नई दिल्ली: झारखंड ले पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने कोयला ब्लॉक आवंटन मामले में उनकी सजा पर रोक की अपील को शुक्रवार खारिज कर दिया। इसके चलते वह नवंबर में होने वाले आगामी राज्य विधानसभा चुनावों में हिस्सा नहीं ले पाएंगे। यह फैसला सुप्रीम कोर्ट ने 18 अक्टूबर 2024 को दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ कोड़ा की अपील की सुनवाई के दौरान सुनाया।
मधु कोड़ा का मामला और हाईकोर्ट का फैसला
मधु कोड़ा को दिसंबर 2017 में आपराधिक साजिश और आपराधिक कदाचार के आरोप में दोषी ठहराया गया था और उन्हें तीन साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी। हालांकि, 2018 में उन्हें जमानत मिल गई और जुर्माने पर भी रोक लगाई गई थी, लेकिन उनकी सजा पर रोक लगाने की मांग को दिल्ली हाईकोर्ट ने 2020 में खारिज कर दिया था। 2024 में, कोड़ा ने फिर से हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, यह दावा करते हुए कि उनके मामले में नए कानूनी और तथ्यात्मक विकास हुए हैं और उनकी अपील 2017 से लंबित है।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
जस्टिस संजीव खन्ना और संजय कुमार की पीठ ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि हाईकोर्ट ने सजा की प्रकृति और अपराध की गंभीरता का सम्यक विचार करने के बाद ही निर्णय दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि सजा पर रोक लगाने के लिए कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर विचार किया जाना चाहिए और यह अधिकार एक असाधारण स्थिति में ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
अफजल अंसारी मामले का हवाला और सुप्रीम कोर्ट का तर्क
कोड़ा के वकील ने सुप्रीम कोर्ट के अफजल अंसारी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2023) मामले का हवाला देते हुए राहत की मांग की थी। अफजाल अंसारी एक मौजूदा सांसद थे और सजा के बाद उनकी अयोग्यता से प्रतिनिधित्व में कमी हो जाती, जिसके चलते उनकी सजा पर रोक लगाई थी। लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट ने कोड़ा के मामले को इससे अलग बताया, यह तर्क देते हुए कि कोड़ा एक निर्वाचित प्रतिनिधि नहीं हैं।
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अयोग्यता की अवधि पर विचार
सुप्रीम कोर्ट में बहस के दौरान कोड़ा के वकील ने कहा कि अयोग्यता की अवधि तीन साल की सजा और उसके बाद तीन साल की होगी। इस पर जस्टिस खन्ना ने कहा कि यह तर्क हाईकोर्ट में प्रस्तुत नहीं किया गया था। उन्होंने स्पष्ट किया कि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8(3) के अनुसार, कोड़ा की अयोग्यता की अवधि नौ साल होगी।
इस फैसले के बाद, मधु कोड़ा आगामी चुनावों में अपनी उम्मीदवारी नहीं पेश कर पाएंगे। यह मामला राजनीतिक और कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8(3) की व्याख्या और सजा पर रोक के सिद्धांतों का विश्लेषण किया गया है।