नई दिल्लीः हिंदी सिनेमा के सुपरस्टार और बहुमुखी प्रतिभा के धनी अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती को प्रतिष्ठित दादासाहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इसकी घोषणा करते हुए कहा कि यह सम्मान भारतीय सिनेमा में उनके अमूल्य योगदान के लिए दिया जा रहा है। गौरतलब बात है कि इसी साल अप्रैल में ही उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। अब दादा साहब फाल्के पुरस्कार से उन्हें 8 अक्टूबर को होने वाले 70वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह में सम्मानित किया जाएगा।
दादासाहब फाल्के अवार्ड की घोषणा के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें बधाई दी। श्विनी वैष्णव की पोस्ट पर रिप्लाई करते हुए लिखा, “मुझे खुशी है कि मिथुन चक्रवर्ती जी को भारतीय सिनेमा में उनके अद्वितीय योगदान को मान्यता देते हुए प्रतिष्ठित दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। वह एक कल्चरल आइकन हैं, जिनको अपने बहुमुखी प्रदर्शन के लिए पीढ़ियों से सराहना मिली हैं। उन्हें बधाई एवं शुभकामनाएं।”
मिथुन चक्रवर्तीः नक्सलवाद से बॉलीवुड का सफर
मिथुन का सफर न केवल सिनेमा के क्षेत्र में बल्कि उनके व्यक्तिगत और राजनीतिक जीवन में भी बेहद दिलचस्प रहा है, जिसमें वे नक्सलवाद से जुड़ने से लेकर बॉलीवुड के ‘डिस्को डांसर’ और अंततः दक्षिणपंथी राजनीति के मुखर नेता के रूप में उभरे हैं।
मिथुन चक्रवर्ती का जन्म 16 जून 1950 को कोलकाता में हुआ था। उनका असली नाम गौरांग चक्रवर्ती है। उन्होंने 1976 में प्रसिद्ध फिल्मकार मृणाल सेन की फिल्म ‘मृगया’ से अपने अभिनय करियर की शुरुआत की। इस फिल्म में एक संथाल विद्रोही की भूमिका निभाने वाले मिथुन को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला।
सिनेमा के शुरुआती दौर में मिथुन का जुड़ाव पैरेलल सिनेमा से रहा, लेकिन 1982 में आई फिल्म ‘डिस्को डांसर’ ने उन्हें एक डांसिंग स्टार के रूप में पहचान दिलाई और बॉलीवुड में उन्हें सुपरस्टार का दर्जा प्राप्त हुआ। इस फिल्म के गानों और उनके डांस मूव्स ने उन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि दिलाई।
उनकी सिनेमा यात्रा के साथ ही मिथुन की जीवन यात्रा भी उतार-चढ़ाव से भरी रही है। कभी नक्सल आंदोलन का हिस्सा रहे मिथुन ने अपने परिवार की परिस्थितियों और भाई की मौत के बाद इस रास्ते को छोड़ दिया। इसके बाद उन्होंने अभिनय को अपने करियर का हिस्सा बनाया और सिनेमा की दुनिया में कदम रखा।
फिल्म ‘डिस्को डांसर’ के बाद मिथुन ने एक से बढ़कर एक हिट फिल्में दीं। उनकी कुछ प्रमुख फिल्मों में ‘मेरा रक्षक’ (1978), ‘शौकीन’ (1982), ‘डांस डांस’ (1987), ‘अग्निपथ’ (1990), ‘ताहादेर कथा’ (1992), ‘स्वामी विवेकानन्द’ (1998), ‘गुरु’ (2007), और ‘फिर कभी’ (2009) शामिल हैं। इन फिल्मों ने उन्हें न केवल हिंदी सिनेमा में बल्कि बंगाली और अन्य भाषाओं की फिल्मों में भी एक सम्मानित अभिनेता के रूप में स्थापित किया।
हिंदी सिनेमा के अलावा बंगाली, उड़िया, भोजपुरी, तेलुगु और पंजाबी भाषाओं की फिल्मों में भी काम किया है। 350 से अधिक फिल्मों में अभिनय कर चुके मिथुन अपने डांसिंग स्किल्स और बहुमुखी प्रतिभा के लिए प्रसिद्ध हैं।
मिथुन का राजनीतिक जीवन भी बेहद रोचक रहा
मिथुन का राजनीतिक जीवन भी बेहद रोचक रहा है। जिन्हें कभी “अर्बन नक्सल” माना जाता था, का राजनीतिक जीवन उग्र वामपंथ से लेकर सेंटर-लेफ्ट, सेंटर और अब राइट की ओर मुड़ गया। मिथुन ने पहले वामपंथी राजनीति में कदम रखा, लेकिन जब ज्योति बसु का युग खत्म हुआ, तो उन्होंने खुद को इससे दूर कर लिया। 2014 में तृणमूल कांग्रेस में शामिल हुए इसके बाद भाजपा में कदम रखा।
टीएमसी में रहते हुए मिथुन को पार्टी प्रमुख ममता बनर्जी ने उन्हें राज्यसभा सांसद मनोनीत किया था लेकिन उन्होंने बीच में ही राजनीति से ब्रेक ले लिया। 2021 के विधानसभा चुनाव से पहले वह भाजपा में शामिल हो गए। 2021 में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कोलकाता में आयोजित रैली में भाग लिया, जहां उनके एक बयान ने खूब सुर्खियां बटोरी।
रैली में अपने अनोखे अंदाज में मिथुन ने कहा, “आमी जोलधोराओ नोई, बेलेबोराओ नोई, अमी कोबरा। एक छोबोल ए छोबी” जिसका अर्थ है “मैं कोई साधारण साँप नहीं हूँ, मैं एक कोबरा हूँ। एक डंक ही काफी है।” प्रधानमंत्री मोदी ने भी उनकी प्रशंसा करते हुए उन्हें “बंगाल का बेटा” कहा और मिथुन के संघर्ष और सफलता के उदाहरण की बात की थी। मिथुन का भाजपा में प्रवेश फरवरी 2020 में शुरू हुआ, जब उन्होंने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत से अपने मुंबई निवास पर मुलाकात की। मिथुन ने इस बैठक में आरएसएस प्रमुख के साथ एक आध्यात्मिक संबंध की बात कही थी।