दिल्ली में आज जहां शीशगंज गुरुद्वारा स्थित है, वहीं 24 नवंबर 1675 को 9वें सिख गुरु, श्री तेग बहादुर को शहीद कर दिया गया था। गुरुद्वारे में एक खिड़की है जहां से उस स्थान को देखा जा सकता है, जहां मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश पर उन्हें शहीद किया गया। वह बुधवार का दिन था। यह अनोखी बात है कि तीन साल पहले 2021 में 24 नवंबर की तारीख बुधवार को ही पड़ी थी।
गुरु तेग बहादुर का सिर कलम कर दिया गया क्योंकि उन्होंने इस्लाम अपनाने से इनकार कर दिया था। शीशगंज गुरुद्वारे में खिड़की के ऊपर लिखा है ‘शहीदी स्थान धन धन श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी।’ जो लोग नियमित रूप से इस गुरुद्वारे में आते हैं, उनके लिए यह स्थान अत्यधिक आध्यात्मिक महत्व रखता है और वे श्रद्धापूर्वक यहां शीश झुकाते हैं।
श्री गुरु तेग बहादुर मुगल शासक औरंगजेब के शासनकाल के दौरान व्यापक रूप से प्रचलित धार्मिक उत्पीड़न की नीति के विरोधी थे। गुरुजी के प्रति सम्मान व्यक्त करते हुए पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने अपने आधिकारिक हैंडल से ट्वीट (अब एक्स) किया था कि वह बलिदान और अन्याय के खिलाफ संघर्ष के गुणों के प्रतीक थे। उन्होंने मानवता की सेवा में अपना जीवन न्यौछावर कर दिया। आइए हम सभी उनकी शिक्षाओं का पालन करें और मानवता की सेवा करने का संकल्प लें।
गुरु तेग बहादुर से पहले, 5वें सिख गुरु श्री गुरु अर्जन को एक अन्य मुगल राजा औरंगजेब के दादा, जहांगीर ने शहीद कर दिया था। गुरु अर्जन ने सभी सिखों द्वारा अनुसरण किए जाने वाले पवित्र ग्रंथ, आदि ग्रंथ का पहला आधिकारिक संस्करण संकलित किया था। यह बाद में श्री गुरु ग्रंथ साहिब बन गया।
हमारी इतिहास की किताबों में कहीं भी इन दो हत्यारे मुगल शासकों- जहांगीर और औरंगजेब को उनके असल चरित्र के तौर पर चित्रित नहीं किया गया है। ये अत्यंत असहिष्णु शासक रहे जिन्होंने दो गुरुओं की इस प्रकार हत्या करवा दी थी। इसके विपरीत जहांगीर को सौंदर्य के एक महान प्रेमी के रूप में चित्रित किया गया जो हर साल कश्मीर की यात्राएँ करते थे। दूसरी ओर औरंगजेब को एक बहुत ही धर्मनिष्ठ मुस्लिम के रूप में चित्रित किया गया है, जो छोटी सी गलती पर भी बहुत सख्त था!
9वें गुरु को एक निडर योद्धा, विद्वान और उत्कृष्ट कवि माना जाता था, जिनके कई भजन (शबद) श्री गुरु ग्रंथ साहिब में शामिल किए गए हैं। अधिकांश अभिलेख कहते हैं कि श्री तेग बहादुर द्वारा रचित कुल 115 भजन इस ग्रंथ में हैं, जो सिखों के लिए मुख्य पाठ के तौर पर हैं। उनके व्यक्तित्व का एक और पहलू है जिसका उल्लेख कहीं और नहीं बल्कि कोलकाता के विक्टोरिया मेमोरियल हॉल में रखी एक पेंटिंग के परिचय में मिलता है।
यह पेंटिंग ढाका (बांग्लादेश) के एक गुरुद्वारे में रखी गई थी और 1971 में बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के बाद इसे भारत लाया गया। यह श्री गुरु तेग बहादुर का एक चित्र है जिसे तब चित्रित किया गया था जब वह एक समय ढाका आए थे। ऐसा कहा जाता है कि उस समय के एक प्रसिद्ध चित्रकार को गुरुजी का चित्र बनाने का काम सौंपा गया था। उसने कपड़ों का चित्र तो सटीकता से बनाया लेकिन गुरुजी का दीप्तिमान चेहरा बनाने में असफल रहा। कोलकाता गुरुद्वारे में काम करने वाले कुछ अधिकारियों के अनुसार, तब गुरुजी ने स्वयं अपना चेहरा बनाया और पेंटिंग पूरी की।
यह चित्र अब कोलकाता के विक्टोरिया मेमोरियल हॉल के स्टोर रूम में है। कोलकाता स्थित बांग्लादेश गुरुद्वारा प्रबंधन बोर्ड के महासचिव बचन सिंह सरल के अनुसार, ‘गुरु तेग बहादुर 17वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में ढाका (अब बांग्लादेश में) गए थे।’
यह पेंटिंग जो ढाका के संगत टोला गुरुद्वारे में थी, इसे 1971 में बांग्लादेश की मुक्ति के बाद भारत लाया गया और कोलकाता के विक्टोरिया मेमोरियल हॉल को सौंप दिया गया था।
दिल्ली में गुरुद्वारा रकाब गंज श्री गुरु तेग बहादुर की शहादत से जुड़ा एक और गुरुद्वारा है। कहा जाता है कि यह गुरुद्वारा वहीं स्थित है जहां किसी समय गुरुजी के एक शिष्य का घर था। जब 9वें गुरु का सिर काट दिया गया, तो उनके शिष्य ने उनका शरीर ले लिया, उसे अपने घर में रखा और उसका दाह संस्कार करने के लिए आग लगा दी।
दिल्ली में शीशगंज गुरुद्वारे के पास सिखों के इतिहास से संबंधित एक संग्रहालय है जहां चित्रों में मुगलों द्वारा सिखों के खिलाफ किए गए अत्याचारों को दर्शाया गया है। श्री गुरु तेग बहादुर के साथ उनके भाई मति दास, भाई सती दास और दयाला नामक शिष्य भी शहीद हुए। गुरुजी से जुड़े इतिहास के अनुसार उनका जन्म 21 अप्रैल, 1621 को हुआ था और इस वर्ष की शुरुआत में उनके जन्म के 400वें वर्ष को दुनिया भर में जहां-जहां उनके भक्त रहते हैं, प्रकाश उत्सव के रूप में मनाया गया।