नई दिल्लीः भारत सरकार ने गुरुवार, 30 अक्टूबर को जस्टिस सूर्यकांत को सीजेआई नियुक्त करने की अधिसूचना जारी की है। वह हरियाणा राज्य से पहले सीजेआई होंगे। वह 24 नवंबर को शपथ लेंगे।
वर्तमान सीजेआई बीआर गवई 23 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं। जस्टिस सूर्यकांत 53वें सीजेआई के रूप में शपथ लेंगे। उनका कार्यकाल करीब 14 महीने का होगा। वह 9 फरवरी 2027 को रिटायर होंगे।
यह अधिसूचना मुख्य न्यायाधीश गवई द्वारा वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति कांत की सरकार को सिफारिश करके नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने के दो दिन बाद आई है।
बीआर गवई जस्टिस सूर्यकांत के बारे में क्या कहा?
इससे पहले हिंदुस्तान टाइम्स से बात करते हुए सीजेआई बीआर गवई ने अपने उत्तराधिकारी को “पदभार संभालने के लिए सभी पहलुओं में उपयुक्त और सक्षम” बताया और कहा कि न्यायमूर्ति कांत का जीवन का अनुभव उन्हें “उन लोगों के दर्द और पीड़ा को समझने में सक्षम बनाएगा जिन्हें अपने अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायपालिका की सबसे अधिक आवश्यकता है।”
जस्टिस सूर्यकांत का जन्म 10 फरवरी 1962 को हरियाणा के हिसार जिले में पेटवार गांव में हुआ था। वह पांच भाई-बहनों में सबसे छोटे हैं। उनके पिता संस्कृत के अध्यापक थे और उनकी माता होममेकर हैं। जस्टिस सूर्यकांत ने स्थानीय ग्रामीण स्कूलों से पढ़ाई की और हिसार में गवर्नमेंट पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज से ग्रेजुएशन की पढ़ाई की। इसके बाद रोहतक में महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय से एलएलबी की डिग्री हासिल की।
दशकों बाद हाई कोर्ट में जज रहने के दौरान साल 2011 में उन्होंने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से एलएलएम की डिग्री हासिल की। यह उनकी निरंतर शैक्षणिक अनुशासन और बौद्धिक जिज्ञासा को दर्शाता है।
जस्टिस कांत ने अपनी कानूनी प्रैक्टिस हिसार जिले में साल 1984 में शुरू की थी। इसके बाद वह अगले साल चंडीगढ़ गए जहां उन्होंने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में वकालत स्थापित की और अपना नाम स्थापित किया। संवैधानिक, सेवा और सिविल कानून में विशेषज्ञता हासिल करने के बाद उन्होंने कई विश्वविद्यालयों, निगमों और सार्वजनिक निकायों का प्रतिनिधित्व किया। वह सावधानीपूर्वक केस तैयार करने के लिए जाने जाते रहे हैं।
जुलाई 2000 में मात्र 38 साल की उम्र में उन्हें हरियाणा का महाधिवक्ता नियुक्त किया गया। वह राज्य के शीर्ष विधिक पद पर आसीन होने वाले सबसे युवा बन गए। इसके बाद अगले साल उन्हें वरिष्ठ अधिवक्ता नियुक्त किया गया।
2004 में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में हुई पदोन्नति
इसके बाद जनवरी 2004 में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में उनकी पदोन्नति हुई। उनकी जज नियुक्ति को लेकर इस मामले में परिचित लोगों का कहना है कि उन्होंने इस पद की इच्छा नहीं जताई थी और अपनी वकालत और पारिवारिक जिम्मेदारियों को देखते हुए शुरुआत में हिचकिचाहट महसूस की थी।
तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एबी सहारिया के साथ एक बातचीत के बाद उन्होंने इस पद को स्वीकार किया था। सहारिया ने उन्हें कहा था कि न्यायपालिका को उनकी जरूरत है। उनके एक पुराने सहयोगी ने याद करते हुए कहा कि उन्होंने न्यायाधीश पद को उस संस्था के प्रति नैतिक ऋण चुकाने के रूप में देखा जिसने उन्हें आकार दिया।
पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में रहते हुए उन्होंने कई महत्वपूर्ण फैसले सुनाए। इनमें जेल में बंद कैदियों के वैवाहिक मुलाकात के अधिकार को सम्मान और पारिवारिक जीवन को एक पहलू मानना, राम रहीम को दोषी पाए जाने के 2017 में हुई हिंसा के बाद सिरसा स्थित डेरा सच्चा सौदा मुख्यालय की सफाई का आदेश देना और पंजाब-हरियाणा तथा चंडीगढ़ में समन्वित नशा-विरोधी उपायों के लिए कई निगरानी निर्देश जारी करना भी शामिल है।
साल 2018 में उन्हें हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया था जहां उन्होंने प्रशासनिक स्पष्टता और बार के प्रति खुलेपन का रवैया अपनाया जिससे उन्हें व्यापक सम्मान मिला। उन्होंने लगातार इस बात पर जोर दिया कि जिला न्यायपालिका न्याय व्यवस्था का सच्चा दर्पण है।
जस्टिस कांत बहुत सौम्य स्वभाव के हैं। उनके दोस्त कविता, प्रकृति और ग्रामीण जीवन के उनके लगाव की चर्चा करते हैं। साल 2019 में उनकी पदोन्नति सुप्रीम कोर्ट में हुई। उनकी यह पदोन्नति जस्टिस बीआर गवई के साथ हुई थी।
जस्टिस सूर्यकांत ने सुप्रीम कोर्ट में दिए 300 से अधिक निर्णय
बीते छह वर्षों में संवैधानिक, आपराधिक और प्रशासनिक कानून से संबंधित 300 से अधिक निर्णय दिए हैं। इसके साथ ही कई ऐतिहासिक पीठों में वह शामिल रहे हैं। अनुच्छेद-370 को हटाए जाने, नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए पर फैसला, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे की पुष्टि करने वाला संदर्भ के साथ उस पीठ का भी हिस्सा थे जिसने दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को उनकी गिरफ्तारी की वैधता को बरकरार रखते हुए जमानत दी थी।
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे वाले मामले में उन्होंने असहमति व्यक्त की थी। इसके अलावा वह राष्ट्रपति-राज्यपाल विधेयक की स्वीकृति समय-सीमा संदर्भ पर सुनवाई करने वाली पीठ का भी हिस्सा हैं। इस मामले में फैसला अगले महीने आने की उम्मीद है। इसके अलावा प्रवर्तन निदेशालय की शक्तियों से संबंधित पीएमएलए के फैसले की आगामी समीक्षा की पीठ का हिस्सा भी वह रहे हैं।
अदालती कामकाज से इतर उन्होंने कानूनी सहायता और संस्थागत सुधारों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इससे पहले वह राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) के शासी निकाय में दो कार्यकाल पूरे कर चुके हैं और वर्तमान में इसके अध्यक्ष भी हैं।
इसी साल जुलाई में उन्होंने वीर परिवार सहायता योजना की शुरुआत की है। इसका उद्देश्य सैनिकों, पूर्व सैनिकों और उनके परिवारों को निशुल्क कानूनी सुरक्षा प्रदान करना है। इसे उन्होंने संवैधानिक कर्त्तव्यों की पूर्ति कहा है।
वह ऐसे समय में सीजेआई का पदभार ग्रहण कर रहे हैं जब न्यायपालिका जटिल संवैधानिक प्रश्नों और पारदर्शिता की अपेक्षाओं का सामना कर रही है। उनके कार्यकाल के दौरान डिजिटलीकरण के साथ-साथ प्रक्रियात्मक सुधार और जिला स्तर पर न्यायिक बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की उम्मीद है।

