नई दिल्लीः कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में 9 अगस्त को हुए ट्रेनी डॉक्टर के रेप-मर्डर केस में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार सुनवाई की। सुनवाई के दौरान सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि सीबीआई और कोलकाता पुलिस दोनों ने स्टेटस रिपोर्ट जमा कर दी है। जैसा कि पहले बताया गया है, सीबीआई जांच कर रही है, जबकि कोलकाता पुलिस साइट पर विरोध प्रदर्शन के बाद हुई बर्बरता की जांच कर रही है। ऐसा भी लगता है कि पॉलीग्राफ टेस्ट कराने का अनुरोध भी किया गया है।
सीबीआई रिपोर्ट के मुताबिक, मामले में लीपापोती की कोशिश की गई है। अंतिम संस्कार के बाद एफआईआर दर्ज की गई। मौका-ए-वारदात से भी छेड़छाड़ की गई। वहीं मामले में अस्पताल प्रशासन उदासीन बना रहा। घटना की सूचना पीड़िता के परिजनों को देर से दी गई। सीबीआई ने कहा कि उसे अभी तक मेडिकल रिपोर्ट नहीं मिली है।
इस दौरान बेंच ने कहा कि 30 साल में ऐसा केस नहीं देखा। ये मामला चैंकाने वाला है। मामले में बंगाल पुलिस का व्यवहार शर्मनाक है। अदालत ने कहा कि पुलिस ने जो तरीके अपनाए वो क्रिमिनल प्रोसीजर कोड से अलग थे। पुलिस के काम करने का तरीका सही नहीं है। बेंच ने इस बात पर हैरानी जताई की मामले में एफआईआर पोस्टमार्टम और अंतिम संंस्कार हो जाने के बाद दर्ज की गई। उसने पूछा कि रिकॉर्ड में इतना अंतर क्यों है?
कोलकाता रेप-मर्डर केसः सीबीआई ने स्टेटस रिपोर्ट में क्या कहा?
सीबीआई की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, “सबसे चौंकाने वाला तथ्य यह है कि पहली एफआईआर दाह संस्कार के बाद रात 11:45 बजे दर्ज की गई थी। माता-पिता को बताया गया कि यह आत्महत्या है, फिर मौत और फिर अस्पताल में डॉक्टर के दोस्तों ने वीडियोग्राफी पर जोर दिया। इसका मतलब है उन्हें भी संदेह था कि कुछ गड़बड़ है।”
अपनी स्थिति रिपोर्ट में, सीबीआई ने कहा कि अपराध स्थल को बदल दिया गया था और पीड़ित परिवार को उनकी बेटी की मौत को आत्महत्या के रूप में पेश करने के बारे में गुमराह किया गया था। जांच के पांचवें दिन में, अपराध स्थल सहित सब कुछ बदल दिया गया था। पश्चिम बंगाल सरकार ने इस दावे का खंडन करते हुए कहा कि “हर चीज की वीडियोग्राफी की गई थी” और उसके पास प्रत्येक घटना की समय-सीमा है।
सीबीआई ने अदालत को बताया कि इस जघन्य घटना के सिलसिले में गिरफ्तार कोलकाता पुलिस के एक सिविल वालंटियर आरोपी संजय रॉय पर लाई डिटेक्टर टेस्ट अभी तक नहीं किया गया है। सीबीआई ने कहा कि उसे मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के अधिकारियों की ओर से मामले को संवेदनशीलता के साथ संभालने में खामियां मिलीं।
जांच एजेंसी का मानना है कि ऐसे मामलों में सभी प्रोटोकॉल जानने के बावजूद, अस्पताल के अधिकारियों ने डॉ. संदीप घोष को प्रिंसिपल के पद से हटा दिया और अपराध स्थल की पूरी तरह से सुरक्षा करने में विफल रहे।
सुप्रीम कोर्ट को बताया गया कि बलात्कार-हत्या की जानकारी दिए जाने के बाद भी डॉ. घोष ने सक्रियता से काम नहीं किया। अपराध स्थल के पास मरम्मत का काम भी सीबीआई की जांच के दायरे में है और डॉ. घोष से इसी आधार पर पूछताछ की जा रही है। जांच एजेंसी मामले में एफआईआर दर्ज करने में हुई देरी की भी जांच कर रही है।
कोलकाता रेप-मर्डर केसः सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान क्या कहा?
सुनवाई को दौरान सुप्रीम कोर्ट ने डॉक्टरों का पक्ष समझते हुए भी हड़ताल पर हल्की सख्ती दिखाई। शीर्ष अदालत ने कहा, डॉक्टरों को काम पर लौटना होगा, वरना हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर प्रभावित होगा। मरीज उनका इंतजार कर रहे हैं। हमें पता है डॉक्टरों पर 36-48 घंटे काम का दबाव है। जरूरत होने पर हम डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए CISF से कहेंगे। हम ये आदेश देंगे कि जांच के लिए बनी एक्सपर्ट कमेटी रेजिडेंट डॉक्टरों का पक्ष भी सुने।
सीजेआई ने कहा कि ज्यूडिशल और मेडिकल हड़ताल पर नहीं जा सकते। उन्होंने कहा, क्या हम कोर्ट के बाहर जा कर बैठ सकते हैं। 13 दिन से एम्स के डॉक्टर काम नहीं कर रहे हैं। कृपया काम पर लग जाइए।
शीर्ष अदालत ने पूछा, “क्या प्रिंसिपल को तुरंत कॉलेज नहीं आना चाहिए था और एफआईआर दर्ज नहीं करानी चाहिए थी? वह किसे बचा रहे हैं? और इस्तीफा देने के बाद उन्हें दूसरे कॉलेज में क्यों नियुक्त किया गया?” बंगाल सरकार की तरफ से पेश हुए वकील कपिल सिब्बल से सीजेआई ने पूछा कि अपराध होने के 14 घंटे बाद एफआईआर क्यों दर्ज की गई।
सीजेआई ने कहा- ‘अगर यह अप्राकृतिक मौत का मामला नहीं है, तो इसे पोस्टमार्टम के लिए क्यों ले जाया गया। पोस्टमार्टम शाम 6:10 बजे शुरू होता है और 7:10 बजे खत्म होता है। उन्होंने पूछा कि रात 11:30 बजे यूडी (अप्राकृतिक मौत का मामला) दर्ज करने का क्या मतलब था। यूडी केस थाला पुलिस स्टेशन में रात 11:30 बजे दर्ज किया गया और एफआईआर 11:40 बजे दर्ज की गई। यह बहुत ही आश्चर्यजनक है कि यूडी दर्ज करने से पहले पोस्टमार्टम किया गया। अगर यह सच है तो कुछ खतरनाक है।
प्रदर्शनकारी डॉक्टरों के वकील ने कहा कि सरकारी अस्पतालों में काम के बोझ तले दबे डॉक्टरों में इतनी शारीरिक ऊर्जा नहीं होती कि जब कोई उन्हें छेड़ रहा हो तो उनका मुकाबला कर सकें। इसपर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, “हम सरकारी अस्पतालों में गए हैं। मैं सरकारी अस्पताल के फर्श पर सोया हूं। हम जानते हैं कि डॉक्टर 36 घंटे से अधिक काम करते हैं।”
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने रेजिडेंट डॉक्टरों को आश्वासन दिया कि स्वास्थ्य पेशेवरों के लिए सुरक्षा उपायों की सिफारिश करने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित राष्ट्रीय टास्क फोर्स द्वारा उनकी बात सुनी जाएगी। प्रदर्शनकारी रेजिडेंट डॉक्टरों को ड्यूटी से अनुपस्थित बताए जाने के सवाल पर, सीजेआई ने कहा कि अदालत यह सुनिश्चित करेगी कि जब प्रदर्शनकारी रेजिडेंट डॉक्टर अपनी ड्यूटी पर लौटेंगे तो उनके खिलाफ कोई प्रतिकूल कार्रवाई न हो।