श्रीनगर शहर के मध्य में रेडियो स्टेशन के पास रविवार को लगे बाजार में खरीदारी कर रहे लोगों के बीच एक आतंकवादी ने हथगोला फेंका। इस घटना में कम से कम एक दर्जन लोग घायल हो गए और उनका इलाज नजदीकी अस्पताल में किया जा रहा है। गनीमत रही कि घायलों में से किसी को भी कोई जानलेवा चोट नहीं लगी है और पुलिस महानिरीक्षक (कश्मीर) वीके विरदी ने सभी की हालत को स्थिर बताया है।
इस घटना से एक दिन पहले 2 नवंबर (शनिवार सुबह) को श्रीनगर शहर के खानयार इलाके में आतंकियों और सुरक्षा बलों के बीच मुठभेड़ शुरू हो गई थी। मुठभेड़ में लश्कर ए तैयबा (एलईटी) का एक आतंकवादी उस्मान मारा गया, जिसे पाकिस्तानी माना जा रहा है। वह कई वर्षों से आतंकी गतिविधियों में सक्रिय था। पुलिस ने कहा कि वह एक इंस्पेक्टर को गोली मारने की घटना में भी शामिल था जिनकी बाद में मौत हो गई थी।
शनिवार को ही एक अन्य मुठभेड़ में अनंतनाग जिले के लारनू इलाके में दो आतंकवादी मारे गये। सुरक्षा बलों को इस ऑपरेशन के दौरान कोई नुकसान नहीं हुआ।
इन घटनाओं से भी पहले 1 नवंबर (शुक्रवार) की शाम को आतंकवादियों ने कश्मीर के बडगाम जिले के मगाम इलाके में दो गैर-स्थानीय मजदूरों को गोली मारकर घायल कर दिया। दोनों सहारनपुर के रहने वाले थे। लगभग इसी समय बांदीपोरा जिले के पनार इलाके में सुरक्षा बलों और आतंकवादियों के बीच मुठभेड़ शुरू हो गई थी। शनिवार को भी सुरक्षा बलों ने पनार में तलाशी और घेराबंदी जारी रखी लेकिन आतंकी भागने में कामयाब रहे।
कश्मीर के 7 जिलों में आतंकी घटनाएं
लगातार तीन दिनों तक कश्मीर के अलग-अलग हिस्सों से आतंकी घटनाएं सामने आईं। इसके साथ ही पिछले एक पखवाड़े में कश्मीर के 10 में से कम से कम सात जिलों श्रीनगर, गांदरबल, पुलवामा, शोपियां, बडगाम, अनंतनाग और बांदीपोरा में ऐसी घटनाएं हुई हैं। कश्मीर के तीन जिले कुपवाड़ा, बारामूला और कुलगाम ही इन हालिया घटनाओं से बचे हुए हैं। इन तीनों जिलों में भी आतंकियों की मौजूदगी है और वे आने वाले दिनों में अपनी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए दुर्गम इलाकों को चुन सकते हैं।
इन तमाम घटनाओं के अलावा 28-29 अक्टूबर को जम्मू क्षेत्र के अखनूर सेक्टर में 24 घंटे से अधिक समय तक चली मुठभेड़ में तीन आतंकवादी मारे गए थे। इस ऑपरेशन में सुरक्षा बलों का फैंटम नाम का एक उच्च प्रशिक्षित कुत्ता चपेट में आ गया था। सौभाग्य से मुठभेड़ में शामिल पुलिस, बीएसएफ और सेना के जवानों में से कोई हताहत नहीं हुआ।
इस साल आतंकवादियों ने जम्मू क्षेत्र के 10 में से चार जिलों- डोडा, उधमपुर, रियासी और कठुआ में हमलों को अंजाम दिया है। सांबा, जम्मू, राजौरी, पुंछ, रामबन और किश्तवाड़ जिले बचे हुए हैं। हालांकि, आने वाले दिनों में अगर और भी आतंकी घटनाएं हुईं तो इन जिलों पर भी असर पड़ सकता है।
आतंकवादी क्या साबित करना चाहते हैं?
ऐसा लगता है कि आतंकवादी और उनके आका सुरक्षा बलों और सरकार को यही संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि वे जब चाहें जम्मू-कश्मीर में कहीं भी हमला कर सकते हैं। आतंकवादियों की बदली रणनीति की वजह से केंद्र शासित प्रदेश (यूटी) के अधिकांश हिस्सों में सुरक्षा बलों को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। ‘मारो और भागो’ आतंकवादियों की पसंदीदा रणनीति बन गई है क्योंकि संभवत: सुरक्षा बलों की बढ़ती निगरानी एक ऐसी चीज है जिसे वे चुनौती देना चाहते हैं।
आतंकवादियों ने गांदरबल जिले के सोनमर्ग के पास 20 अक्टूबर को गगनगीर में एक कश्मीरी डॉक्टर सहित सात लोगों की हत्या कर दी थी। इसके बाद कश्मीर के विभिन्न हिस्सों में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए। गगनगीर घटना से पहले और बाद में भी जम्मू-कश्मीर के बाहर के श्रमिकों को निशाना बनाने की घटनाएं सामने आई हैं। हालांकि यह लंबे समय के बाद था कि कोई स्थानीय कश्मीरी आतंकियों का निशाना बना। ऐसा लगता है कि आतंकी घटना को गैर-स्थानीय श्रमिकों को लक्ष्य बनाकर अंजाम दिया गया था लेकिन स्थानीय कश्मीरी डॉक्टर भी निशाना बन गया।
घटना के बाद मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि सरकार सिविल सेवा में जाने की इच्छा रखने वाले डॉक्टर के बेटे की शिक्षा के संबंध में सभी जरूरतों का ध्यान रखेगी। हमले में मारे गए छह गैर-स्थानीय श्रमिकों के संबंध में किसी भी ओर से ऐसे शब्द नहीं कहे गए। ये श्रमिक जेड मोड़ सुरंग के निर्माण में शामिल थे, जो एक बहुत ही महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा परियोजना है। उमर के बयान से साफ है कि आधिकारिक स्तर पर भी स्थानीय और गैर-स्थानीय लोगों के बीच फर्क किया जा रहा है।
गैर स्थानीय लोग आतंकियों के निशाने पर
जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश (यूटी) से रिपोर्ट की गई आतंकवाद की अधिकांश घटनाओं में आतंकियों ने हमेशा गैर स्थानीय लोगों को निशाना बनाया है। स्थानीय और गैर-स्थानीय लोगों के बीच आतंकवादियों द्वारा यह अंतर एक खास नैरेटिव बनाने के लिए किया जा रहा है। वे दरअसल ‘कश्मीर के शोषण’ की कहानी गैर स्थानीय को दोषी बनाकर दिखाना चाहते हैं। इन ‘गैर स्थानीयों’ में श्रमिक और सेना दोनों शामिल हैं। आतंकवादी यहां ये भी दिखाने की कोशिश करते हैं कि वे पर्यटकों को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं!
यदि गैर-स्थानीय कर्मचारियों, श्रमिकों का कश्मीर में स्वागत नहीं हैं तो फिर गैर-स्थानीय पर्यटकों का स्वागत क्यों होना चाहिए? सच तो यह है कि पर्यटक पैसा खर्च करते हैं और औसत कश्मीरी परिवारों में समृद्धि लाने की वजह बनते हैं। इसके उलट गैर-स्थानीय श्रमिक कश्मीर में अपनी आजीविका कमाते हैं और पैसा अपने गृह राज्यों में ले जाते हैं। यही बुनियादी कारण है कि पर्यटकों का स्वागत होता है जबकि वे भी बाहरी हैं, वहीं बाहर से आए श्रमिकों को निशाना बनाया जाता है।
…तो फिर चरमरा जाएगी अर्थव्यवस्था
थोड़ा और गहराई में जाएंगें तो आप पाएंगे कि आतंकवादी जिस भेद को कायम रखना चाहते हैं वह बहुत सतही और विघटनकारी है। यदि गैर-स्थानीय श्रमिक डर के कारण, या किसी अन्य वजहों से सामूहिक रूप से यहां से चले जाते हैं, तो कश्मीर की स्थानीय अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित होगी। सेब और अन्य फलों की कटाई के लिए पर्याप्त हाथ उपलब्ध नहीं होंगे। चिनाई कार्य और नियमित निर्माण से संबंधित अन्य कार्य करने के लिए पर्याप्त लोग नहीं मिलेंगे। यहां तक कि होटलों में रसोई और रूम सर्विस का काम करने के लिए भी पर्याप्त लोग नहीं होंगे।
यहां मुद्दा यह भी है कि गैर-स्थानीय लोगों की गैरहाजिरी में फलों की कटाई की लागत काफी बढ़ जाएगी, जिससे ग्राहक भी इनसे दूर हो जाएंगे। इसी तरह का प्रभाव अन्य क्षेत्रों में भी दिख जाएगा, जिससे अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचने की संभावना है। इसी से जुड़ा एक और प्रश्न जो पूछे जाने की जरूरत है वह ये कि कश्मीर के बाहर कश्मीरी क्या हैं? क्या वे भारतीय हैं या भारत के सभी हिस्सों में ‘बाहरी’ हैं? जब वे कश्मीर में नहीं हों तो क्या भारत में हर जगह उनके साथ ‘बाहरी’ जैसा व्यवहार किया जाना चाहिए?
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