नई दिल्ली: कनाडा के भारत के साथ रिश्तों में आई तल्खी के पीछे एक बड़ी भूमिका कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की मानी जा रही है। भारत में कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन के समर्थन में उन्होंने बयान दिया था। उस समय भी भारत सरकार ने कड़ा ऐतराज जताते हुए इसे भारत के आंतरिक मसले में हस्तक्षेप बताया था।
इसके बाद पिछले साल कनाडा में हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के मामले में जस्टिन ट्रूडो की सरकार लगातार भारत पर गंभीर आरोप लगाती आ रही है। दोनों देशों के बीच तनाव सोमवार को चरम पर तब पहुंच गया जब कनाडा की सरकार ने निज्जर की हत्या के ‘आरोपियों’ में भारतीय राजनयिकों को गिनाना शुरू कर दिया। भारत ने इसे ‘बेतुका’ करार दिया है जबकि उसने निज्जर को आतंकी घोषित कर रखा था। सवाल है कि जस्टिन ट्रूडो क्यों ऐसे मसलों को उछालने में लगे हैं जिससे भारत के साथ कनाडा के रिश्ते बद से और बदतर हो सकते हैं। क्या ट्रूडो जानबूझकर किसी खास रणनीति के तहत ऐसा कर रहे हैं? आइए इसे एंगल को विस्तार से समझने की कोशिश करते हैं।
जस्टिन ट्रूडो आलोचनाओं के घेरे में
कनाडा में अगले साल अक्टूबर में चुनाव होने हैं। हालांकि, जस्टिन ट्रूडो को घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। उनकी लोकप्रियता में भारी गिरावट, उन्हीं की अपनी पार्टी के भीतर उन्हें और उनकी नीतियों को लेकर बढ़ती आंतरिक असहमति और सिख अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या की जांच पर भारत के साथ रिश्तों को खराब करने जैसी बातों ने उनकी मुश्किलें बढ़ा दी हैं। कई आलोचकों का तर्क है कि निज्जर की हत्या की जांच के प्रति ट्रूडो का दृष्टिकोण तथ्य पता लगाने की बजाय अपने डूबते राजनीतिक भविष्य से ध्यान हटाने के बारे में अधिक हो सकता है।
कनाडा में लगातार गिर रही है ट्रूडो की लोकप्रियता
कनाडा में ट्रूडो की राजनीतिक प्रतिष्ठा में पिछले कुछ सालों में तेजी से गिरावट आ रही है। बढ़ती मुद्रास्फीति, घरों के बढ़ते दाम, हेल्थकेयर सिस्टम में समस्याएं, बढ़ता क्राइम रेट और बढ़ती बेरोजगारी ने कनाडा की जनता में ट्रूडो के खिलाफ माहौल तैयार करना शुरू कर दिया है। जिससे अनुमोदन रेटिंग में उल्लेखनीय गिरावट आई है।
हाल में इसी साल एंगस रीड इंस्टीट्यूट के सर्वेक्षण (Angus Reid Institute poll) के अनुसार ट्रूडो को पसंद नहीं करने की रेटिंग सितंबर 2023 में 39 प्रतिशत से बढ़कर 2024 में 65 प्रतिशत हो गई है। साथ ही उनका अप्रूवल रेटिंग 51 प्रतिशत से गिरकर 30 प्रतिशत हो गया है। जाहिर है इससे उनके सरकार के अस्तित्व को लेकर चिंता बढ़ गई है।
बात महज एक सर्वे तक सीमित नहीं है। ऐसी खबरें हैं कि ट्रूडो को अपनी लिबरल पार्टी के भीतर ही विरोध का जबर्दस्त सामना करना पड़ रहा है। कैनेडियन ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन (सीबीसी) की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि कम से कम 20 लिबरल सांसदों ने उनके इस्तीफे की मांग करते हुए एक पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं। इन्हें डर है कि ट्रूडो के नेतृत्व में चुनाव में पार्टी का पूरी तरह से पतन हो जाएगा।
उपचुनाव में अपने ही गढ़ में हारी लिबरल पार्टी
लिबरल पार्टी और जस्टिन ट्रूडो की घटती लोकप्रियता की जो बात कही जा रही है, उसका एक सबूत हाल में मॉन्ट्रियल और टोरंटो में हुए उप-चुनावों में मिल गया। यह जगहें परंपरागत तौर पर लिबरल पार्टी का गढ़ मानी जाती हैं, लेकिन यहां उसे शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा। यह चुनाव पिछले महीने यानी सितंबर में हुए थे।
विश्लेषकों का कहना है कि उपचुनाव के नतीजे और पार्टी के अंदर बढ़ती असहमति गहरी अस्थिरता का संकेत दे रही है। ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार 30 या 40 सांसद नेतृत्व परिवर्तन की मांग आने वाले दिनों में रख सकते हैं।
सीबीसी के पोल ट्रैकर से पता चलता है कि ट्रूडो की लिबरल पार्टी कंजर्वेटिव से लगभग 20 प्रतिशत अंकों से पीछे चल रही है। कंजर्वेटिव नेता पियरे पोइलिव्रे प्रधानमंत्री के लिए पसंदीदा उम्मीदवार के रूप में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं।
भारत के खिलाफ माहौल से ट्रूडो को क्या हासिल होगा?
भारत द्वारा आतंकी घोषित किए जा चुके निज्जर की हत्या की जांच के बीच ट्रूडो के इरादे भी शक के दायरे में आ गए हैं। ट्रूडो के आलोचकों का मानना है पूरी कार्रवाई वोट बैंक की राजनीति से प्रेरित है। कनाडा के आरोपों के जवाब में भारत ने भी यह बात कही है।
कनाडा में अभी 770,000 से अधिक सिख रहते हैं। कनाडा में यह वर्तमान में चौथा सबसे बड़ा समुदाय है और यह भी सच है इस समुदाय के कुछ तत्व खालिस्तान आंदोलन के कट्टर समर्थक हैं। इनके मुद्दे का समर्थन करके ट्रूडो संभवत: एक प्रमुख वोट बैंक अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश कर रहे हैं।
जानकारों का मानना है कि ट्रूडो का राजनीतिक लाभ के लिए कनाडा में सिख राजनीति में झुकाव का इतिहास रहा है। साल 2018 में भारत की यात्रा के दौरान एक दोषी सिख चरमपंथी को राजकीय रात्रिभोज में आमंत्रित किए जाने को लेकर भी ट्रूडो को आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था।
ट्रूडो की सरकार भी कनाडा में खालिस्तान समर्थक गतिविधियों पर रोक लगाने में कोई दिलचस्पी दिखाती नजर नहीं आई है। इनमें भारतीय वाणिज्य दूतावासों के बाहर हुए विरोध प्रदर्शन भी शामिल है, जब प्रदर्शनकारियों ने भारतीय ध्वज जलाया था। कुल मिलाकर देखा जाए तो ट्रूडो और उनकी सरकरा कनाडा में पल रहे सिख अलगाववादियों के लिए नरम रवैया अपनाती रही है।