कोलकाताः कलकत्ता हाई कोर्ट ने गुरुवार, 13 नवंबर को पश्चिम बंगाल के विधायक मुकुल रॉय की विधानसभा सदस्यता रद्द कर दी है। करीब 4 साल पहले वह भाजपा छोड़ टीएमसी में शामिल हुए थे। वह नादिया जिले की कृष्णानगर उत्तर विधानसभा सीट से भाजपा के टिकट पर पहली बार विधायक बने। विधानसभा चुनाव के एक महीने के भीतर ही वह अपनी पूर्व पार्टी टीएमसी में शामिल हो गए थे।
उनके टीएमसी में शामिल होने पर राज्य में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी और विधायक अंबिका रॉय ने उनकी अयोग्यता की मांग की थी।
मुकुल रॉय की विधानसभा सदस्यता रद्द
इस मामले में अदालत ने विधानसभा अध्यक्ष बिमान बनर्जी के उस दावे को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने दावा किया था कि मुकुल भाजपा के विधायक थे। मुकुल रॉय टीएमसी में ममता बनर्जी के बाद दूसरे स्थान के नेता माने जाते हैं।
विधानसभा में लोक लेखा समिति का अध्यक्ष बनाए जाने के बाद भाजपा ने उनके खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया था। यह पद परंपरागत रूप से विपक्षी खेमे के किसी सदस्य के पास होता है।
साल 2022 में विधानसभा अध्यक्ष ने उनकी सदस्यता रद्द करने वाली मांग की याचिका को खारिज कर दिया था। हालांकि बाद में हाई कोर्ट की पीठ ने विधानसभा अध्यक्ष के पास वापस विचार करने के लिए भेजा था। इसके बाद अध्यक्ष ने कहा था कि दलबदल को साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है।
इसके बाद शुभेंदु अधिकारी और अंबिका रॉय ने हाई कोर्ट का रुख किया था।
हाई कोर्ट के इस फैसले के बाद भाजपा विधायक और विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने गुरुवार को कहा, “मुकुल रॉय को भाजपा विधायक बताने का विधानसभा अध्यक्ष का फैसला मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के इशारे पर लिया गया था। यह कदम संविधान को चुनौती है।”
पत्रकारों से बात करते हुए अधिकारी ने कहा “दुर्भाग्यवश, उन्हें अभी भी भाजपा विधायक कहा जाता रहा जबकि वह तृणमूल कांग्रेस की बैठकों और अन्य कार्यक्रमों में शामिल होते रहे थे। यह अभूतपूर्व है और ऐसा पहले कभी हुआ।”
2012 में रॉय बने थे रेल मंत्री
मुकुल रॉय को साल 2012 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार करीब छह महीने के लिए केंद्रीय रेल मंत्री बनाया गया था। उस दौरान वह तृणमूल कांग्रेस से राज्यसभा सांसद थे।
साल 2011 में तृणमूल कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद से दलबदल विरोधी कानून का बार-बार परीक्षण किया गया है।
संविधान की 10वीं अनुसूची के अनुसार किसी भी दल से संबंधित सदन का सदस्य अयोग्य घोषित किया जाएगा यदि उसने (क) स्वेच्छा से किसी राजनीतिक दल की सदस्यता छोड़ दी हो या (ख) उस राजनीतिक दल द्वारा जारी किसी निर्देश के विपरीत ऐसे सदन में मतदान किया हो या मतदान से विरत रहा हो।
इसमें कहा गया है कि दलबदल पर निर्णय लेने का दायित्व अध्यक्ष पर निर्भर करता है तथा निर्णय लेने के लिए कोई समय सीमा नहीं है।

