जम्मू: लोकसभा चुनाव में इंजीनियर राशिद का जेल के अंदर से बारामूला से चुनाव लड़ना और फिर जीत हासिल करना चर्चा में रहा। हालांकि, जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में तस्वीर बदली हुई नजर आई, जबकि इंजीनियर राशिद जमानत पर बाहर हैं। इंजीनियर राशिद की आवामी इत्तेहाद पार्टी (एआईपी) को लेकर कयास लगाए जा रहे थे कि विधानसभा चुनाव में घाटी में राजनीतिक समीकरण को प्रभावित करने में इसकी बड़ी भूमिका हो सकती है। हालांकि सभी बातें हवा-हवाई साबित हुई।
इंजीनियर राशिद की पार्टी को जबकि प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी से एक तरह से रणनीतिक तौर पर समर्थन हासिल था। एआईपी को उम्मीद थी कि जमात का समर्थन मिलने से उनके लिए राह आसान होगी लेकिन पार्टी का खाता भी नहीं खुला। पार्टी समर्थित केवल एक निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव जीत सका। जमात को 2019 में बैन किया गया था।
इंजीनियर राशिद की पार्टी का हाल
जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में एआईपी के लिए एकमात्र सफलता उत्तरी कश्मीर के लंगेट में कही जा सकती है। यहां से राशिद के भाई शेख खुर्शीद ने पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के इरफान पंडितपुरी के खिलाफ 1,602 वोटों के मामूली अंतर से जीत हासिल की। शेख खुर्शीद निर्दलीय चुनाव लड़े थे। इससे पहले राशिद दो बार साल 2008 और 2014 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में लंगेट से विधायक रह चुके हैं।
बहरहाल, इंजीनियर राशिद की पार्टी के प्रदर्शन की बात करें तो 34 एआईपी उम्मीदवारों में से 31 की जमानत जब्त हो गई। इनमें से 9 उम्मीदवारों 1,000 से भी कम वोट मिले।
एआईपी का ऐसा प्रदर्शन उस समय है जब बमुश्किल चार महीने पहले राशिद ने जेल में रहते हुए बारामूला से लोकसभा चुनाव में शानदार जीत हासिल की थी। राशिद ने तब नेशनल कांफ्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के प्रमुख सज्जाद लोन को हराया था।
राशिद ने तब बारामूला लोकसभा सीट में आने वाले 18 विधानसभा क्षेत्रों में से 15 पर बढ़त हासिल की थी। हालांकि, विधानसभा चुनावों में अपने पूरे अभियान के दौरान रशीद दूसरे दलों के इन्हीं आरोपों से घिरे रहे कि उन्हें मतदान से पहले अंतरिम जमानत पर भाजपा के इशारे पर रिहा किया गया ताकि एनसी-कांग्रेस और पीडीपी के वोटों को काट सकें।
राशिद की पार्टी को जमात के साथ का भी कोई फायदा नहीं मिला। जमात-ए-इस्लामी समर्थित 10 उम्मीदवारों में से आठ की जमानत जब्त हो गई। केवल कुलगाम के उम्मीदवार सयार अहमद रेशी ने कड़ी टक्कर दी और 25,000 से अधिक वोट हासिल किए। हालांकि आखिरकार यहां से सीपीआई (एम) नेता मोहम्मद यूसुफ तारिगामी से लगभग 8,000 वोटों से जीत हासिल की।
जमात-ए-इस्लामी रहा बेहअसर
राशिद की पार्टी के अलावा जमात ने कुछ निर्दलीय उम्मीदवारों का भी समर्थन किया था। हालांकि, इसका भी खास असर नतीजों में नहीं दिखा। जैनापोरा में जमात समर्थित उम्मीदवार अजाज अहमद मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस के शौकत अहमद गनी से लगभग 13,000 वोटों से हार गए। पीडीपी से बागी हुए मीर को जमात ने तब समर्थन दिया था जब पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया। मीर इसके बाद निर्दलीय मैदान में उतरे।
इसके अलावा जमात के गढ़ माने जाने वाले सोपोर जिसका प्रतिनिधित्व सैयद अली शाह गिलानी ने तीन बार किया था, वहां पार्टी समर्थित उम्मीदवार मंजूर अहमद कालू को केवल 406 वोट मिले। सोपोर सीट पर 51,000 से अधिक वोट पड़े।
हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार कश्मीर विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर नूर बाबा ने कहा कि लोग स्पष्ट जनादेश चाहते हैं। उन्होंने कहा कि कश्मीर की राजनीति में जमात कभी भी बड़ा फैक्टर नहीं साबित हुई है। उन्होंने कहा, ‘उन्हें कभी भी कोई बड़ी चुनावी सफलता नहीं मिली। 1972 के चुनावों को छोड़कर, जब उनके पास कुछ चार से पांच सीटें थीं। वे ज्यादातर एक से तीन सीटें ही जीतने में कामयाब होते रहे हैं।’
प्रोफेसर नूर बाबा ने कहा कि लोकसभा चुनाव में लोगों ने सहानुभूति के कारण राशिद को वोट दिया। उन्होंने कहा, ‘उस समय वह जेल में था। इसलिए लोगों ने उन्हें पीड़ित मान लिया. उन्होंने जिस तरह की राजनीति की, उसकी कुछ पुरानी यादें भी लोगों के मन में थीं। अब स्थिति अलग थी। वह अपनी पार्टी के लिए प्रचार कर रहे थे और अब उनकी अपनी महत्वाकांक्षा अधिक दिख रही थी।’
अफजल गुरु के भाई को नहीं मिला लोगों का समर्थन
साल 2001 में संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरु के भाई ऐजाज अहमद गुरु की भी करारी हार हुई। ऐजाज अहमद ने सोपोर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा था, लेकिन NOTA से भी कम वोट मिले। ऐजाज अहमद ने यहां से निर्दलीय चुनाव लड़ा था। सोपोर सीट पर नेशनल कॉन्फ्रेंस के इरशाद रसूल ने जीत दर्ज की। उन्हें 26,975 वोट मिले। सोपोर में महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीडीपी के उम्मीदवार इरफान अली लोन को केवल 1687 वोट जबकि ऐजाज अहमद गुरु को केवल 129 वोट मिले। इस सीट पर नोटा को 341 वोट मिले हैं।