वो 26 अक्टूबर, 1947 की तारीख थी। महाराजा हरि सिंह द्वारा विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने के बाद जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बन गया। हरि सिंह ने 1947 के भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम के तहत अपने अधिकार का प्रयोग करते हुए ऐसा किया था। इस अधिनियम के तहत रियासतों को भारत या पाकिस्तान में से किसी एक में शामिल होने का विकल्प चुनने की अनुमति दी गई थी। यहां ये भी जानना जरूरी है कि इन रियासतों के शासकों के पास ऐसा करने का अधिकार केवल एक बार का ही था।
रियासतों के लोगों के पास कोई अधिकार नहीं था बल्कि शासकों को स्वयं भारत या नए राष्ट्र पाकिस्तान का हिस्सा बनने का फैसला लेना था। लगभग उन्हीं दिनों, आजादी की शुरुआत में 550 से अधिक रियासतें भारत में शामिल हुई थीं। विलय पत्र का केवल एक मसौदा और संस्करण था जिस पर इन सभी रियासतों ने हस्ताक्षर किए थे। संयोगवश, जम्मू-कश्मीर को छोड़कर इन सभी रियासतों के भारत में विलय का काम सरदार पटेल की अध्यक्षता वाले मंत्रालय द्वारा किया गया था।
महाराजा हरि सिंह ने भी उसी विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए थे जिस पर उनसे पहले दर्जनों अन्य लोगों ने हस्ताक्षर किए थे। हरि सिंह ने जिस दस्तावेज पर उन्होंने हस्ताक्षर किए थे, वह किसी भी तरह से उनके पहले और उनके बाद के अन्य शासकों द्वारा हस्ताक्षरित दस्तावेज से अलग नहीं था। हां, कुछ रियासतों ने जरूर जम्मू-कश्मीर के शासक के बहुत बाद संबंधित दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए थे।
भोपाल का जम्मू-कश्मीर के बहुत बाद हुआ था विलय
जम्मू-कश्मीर के बाद विलय पत्र पर देर से हस्ताक्षर किए जाने का सबसे प्रसिद्ध मामला भोपाल रियासत का था। इसके शासक नवाब हमीदुल्ला खान ने 30 अप्रैल, 1949 को विलय दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए। इस प्रकार इसके बाद यह भी भारत का राज्य बन गया।
संयोग से भोपाल विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले अंतिम रियासतों में से एक था। यह अब मध्य प्रदेश की राजधानी है। इस तथ्य के बावजूद कि भोपाल ने जम्मू-कश्मीर के 18 महीने बाद विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए, इसके बारे में कोई सवाल नहीं पूछा जाता है। इसकी वजह यह है कि रियासतों के लिए स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त, 1947) से पहले विलय दस्तावेज पर हस्ताक्षर करना कोई अनिवार्य नहीं था। इसके अलावा ऐसी कोई समय सीमा या अंतिम तारीख भी नहीं रखी गई थी जिसके पहले रियासत के शासकों को भारत या पाकिस्तान में शामिल होने को लेकर कोई फैसला लेना जरूरी था।
महाराज हरि सिंह पर आरोप लगाना गलत
जम्मू-कश्मीर के तब के महाराजा हरि सिंह पर कुछ लोग विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने में देरी करने का आरोप लगाते आए हैं। ये लोग यह भी कहते हैं कि इसी देरी के कारण जम्मू-कश्मीर में परेशानी शुरू हुई लेकिन यह एकदम झूठ है। साल 1930 की शुरुआत में, लंदन में राजकुमारों के एक गोलमेज सम्मेलन में उन्होंने स्पष्ट रूप से अपनी भारतीयता का प्रदर्शन किया था। यही कारण था कि अंग्रेज उन्हें पसंद नहीं करते थे, उन्होंने उनके खिलाफ साजिश रची और पाकिस्तान को उनके द्वारा शासित क्षेत्र का एक हिस्सा हड़पने में मदद की।
जम्मू-कश्मीर दरअसल भारत और पाकिस्तान दोनों से सटा था और इसी परिस्थिति ने महाराजा हरि सिंह के लिए समस्याएं पैदा की। उन्होंने अगस्त 1947 में पाकिस्तान के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसमें स्थिति को जस के तस बनाए रखने की बात थी। हरि सिंह ने भारत के साथ भी इसी पर हस्ताक्षर करने की पेशकश की थी। हालांकि, दिल्ली ने हरि सिंह के इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया था, क्योंकि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का उनके प्रति अनुकूल रुख नहीं था। यह साबित करने के लिए रिकॉर्ड पर कुछ भी नहीं है कि महाराजा हरि सिंह भारत में शामिल होने को लेकर कभी संदेह में थे।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था?
जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय की अंतिम स्थिति के बारे में सवाल उठाने का कोई कारण नहीं बनता है। संयोग से, अनुच्छेद 370 से संबंधित याचिकाओं पर अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- जम्मू-कश्मीर के पास देश के अन्य राज्यों द्वारा प्राप्त शक्तियों और विशेषाधिकारों से अलग कोई ‘आंतरिक संप्रभुता’ नहीं है। 25 नवंबर, 1949 को युवराज करण सिंह द्वारा जारी विलय पत्र (आईओए) और उद्घोषणा पर हस्ताक्षर करने के बाद इसकी कोई संप्रभुता नहीं थी। यह उद्घोषणा जम्मू-कश्मीर द्वारा अपने संप्रभु शासक के माध्यम से भारत को संप्रभुता के पूर्ण और अंतिम आत्मसमर्पण को दर्शाती है, जिसके लोग संप्रभु हैं।
कश्मीर स्थित कुछ राजनेता अक्सर भारत के साथ जम्मू-कश्मीर के एकीकरण पर सवाल उठाते हुए एक खास नैरेटिव गढ़ने की कोशिश करते हैं। उनका कहना है कि भारत की तरह जम्मू-कश्मीर का भी अपना एक संविधान था। हालांकि, इस तथाकथित संविधान पर सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियां उनकी इस धारणा का खंडन करती नजर आती हैं। इसमें कहा गया था- ‘जम्मू-कश्मीर का संविधान केवल भारत संघ और जम्मू-कश्मीर राज्य के बीच संबंधों को और परिभाषित करने के लिए था। संबंध को पहले ही आईओए (नवंबर 1949 की उद्घोषणा) और भारत के संविधान द्वारा परिभाषित किया गया है। जम्मू-कश्मीर का संविधान केवल आंतरिक शासन का एक दस्तावेज था, कोई समानांतर संविधान नहीं। इसे भारत के संविधान की तुलना में ‘निचला’ दर्जा प्राप्त था।’
हरि सिंह ने अपने पूरे क्षेत्र का किया था विलय
एक बार जब जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय से संबंधित सही कानूनी स्थिति और तथ्यों को ठीक से समझ लिया जाए तो इसकी वैधता के बारे में कोई भी संदेह दूर हो जाता है। खास बात ये भी है कि महाराजा हरि सिंह ने अपने पूरे राज्य, सभी क्षेत्रों को भारत में शामिल किया था। हालांकि, पीओजेके, गिलगित-बाल्टिस्तान के क्षेत्रों को पाकिस्तान ने युद्ध में छीन लिया था क्योंकि नेहरू ने भारतीय सेना को रूकने का आदेश उस समय दे दिया था जब वह जीत की ओर बढ़ रही थी। हम आज तक इन क्षेत्रों को वापस नहीं ले सके हैं।
भविष्य में किसी दिन ये क्षेत्र जिन्हें आजकल मोटे तौर पर पाकिस्तान अधिकृत जम्मू कश्मीर (POJK) और G-B कहा जाता है, वापस भारत में शामिल हो जायेंगे। उस दिन इन क्षेत्रों को लेकर भारतीय संसद में पारित 22 फरवरी 1994 के सर्वसम्मत प्रस्ताव का भी मान रह जाएगा।