Tuesday, October 21, 2025
Homeभारतमहाराष्ट्र में तीन साल में 142 बाघ और 537 तेंदुओं की मौत,...

महाराष्ट्र में तीन साल में 142 बाघ और 537 तेंदुओं की मौत, RTI के तहत खुलासा

रिपोर्ट में बताया गया कि इस साल दर्ज 35 बाघों की मौत में 21 प्राकृतिक कारणों से हुईं, जबकि 5 दुर्घटनाओं और 5 शिकार या बिजली के झटकों के कारण मारे गए। 4 मामलों में मृत्यु का कारण स्पष्ट नहीं हो पाया।

नागपुर: महाराष्ट्र में जनवरी 2022 से सितंबर 2025 के बीच राज्य में 142 बाघों और 537 तेंदुओं की मौत दर्ज की गई है। इनमें बड़ी संख्या दुर्घटनाओं, शिकार और बिजली के झटकों से हुई है। यह जानकारी नागपुर के सामाजिक कार्यकर्ता अभय कोलारकर द्वारा दायर आरटीआई के जवाब में मिली।

नागपुर स्थित प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) कार्यालय ने आरटीआई के जवाब में बताया है कि साल 2025 में सितंबर तक 35 बाघ और 115 तेंदुओं की मौत हुई है। इसकी तुलना पहले का सालों से करें तो 2024 में 26 बाघ, 2023 में 52 और 2022 में 29 बाघों की मौत दर्ज की गई थी।

रिपोर्ट में बताया गया कि इस साल दर्ज 35 बाघों की मौत में 21 प्राकृतिक कारणों से हुईं, जबकि 5 दुर्घटनाओं और 5 शिकार या बिजली के झटकों के कारण मारे गए। 4 मामलों में मृत्यु का कारण स्पष्ट नहीं हो पाया। 2022 से अब तक कुल 142 बाघों की मौत दर्ज की गई है, जिनमें 84 प्राकृतिक थीं, 23 दुर्घटनाओं में और 29 शिकार के कारण हुईं। छह मामलों में मौत का कारण निर्धारित नहीं किया जा सका।

वन्यजीव विशेषज्ञों का कहना है कि शिकारी जंगल की सीमाओं पर बिजली के तारों और फंदों का इस्तेमाल करते हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में एक वन्यजीव अपराध विश्लेषक के हवाले से बताया गया कि “बाघ और तेंदुए उनके शरीर के अंगों और पंजों के लिए मारे जाते हैं, जिनकी काला बाज़ार में बड़ी कीमत होती है। कई बार इन्हें मवेशियों पर हमले रोकने के लिए भी मार दिया जाता है।”

तेंदुओं की मौत के आंकड़े भी कम नहीं

2025 में अब तक 115 तेंदुओं की मौत हुई है- जिनमें 44 प्राकृतिक, 42 दुर्घटनाओं, 2 शिकार, 3 बिजली के झटकों और 21 अन्य कारणों से थीं। इससे पहले 2024 में 144, 2023 में 138 और 2022 में 140 तेंदुओं की मौत दर्ज की गई थी।

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र में बाघों की संख्या 444 है। वन अधिकारियों का कहना है कि अधिकांश प्राकृतिक मौतें बाघों के आपसी संघर्ष, बढ़ती उम्र और बीमारियों के कारण होती हैं, जबकि दुर्घटनाएँ प्रायः सड़क और रेलमार्गों से गुजरने वाले वन्यजीव गलियारों में होती हैं।

अनिल शर्मा
अनिल शर्माhttp://bolebharat.com
दिल्ली विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में उच्च शिक्षा। 2015 में 'लाइव इंडिया' से इस पेशे में कदम रखा। इसके बाद जनसत्ता और लोकमत जैसे मीडिया संस्थानों में काम करने का अवसर मिला। अब 'बोले भारत' के साथ सफर जारी है...
RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments

डॉ उर्वशी on कहानीः इरेज़र
मनोज मोहन on कहानीः याद 
प्रकाश on कहानीः याद 
योगेंद्र आहूजा on कहानीः याद 
प्रज्ञा विश्नोई on कहानीः याद 
डॉ उर्वशी on एक जासूसी कथा