नई दिल्ली: केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत के पहले शुक्र ग्रह के मिशन को पिछले हफ्ते मंजूरी दे दी थी। इसके तहत इसरो ने मार्च-2028 में इस मिशन को लॉन्च करने का लक्ष्य रखा है। इससे पहले 2013 में इसको ने मार्स ऑर्बिटर मिशन को सफलतापूर्वक लॉन्च किया था। ऐसे में यह भारत का दूसरा इंटरप्लेनेटरी मिशन (दूसरे ग्रह के लिए) है।
इसरो के शुक्र मिशन का उद्देश्य शुक्र ग्रह के चारों ओर कक्षा में परिक्रमा लगाते हुए उसका अध्ययन करना है। इस मिशन में शुक्र की सतह, इसके वायुमंडल, इसके आयनमंडल और सूर्य के साथ इसके संपर्क और उसके प्रभाव की जांच करने का लक्ष्य होगा। इसके लिए भारत और विदेशों से वैज्ञानिक उपकरणों का इस्तेमाल किया जाएगा।
शुक्र ग्रह का अध्ययन क्यों अहम है?
शुक्र ग्रह दरअसल वैज्ञानिकों की नजर में बेहद खास है। इसे कई बार पृथ्वी का जुड़वा ग्रह भी कहा जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि शुक्र का द्रव्यमान, घनत्व और आकार धरती की तरह है। इसलिए वैज्ञानिकों को लगता है कि शुक्र का अध्ययन उन्हें पृथ्वी के विकास के बारे में भी अहम सुराग दे सकता है। खासतौर पर ऐसा माना भी जाता है कि शुक्र ग्रह पर किसी समय पानी था लेकिन अब यह एक सूखा और धूल भरा ग्रह बन गया है। वैसे यह ग्रह कई मायनों में पृथ्वी से बेहद भिन्न भी है।
शुक्र की ये बातें चौंकाने वाली
शुक्र ग्रह किन मायनों में पृथ्वी से बेहद अलग है। इसे भी जान लीजिए। दरअसल शुक्र ग्रह की सतह का तापमान लगभग 462 डिग्री सेल्सियस है, जो बुध से भी अधिक गर्म है। जबकि बुध ग्रह सूर्य के सबसे करीब है। वैज्ञानिकों का मानना है कि शुक्र पर ऐसी परिस्थिति अनियंत्रित ग्रीनहाउस प्रभाव के कारण है। ऐसा माना जाता है कि सूर्य से ग्रह की निकटता के कारण शुक्र ग्रह की सतह पर मौजूद पानी तेजी से वाष्पित हो गया। चूंकि जलवाष्प एक ग्रीनहाउस गैस है, ऐसे में इसने ग्रह को और अधिक गर्म कर दिया। इस प्रक्रिया से उसकी सतह से पानी और तेजी से वाष्पित हुई।
शुक्र की सतह का ये गर्म तापमान ही वजह है कि वहां पर कोई भी लैंडर कुछ घंटों से अधिक समय तक नहीं रह पाया।दूसरी अहम बात ये भी है कि शुक्र पर वायुमंडलीय दबाव पृथ्वी की तुलना में बहुत अधिक है। यह लगभग पृथ्वी पर महासागरों के नीचे महसूस होने वाले दबाव के समान है। इसके अलावा तीसरी बड़ी बात ये भी है कि शुक्र का 96.5% वातावरण कार्बन डाइऑक्साइड से बना है और ग्रह पर सल्फ्यूरिक एसिड के बादल हैं। साथ ही शुक्र ग्रह पृथ्वी की तुलना में अपनी धुरी पर बहुत धीमी गति से घूमता है। शुक्र का एक चक्कर पृथ्वी के लगभग 243 दिनों के बराबर है।
शुक्र ग्रह के मिशन को कैसे दिया जाएगा अंजाम?
पृथ्वी और शुक्र ग्रह हर 19 महीने में एक दूसरे के सबसे करीब आते हैं। इसरो के लिए यही सटीक समय होगा जब कम समय में यान को शुक्र ग्रह की ओर भेजने के मिशन को लॉन्च किया जा सकता है। इसके के इस मिशन की योजना पहले 2023 के लिए बनाई गई थी। हालांकि, कैबिनेट की ओर से हाल में मंजूरी के बाद इसे मार्च 2028 में लॉन्च किया जाएगा।
इस मिशन के तहत यान लगभग 100 किलोग्राम वजन वाले वैज्ञानिक पेलोड ले जाएगा। पेलोड यानी वो चीजें जो स्टडी आदि और डेटा तैयार करने के लिए जरूरी उपकरण हैं। इस मिशन में भी भारत के अन्य अंतरिक्ष मिशनों की तरह उसी योजना का पलन करने की तैयारी हो रही है, जिसमें सैटेलाइट पृथ्वी की कक्षा में गति प्राप्त करेगा और सही समय पर शुक्र की ओर बड़ी छलांग लगाएगा और फिर उसकी कक्षा में कैद हो जाएगा। एक बार जब उपग्रह पृथ्वी की कक्षा से बाहर निकल जाएगा, तो उसे शुक्र तक पहुंचने में लगभग 140 दिन लगेंगे। इस मिशन में इसरो पहली बार एयरो-ब्रेकिंग भी करेगा।
एयरो ब्रेकिंग (Aero-braking) क्या है?
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार इसरो की सैटेलाइट पहले शुक्र के चारों ओर 500 किमी गुणा 60,000 किमी की अण्डाकार कक्षा में स्थापित होगी। हालांकि, यह दूरी बहुत अधिक है। ऐसे में इतनी दूर से कोई प्रयोग या स्टडी करना मुश्किल होगा। ऐसे में सैटेलाइट को चरणबद्ध तरीके से धीरे-धीरे शुक्र की और निचली कक्षा में लाया जाएगा। इसे ही एयरो-ब्रेकिंग कहते हैं। इसकी मदद से जरूरत के मुताबिक सैटेलाइट को 300 x 300 किमी या 200 x 600 किमी की कक्षा में लाया जाएगा।
इस प्रक्रिया में सैटेलाइट को कई बार में लगभग 140-140 किमी नीचे धकेलते हुए लाया जाएगा। इस प्रक्रिया के बाद सैटेलाइट अण्डाकार कक्षा में उस बिंदु पर होगा जहां यह शुक्र के सबसे करीब है। इस ऊंचाई पर सैटेलाइट शुक्र के वायुमंडल की बाहरी परत से होकर गुजरेगा, जिससे घर्षण की वजह से उपग्रह की गति धीमी हो जाएगी। इस तरह कक्षा की ऊंचाई धीरे-धीरे कम हो जाएगी।
यहां ये गौर करने वाली बात होगी कि सैटेलाइट शुक्र के वायुमंडल में कितनी ऊंचाई पर चक्कर लगाता है क्योंकि उस कक्षा का चयन बेहद सावधानी से करना होगा। यदि सैटेलाइट शुक्र के वायुमंडल में बहुत नीचे तक आ जाता है तो उसे अत्यधिक घर्षण का सामना करना होगा और वह जल सकता है।
एक बार सैटेलाइट के इच्छित कक्षा तक पहुंच जाने के बाद वह शुक्र ग्रह के वायुमंडल के प्रभाव में भी नहीं रहेगा। वहीं, अगर इसमें गड़बड़ी हुई तो सैटेलाइट लगातार खिंचाव का अनुभव करेगा और अस्थिर रहेगा। इस परिस्थिति को रोकने या कक्षा में उसके और नीचे जाने से रोकने के लिए फिर सैटेलाइट को बहुत अधिक ईंधन का उपयोग करना होगा।