Sunday, November 2, 2025
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कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया ने केंद्र पर लगाया हिंदी थोपने और कन्नड़ की उपेक्षा का आरोप

70वें कर्नाटक राज्योत्सव (राज्य स्थापना दिवस) के मौके पर मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा कि कर्नाटक हर साल केंद्र को लगभग 4.5 लाख करोड़ रुपये का राजस्व देता है, लेकिन बदले में राज्य को उसका उचित हिस्सा नहीं मिलता।

बेंगलुरु में शनिवार को 70वें कर्नाटक राज्योत्सव (राज्य स्थापना दिवस) के मौके पर मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोला। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र की भाजपा सरकार हिंदी और संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए तो उदारता दिखा रही है, लेकिन अन्य भारतीय भाषाओं, खासकर कन्नड़ की लगातार उपेक्षा की जा रही है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि कर्नाटक हर साल केंद्र को लगभग 4.5 लाख करोड़ रुपये का राजस्व देता है, लेकिन बदले में राज्य को उसका उचित हिस्सा नहीं मिलता। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार कर्नाटक के साथ सौतेला व्यवहार कर रही है।

‘हिंदी थोपने की कोशिशें जारी हैं’

सिद्धारमैया ने कहा कि कन्नड़ भाषा के साथ अन्याय हो रहा है। उन्होंने सरकार पर हिंदी थोपने का आरोप लगाया और कहा कि यह प्रयास लगातार किए जा रहे हैं। सिद्धारमैया ने कहा, हिंदी और संस्कृत के विकास के लिए अनुदान दिया जाता है, लेकिन बाकी भारतीय भाषाओं को नज़रअंदाज़ किया जाता है।

उन्होंने यह भी कहा कि कन्नड़ जैसी शास्त्रीय भाषा को उसके विकास के लिए पर्याप्त धनराशि नहीं दी जा रही, जो एक तरह से सांस्कृतिक अन्याय है।

मातृभाषा पर जोर देते हुए सिद्धारमैया ने क्या कहा?

मुख्यमंत्री ने शिक्षा में मातृभाषा के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि विकसित देशों के बच्चे अपनी मातृभाषा में सोचते, सीखते और सपने देखते हैं। लेकिन हमारे देश में अंग्रेजी और हिंदी बच्चों की प्रतिभा को कमजोर कर रही हैं।

उन्होंने मांग की कि मातृभाषा को शिक्षा का माध्यम बनाने के लिए कानून लाया जाए, ताकि आने वाली पीढ़ियां अपनी भाषा और संस्कृति से जुड़ी रहें।

सिद्धारमैया ने लोगों से आह्वान किया कि वे कन्नड़ विरोधी ताकतों का विरोध करें और भाषा एवं संस्कृति की रक्षा के लिए एकजुट हों। उन्होंने कहा कि शिक्षा और प्रशासन में कन्नड़ की अनदेखी ने कई समस्याएं पैदा की हैं, जिन्हें दूर करने के लिए राज्य सरकार प्रतिबद्ध है।

केंद्र पर ‘कन्नड़’ को लेकर निशाना साधते रहे हैं सिद्धारमैया

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया अक्सर कन्नड़ भाषा को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साधते रहते हैं। सितंबर में एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से ही मुस्कुराते हुए पूछा था कि क्या आपको कन्नड़ आती है? मैं कन्नड़ में बात करूं?

इसपर राष्ट्रपति ने सौम्यता से जवाब दिया, मुख्यमंत्री से कहना चाहूंगी कि कन्नड़ भले ही मेरी मातृभाषा नहीं है, लेकिन यह कर्नाटक की भाषा है। मुझे भारत की हर भाषा, संस्कृति और परंपरा से प्यार है, और मैं उनका सम्मान करती हूं। उन्होंने यह भी कहा कि सब अपनी भाषा को जीवित रखिए। अपनी संस्कृति और परंपरा को जिंदा रखिए। मैं इसके लिए शुभकामनाएं देती हूं। मैं कन्नड़ भाषा धीरे-धीरे सीखने की कोशिश करूंगी।

कन्नड़ भाषा को बढ़ावा देने के लिए तीन कानून लागू हैं

कर्नाटक में कन्नड़ भाषा को बढ़ावा देने और उसकी रक्षा के लिए तीन कानून लागू हैं। कन्नड़ लैंग्वेज लर्निंग एक्ट, 2015; कन्नड़ लैंग्वेज लर्निंग रूल, 2017; और कर्नाटक एजुकेशनल इंस्टीट्यूट रूल, 2022। इन नियमों के तहत सभी सरकारी कार्यालयों, स्कूलों, कॉलेजों और व्यवसायिक प्रतिष्ठानों में कन्नड़ भाषा को प्राथमिकता दी जानी है। सार्वजनिक साइनबोर्ड, विज्ञापन और कार्यस्थलों पर कन्नड़ में लिखना-बोलना अनिवार्य किया गया है। इसके साथ ही, सभी उत्पादों की पैकेजिंग पर नाम और जानकारी कन्नड़ भाषा में छापना भी जरूरी किया गया है। ये प्रावधान सरकारी और निजी दोनों संस्थानों पर लागू होते हैं।

कर्नाटक में लंबे समय से कन्नड़ भाषा के संरक्षण और प्रचार को लेकर आंदोलन होते रहे हैं। हाल ही में बेंगलुरु में दुकानों पर गैर-कन्नड़ नामपट्टिकाओं को लेकर विरोध प्रदर्शन हुए थे। यहां तक कि महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच बस सेवाएं भी कुछ समय के लिए रोकनी पड़ी थीं, क्योंकि बसों पर कन्नड़ में साइनबोर्ड नहीं लगे थे। इसी साल फरवरी में एक बस कंडक्टर और छात्र-छात्रा के बीच कन्नड़ और मराठी भाषा को लेकर विवाद हुआ था। यह झगड़ा “जय महाराष्ट्र बनाम जय कर्नाटक” के नारे तक पहुंच गया था।

1 नवंबर राज्य स्थापना दिवस

भारत में 1 नवंबर को कई राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में राज्य गठन दिवस के रूप में मनाया जाता है। 1956 में इस दिन कर्नाटक, केरल और मध्य प्रदेश का गठन हुआ था, जबकि छत्तीसगढ़ 2000 में मध्य प्रदेश से अलग होकर अस्तित्व में आया। इसके अलावा पुडुचेरी भी 1 नवंबर को अपना मुक्ति दिवस मनाता है, जब 1954 में फ्रांसीसी शासन से उसका औपचारिक विलय भारत में हुआ था।

अनिल शर्मा
अनिल शर्माhttp://bolebharat.com
दिल्ली विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में उच्च शिक्षा। 2015 में 'लाइव इंडिया' से इस पेशे में कदम रखा। इसके बाद जनसत्ता और लोकमत जैसे मीडिया संस्थानों में काम करने का अवसर मिला। अब 'बोले भारत' के साथ सफर जारी है...
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