Friday, October 24, 2025
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आरएसएस के ‘पथ संचलन’ के मामले में हाई कोर्ट ने शांति समिति की बैठक का दिया निर्देश, क्या है मामला?

अदालत ने यह आदेश चित्तापुर में बनी तनावपूर्ण स्थिति को देखते हुए दिया जहां 2 नवंबर को आरएसएस की पदयात्रा आयोजित करने की अनुमति मांगी गई है।

बेंगलुरुः कर्नाटक हाईकोर्ट ने शुक्रवार को राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह 28 अक्टूबर को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रस्तावित पथ या पद-संचलन (रूट मार्च) को लेकर आयोजकों के साथ शांति समिति की बैठक करे और मुद्दे को सुलझाए। अदालत ने यह आदेश चित्तापुर में बनी तनावपूर्ण स्थिति को देखते हुए दिया जहां 2 नवंबर को आरएसएस की पदयात्रा आयोजित करने की अनुमति मांगी गई है।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, यह मामला आरएसएस कलबुर्गी के संयोजक अशोक पाटिल की याचिका पर सुनवाई के दौरान उठा। पाटिल ने प्रशासन से शांतिपूर्ण रूट मार्च की अनुमति मांगी थी। अदालत ने कहा कि प्रशासन को स्थानीय परिस्थितियों का आकलन करते हुए निर्णय लेना चाहिए और सभी संगठनों को बातचीत के लिए बुलाना चाहिए ताकि शांति बनी रहे।

न्यायमूर्ति एमजीएस कमल ने सुनवाई के दौरान कहा, “चित्तापुर में पिछले कुछ दिनों से अलग-अलग संगठनों के बयानबाजी के कारण तनाव की स्थिति बनी हुई है। यदि अनुमति दी गई तो कानून-व्यवस्था की समस्या हो सकती है। इसलिए स्थानीय अधिकारी आयोजकों से बातचीत कर शांति समिति की बैठक आयोजित करें।” अदालत ने राज्य सरकार से कहा कि बैठक 28 अक्टूबर को जिला मुख्यालय में की जाए और उसकी रिपोर्ट 30 अक्टूबर तक अदालत में पेश की जाए।

राज्य के एडवोकेट जनरल शशिकिरण शेट्टी ने अदालत को बताया कि बैठक की तारीख और समय शाम तक सूचित कर दिया जाएगा। इस पर अदालत ने कहा कि मामले को ज्यादा लंबा न खींचें, जितनी जल्दी समाधान होगा उतना ही समाज के लिए बेहतर रहेगा।

याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अरुणा श्याम ने दलील दी कि आरएसएस ने अदालत के निर्देशानुसार अनुमति के लिए आवेदन पहले ही दे दिया था और सारे इंतजाम कर लिए गए थे, लेकिन प्रशासन ने अब तक अनुमति पर निर्णय नहीं लिया है। उन्होंने कहा कि यदि राज्य सरकार को कानून-व्यवस्था बनाए रखने में दिक्कत है, तो केंद्र सरकार से बल मंगाया जा सकता है।

अदालत ने सुनवाई पूरी करते हुए कहा कि “सरकार और आयोजक दोनों सहयोग करें, ताकि शांतिपूर्ण समाधान निकल सके।” अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 30 अक्टूबर के लिए तय की है।

आरएसएस के पथ संचलन को लेकर क्या है विवाद?

आरएसएस के ‘पथ संचलन’ को लेकर विवाद तब गहराया जब चित्तापुर के विधायक और कर्नाटक के ग्रामीण विकास मंत्री प्रियांक खड़गे ने सार्वजनिक संपत्तियों पर आरएसएस की शाखाएं आयोजित करने पर रोक लगाने की मांग की। इसके बाद उन्हें आरएसएस समर्थकों से कथित जान से मारने की धमकियां मिलीं। मामले में एक आरोपी को कोल्हापुर से गिरफ्तार भी किया गया।

आरएसएस ने मूल रूप से 19 अक्टूबर को चित्तापुर में अपना रूट मार्च निकालने की अनुमति मांगी थी, लेकिन जिला प्रशासन ने आवेदन ठुकरा दिया। कारण यह बताया गया कि उसी दिन भीम आर्मी और भारतीय दलित पैंथर्स ने भी जुलूस निकालने की अनुमति मांगी थी, जिससे टकराव और शांति भंग की आशंका थी। इसके बाद आरएसएस ने शनिवार देर रात अदालत का रुख किया। रविवार को अदालत ने इस पर विशेष सुनवाई की, जिसमें आरएसएस ने अपना रूट मार्च 2 नवंबर तक स्थगित करने पर सहमति जताई।

सरकार ने आरएसएस विवाद के बीच ‘पब्लिक स्पेस रेगुलेशन बिल’ पर रोक लगाई

प्रियांक खड़गे के पत्र के बाद, निजी संगठनों द्वारा सार्वजनिक कार्यक्रम आयोजित करने के लिए पूर्व अनुमति लेना अनिवार्य करने का आदेश जारी किया गया था। हालांकि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने इसे स्पष्ट करते हुए कहा कि सरकार ने आरएसएस पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया है।

मुख्यमंत्री ने कहा, “स्कूल और कॉलेज परिसरों में गतिविधियां आयोजित करने के लिए अनुमति लेने संबंधी आदेश में कहीं भी आरएसएस का नाम नहीं है। आदेश में ‘किसी भी संगठन या संघ’ का उल्लेख है न कि केवल आरएसएस का।”

उन्होंने कहा था कि हमने सिर्फ वही आदेश दोहराया है, जो पहले भाजपा सरकार के दौरान जारी हुआ था। अगर वे ऐसा कर सकते हैं, तो हम क्यों नहीं? सिद्धारमैया ने बताया कि 2013 में जब जगदीश शेट्टर मुख्यमंत्री थे, तब एक आदेश जारी किया गया था जिसमें स्कूल और कॉलेज परिसरों में संगठनों की गतिविधियों पर रोक लगाई गई थी। अब जगदीश शेट्टर कह रहे हैं कि वह आदेश शिक्षा विभाग ने जारी किया था, लेकिन वह उनके कार्यकाल में ही हुआ था।

इस बीच न्यूज 18 ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि आरएसएस के बढ़ते विरोध और मंत्रियों की आपत्तियों के बाद कर्नाटक सरकार ने प्रस्तावित ‘रेगुलेशन ऑफ यूज ऑफ गवर्नमेंट प्रिमाइसेस एंड प्रॉपर्टीज बिल, 2025’ को फिलहाल ठंडे बस्ते में डाल दिया है। सूत्रों के अनुसार, सरकार अब इस विषय में किसी नए कानून की बजाय मौजूदा प्रशासनिक आदेशों पर चलेगी।

प्रस्तावित बिल के अनुसार, नियमों के उल्लंघन पर दो साल तक की कैद या 50,000 रुपये जुर्माना, या दोनों सजा दी जा सकती थी। दोबारा उल्लंघन करने वालों को पांच साल की जेल और एक लाख रुपये का जुर्माना भुगतना पड़ सकता था।

इस बिल का मसौदा तब आया था जब आरएसएस ने 11 अक्टूबर को बेंगलुरु में अपना शताब्दी कार्यक्रम और रूट मार्च आयोजित किया था। इससे कुछ दिन पहले राज्य के आईटी और बायोटेक मंत्री प्रियंक खड़गे ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को पत्र लिखकर सरकारी परिसरों में आरएसएस की गतिविधियों पर रोक लगाने की मांग की थी। उन्होंने लिखा था कि “सरकारी स्कूलों और सार्वजनिक मैदानों में आरएसएस द्वारा शाखाएं लगाई जा रही हैं, जहां बच्चों और युवाओं के मन में नकारात्मक विचार भरे जा रहे हैं।”

अनिल शर्मा
अनिल शर्माhttp://bolebharat.com
दिल्ली विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में उच्च शिक्षा। 2015 में 'लाइव इंडिया' से इस पेशे में कदम रखा। इसके बाद जनसत्ता और लोकमत जैसे मीडिया संस्थानों में काम करने का अवसर मिला। अब 'बोले भारत' के साथ सफर जारी है...
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