नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के संस्थापक शेख अब्दुल्ला ने जब जम्मू-कश्मीर के शीर्ष कार्यकारी के रूप में अपनी पारी शुरू की थी, तब उन्हें राज्य का प्रधानमंत्री कहा जाता था। इसके बाद उनके बेटे फारूक अब्दुल्ला एक से अधिक बार मुख्यमंत्री बने। अब उमर अब्दुल्ला दूसरी बार जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री बने हैं और यह अब एक केंद्र शासित प्रदेश (यूटी) है। इस तरह जनवरी 2009 से 2014 के सीएम के रूप में अपने पहले कार्यकाल में उन्हें मिली शक्तियों की तुलना में फिलहाल उनके पास बहुत सीमित शक्तियां हैं।
इस लिहाज से कम शक्तियां होना और उनके पास जो भी थोड़ी-बहुत शक्तियां हैं, उसे उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के साथ साझा करना उमर अब्दुल्ला के लिए पहली और सबसे बड़ी चुनौती है, जिससे उन्हें निपटना है। एक वो समय था जब उमर एक ऐसे राज्य के सीएम थे, जिसका अपना संविधान था, और जिसके पास भारतीय संघ के किसी भी राज्य की तुलना में कहीं अधिक शक्तियां थीं। उन्हें अब खुद को एक नई कड़वी सच्चाई से सहमत करना होगा कि आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अधिकारियों पर उनका कोई नियंत्रण नहीं होगा।
इसका मतलब यह है कि सभी 20 जिलों के शीर्ष अधिकारी, चाहे वे उपायुक्त (डीसी) और पुलिस अधीक्षक (एसपी) हों, उनके प्रति जवाबदेह नहीं हैं। वह उन्हें बदल भी नहीं सकेंगे क्योंकि उनका तबादला करना उमर अब्दुल्ला को मिली शक्तियों में शामिल नहीं है। इस तरह गृह विभाग, जो कानून और व्यवस्था सहित खासकर अनिवार्य रूप से पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियों से संबंधित है, उमर अब्दुल्ला के नियंत्रण से बाहर है।
मौजूदा व्यवस्था में अखिल भारतीय सेवा अधिकारी एलजी के प्रति जवाबदेह हैं जो हर मायने में सत्ता का समानांतर केंद्र हैं। इस तरह एलजी और सीएम को शासन के मामलों में अक्सर एक-दूसरे से टकराते हुए अपने रास्ते पर आगे बढ़ना होगा। आशा करनी चाहिए कि भविष्य में इन दोनों शीर्ष अधिकारियों के बीच संबंध सौहार्दपूर्ण और संतुलित बने रहेंगे। लेकिन यह कहना जितना आसान है, क्या करना उतना ही आसान है। शायद इस बारे में अगले छह महीनों में पता चल जाएगा कि वे एक-दूसरे के साथ कैसा व्यवहार करते हैं।
हमारे सामने केंद्रशासित प्रदेश दिल्ली का उदाहरण है जहां उपराज्यपाल और पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अक्सर कई मौकों आमने-सामने आते रहे थे। केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (एएएम) के पास अब जम्मू-कश्मीर में भी एक विधायक है और यह देखना दिलचस्प होगा कि डोडा से विधायक बने ‘आप’ के मेहराज मलिक आने वाले दिनों में कैसा रूख अपनाते हैं। यहां इस बात का भी जिक्र जरूरी हो जाता है कि जम्मू-कश्मीर पांचवां राज्य/केंद्र शासित प्रदेश बन गया है जहां ‘आप’ का विधायक है।
उमर अब्दुल्ला से लोगों को क्या उम्मीदेें हैं?
अब सवाल है कि उमर अब्दुल्ला से लोगों की क्या उम्मीदें हैं? दूसरे शब्दों में कहें तो उमर 2.0 से क्या उम्मीदें हैं? चुनाव प्रचार के दौरान उनकी पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) ने तो एक तरह से कहें तो चाँद तोड़कर लाने जैसे वायदे किए थे। पार्टी ने जो अनगिनत वादे किए थे, अगर उन्हें जमीनी स्तर पर वास्तविक रूप में क्रियान्वित किया गया, तो इसमें बहुत सारा पैसा खर्च होगा।
पार्टी ने कहा था कि वह प्रत्येक घर को 200 यूनिट बिजली मुफ्त देगी। यहां देखने वाली बात ये है कि बाहर से बिजली खरीदने की वजह से जम्मू-कश्मीर को ऐसे भी प्रति वर्ष 5,000 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान होता है, जो एक तरह से लोगों के लिए सब्सिडी ही है। दिल्ली में जहां लगभग सभी उपभोक्ताओं के पास मीटर लगे हैं, जम्मू-कश्मीर में केवल 40% उपभोक्ताओं के पास बिजली मीटर हैं। ऐसे में एनसी यह कैसे सुनिश्चित करेगी कि केवल 200 यूनिट बिजली मुफ्त दी जाएगी?
बिजली विकास विभाग (पीडीडी) के कुछ अधिकारियों ने नाम सार्वजनिक नहीं करने के अनुरोध के साथ बताया कि इस योजना को लागू करने का मतलब 10,000 करोड़ रुपये की तक सब्सिडी प्रदान करना हो सकता है। ये पैसा कहां से आएगा? यहां यह उल्लेख करना जरूरी है कि जम्मू-कश्मीर राजस्व घाटे वाला केंद्र शासित प्रदेश है और यहां तक कि सरकारी कर्मचारियों का वेतन भी आंशिक रूप से केंद्र के अनुदान की वजह से दिया जाता है।
नेशनल कॉन्फ्रेंस ने यह भी कहा था कि वह आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) श्रेणी की महिलाओं को प्रति माह 5,000 रुपये प्रदान करेगी। कितनी महिलाएं इस अनुदान को पाने के लिए पात्र होंगी? मतदाताओं से एक और लोक-लुभावन वादा ये भी किया गया प्रति व्यक्ति 10 किलो मुफ्त चावल दिया जाएगा। यदि इसे लागू किया गया तो इस मद पर होने वाला खर्च हजारों करोड़ रुपये में होगा। ये पैसा कहां से आएगा?
उमर अब्दुल्ला की पार्टी ने सार्वजनिक परिवहन में महिलाओं को मुफ्त यात्रा की सुविधा देने का भी वादा किया था, जिसका अर्थ रोडवेज परिवहन निगम (आरटीसी) के स्वामित्व वाली बसों से था। हालांकि हैरान करने वाली बात ये है कि आरटीसी पहले से ही खराब स्थिति में है। ऐसे में इस योजना को लागू करने के लिए पैसा कहां से आएगा?
इन तमाम वादों के अलावा पार्टी ने जरूरतमंद परिवारों के लिए एक विवाह सहायता योजना शुरू करने की घोषणा की थी, जिसमें उन्हें 75,000 रुपये देने का वादा था। अब जबकि नेशनल कॉन्फ्रेंस के पास मुख्यमंत्री पद है, तो इन वादों को पूरा करने का समय आ गया है।
जो अधिकार क्षेत्र में नहीं, एनसी उसका क्या करेगी?
एनसी ने अपने घोषणापत्र में कुछ ऐसे वादे भी किए थे जो उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं। उदाहरण के लिए इसने सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) को रद्द करने का वादा किया था जो 1978 में उमर के दादा शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के कार्यकाल के दौरान पारित किया गया था।
एनसी के घोषणापत्र में जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक और कानूनी स्थिति की बहाली भी शामिल है। इसका मतलब यह है कि पार्टी ने बताया है कि वह अगस्त 2019 से पहले की स्थिति की बहाली के लिए प्रतिबद्ध है। हालांकि सवाल है कि एनसी इस तरह वादा कैसे पूरा कर सकती है जबकि यह ऐसा मुद्दा है जिस पर केवल केंद्र का ही अधिकार क्षेत्र है।
बहरहाल, तमाम परिस्थितियों को देखते हुए यह देखना भी दिलचस्प होगा कि एनसी ने अपने घोषणापत्र में जो वादे किए हैं, वे क्या वाकई पूरे हो सकेंगे?