ता की पत्नी ने साल 2015 में बॉम्बे हाई कोर्ट के समक्ष दायर याचिका में जमीन पर जबरन कब्जे का आरोप लगाया गया था।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने सिविल कोर्ट में ट्रांसफर किया मामला
अप्रैल 2016 में हाई कोर्ट ने इस मामले में तृतीय-पक्ष अधिकारों पर रोक लगाते हुए अंतरिम आदेश दिया था। इसके बाद मार्च 2024 में हाई कोर्ट ने इस मामले को मझगांव के सिविल कोर्ट में एक वाणिज्यिक मामले के रूप में स्थानांतरित कर दिया था क्योंकि संपत्ति का मूल्य 10 करोड़ रुपये से कम था।
एसीबी के प्रेस नोट के मुताबिक, अगले कई हफ्तों तक वासुदेव कथित तौर पर रिश्वत की मांग करता रहा जिसके बाद शिकायतकर्ता ने 10 नवंबर को भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो का रुख किया।
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उसी दिन एक पंच गवाह के सामने सत्यापन किया गया जिसमें वासुदेव ने कथित तौर पर अपनी मांग दोहराई और 15 लाख रुपये रिश्वत की मांग की।
एसीबी ने जाल बिछाकर रंगे हाथों पकड़ा
इसके बाद वासुदेव और जस्टिस काजी दोनों पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा – 7 और 7 ए के तहत मामला दर्ज किया गया है जो सार्वजनिक कर्त्तव्य के संबंध में अवैध रिश्वत की मांग, स्वीकृति और प्राप्ति से संबंधित है।
इस दौरान 11 नवंबर को एसीबी द्वारा एक जाल बिछाया गया। इस दौरान वासुदेव को शिकायतकर्ता से 15 लाख रुपये लेते हुए रंगे हाथों पकड़ा गया। इस एफआईआर में आगे कहा गया है कि पैसे मिलने के तुरंत बाद वासुदेव ने जस्टिस काजी को फोन मिलाकर रिश्वत मिलने की जानकारी दी। जिस पर जस्टिस ने कथित तौर पर सहमति जताई।
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इसके बाद वासुदेव और जस्टिस काजी दोनों पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा – 7 और 7 ए के तहत मामला दर्ज किया गया है जो सार्वजनिक कर्त्तव्य के संबंध में अवैध रिश्वत की मांग, स्वीकृति और प्राप्ति से संबंधित है।
भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसी के मुताबिक, इस मामले में जस्टिस को वांछित आरोपी के रूप में नामित किया गया है। द न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने अधिकारी के हवाले से लिखा कि हाल के वर्षों में यह पहली ऐसी घटना हो सकती है जिसमें किसी अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया।

