नई दिल्ली: भाजपा ने सोमवार को पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती पर दिल्ली में लाल किले के पास हुए कार विस्फोट पर उनके बयान को लेकर हमला बोला है और उन पर आतंकियों का बचाव करने का आरोप लगाया। एक्स पर एक पोस्ट में भाजपा प्रवक्ता प्रदीप भंडारी ने लिखा, ‘आतंकवादी बुरहान वानी का समर्थन करने वाली मुफ्ती अब लाल किला विस्फोट के आतंकवादियों को सही ठहरा रही हैं। कहती हैं – ‘आतंकवाद के लिए हिंदू, मुसलमान और नफरत जिम्मेदार हैं।’
उन्होंने आगे पूछा, ‘कांग्रेस के नेतृत्व में भारतीय विपक्ष आतंकवादियों का समर्थन करने का विरोध क्यों नहीं रुकता?’
भाजपा नेता की ओर से यह बयान रविवार को महबूबा मुफ्ती द्वारा 10 नवंबर को दिल्ली में हुए कार बम विस्फोट के बाद केंद्र पर तीखा हमला बोलने के बाद आया है। उन्होंने आरोप लगाया था कि नई दिल्ली की नीतियों से न तो जम्मू-कश्मीर में शांति आई है और न ही राष्ट्रीय राजधानी में सुरक्षा सुनिश्चित हुई है। मुफ्ती ने कहा था, ‘आपने दुनिया को बताया कि कश्मीर में सब कुछ ठीक है, लेकिन कश्मीर की परेशानियाँ लाल किले के सामने गूंज रही हैं।’
उन्होंने कहा, ‘आपने जम्मू-कश्मीर को सुरक्षित बनाने का वादा किया था, लेकिन उस वादे को पूरा करने के बजाय आपकी नीतियों ने दिल्ली को असुरक्षित बना दिया है।’
महबूबा मुफ्ती ने और क्या कुछ कहा?
एआईए के इस निष्कर्ष का हवाला देते हुए कि लाल किले में विस्फोट एक कश्मीरी ‘आत्मघाती हमलावर’ द्वारा ‘वाहन में आईईडी’ का उपयोग करके किया गया था, मुफ्ती ने कहा कि यह घटना एक गहरे संकट को दर्शाती है।
उन्होंने कहा, ‘अगर एक पढ़ा-लिखा युवक, एक डॉक्टर, अपने शरीर पर आरडीएक्स बाँधकर खुद को और दूसरों को मार डालता है, तो इसका मतलब है कि देश में कोई सुरक्षा नहीं है।’ उन्होंने सवाल किया कि क्या केंद्र ‘वास्तव में समझ रहा है कि क्या हो रहा है।’
मुफ्ती ने केंद्र सरकार पर अलगाव की जड़ों को दूर करने के बजाय ध्रुवीकरण पर निर्भर रहने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, ‘आप हिंदू-मुस्लिम राजनीति करके वोट तो पा सकते हैं, लेकिन देश किस दिशा में जा रहा है?’
मुफ्ती ने कहा, ‘हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई एक साथ शांति से रहते थे, लेकिन अब पूरा माहौल नफरत से भर गया है। यह नफरत भरा माहौल युवाओं को एक खतरनाक रास्ते पर धकेल रहा है।’
मुफ्ती का आरोप- जम्मू-कश्मीर में डर और भय
उन्होंने जम्मू-कश्मीर में 2019 के बाद केंद्र सरकार के रवैये की भी आलोचना की और कहा कि इससे डर और आक्रोश और गहरा हुआ है। उन्होंने कहा, ‘आपने लोगों को गिरफ्तार किया, पत्रकारों को हिरासत में लिया और लोगों पर पीएसए के तहत मामला दर्ज किया। आपने जम्मू-कश्मीर को एक सुरक्षित जगह बनाने का वादा किया था, लेकिन इसके बजाय, आपने यहाँ डर और भय का माहौल बना दिया है।’
मौजूदा अशांति को लाल किले पर हुए बम विस्फोट से जोड़ते हुए उन्होंने कहा, ‘अब कश्मीर की समस्या दिल्ली में लाल किले के सामने बोल रही है। आपने जम्मू-कश्मीर को सुरक्षित बनाने का वादा किया था, लेकिन आपके कामों के कारण दिल्ली भी असुरक्षित हो गई है।’
उन्होंने कहा, ‘क्या उन्हें लगता है कि हिंदू-मुस्लिम विभाजन, और विस्फोट और और खून-खराबा उन्हें ज्यादा वोट दिलाएगा? देश सत्ता से बड़ा है।’
मुफ्ती ने कहा, ‘मैं युवाओं को बताना चाहती हूँ कि वे जो कर रहे हैं वह गलत है, उनके लिए, उनके परिवारों के लिए, जम्मू-कश्मीर के लिए और पूरे देश के लिए गलत है।’
महबूबा मुफ्ती के आरोप और जम्मू-कश्मीर में अशांति की कहानी
मुफ्ती ने केंद्र सरकार पर 2019 के बाद जम्मू-कश्मीर के हालात और खराब करने का आरोप लगाया है। मुफ्ती ने ये भी कहा कि पहले हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई मिलकर रहते थे। हालांकि, जम्मू-कश्मीर के पिछले करीब तीन दशक से ज्यादा के समय का इतिहास देखें तो कुछ और सच भी सामने आते है। खासकर 1989 में भाजपा नेता रहे और कश्मीरी पंडित टिका लाल टपलू की आतंकियों द्वारा हत्या से लेकर जो सिलसिला शुरू हुआ वो लगातार जारी रहा है।
टिका लाल की हत्या के समय केंद्र में राजीव गांधी की सरकार थी। इसी साल 1989 में ही हाई कोर्ट के रिटायर जज नीलकंठ गंजू की भी हत्या आतंकियों द्वारा कर दी गई थी। इसके कुछ महीनों बाद हजारों की संख्या में कश्मीरी पंडितों का पलायन भी देश ने देखा। इस दौरान कुछ महीने के लिए वीपी सिंह, फिर चंद्रशेखर और फिर कांग्रेस के पीवी नरसिम्हा राव भी प्रधानमंत्री रहे। ये वो दौर थे, जब कश्मीर के हालात सबसे तेजी से बिगड़ने शुरू हुए थे और इन पर लगाम नहीं लगाई जा सकी थी।
2019 के बाद जम्मू-कश्मीर
जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटने के बाद केवल सुरक्षा के लिहाज से देखें तो नतीजें मिले-जुले हैं। सरकार का दावा रहा है कि 2019 के उसके फैसले से जम्मू-कश्मीर में आतंक खत्म होगा। हालांकि, ये पूरी तरह सही साबित नहीं हो सका है। रियासी बस अटैकल से लेकर पहलगाम की घटना ने केंद्र के नैरेटिव को बड़ा नुकसान पहुंचाया है। लेकिन कुछ मामलों में जरूर बदलाव नजर आया है।
मसलन पत्थरबाजी, हड़ताल, अपहरण और हथियार छीनने की घटनाएँ लगभग शून्य हो गई हैं। आतंकी गुटों में स्थानीय युवकों की भर्ती 2019 में 129 से घटकर इस वर्ष केवल 1 रह गई है। जम्मू क्षेत्र, जहाँ पिछले तीन वर्षों में सीमा पार से घुसपैठ और सुरक्षा बलों पर लगातार हमले हुए थे, वहां मुठभेड़ों की संख्या बहुत कम हो गई थी। हालांकि, ये जरूर है कि पहलगाम की घटना के बाद चीजें फिर खराब होती नजर आई हैं।

