नई दिल्ली: भारत में एंटीबायोटिक दवाओं के इस्तेमाल को लेकर एक रिपोर्ट में चौंकाने वाला दावा किया गया है। इंडियन काउन्सिल ऑफ मीडिया रिसर्च (ICMR) के हाल के एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि मरीजों पर एंटीबायोटिक दवाओं का असर कम होते जा रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार, कई सामान्य एंटीबायोटिक्स कुछ बैक्टीरिया के खिलाफ कम प्रभावी साबित हो रहे हैं। साल 2023 के दौरान पूरे भारत के अस्पतालों और क्लीनिकों से जमा किए गए डेटा के आधार पर यह दावा किया गया है।
निमोनिया और टाइफाइड जैसी सामान्य बीमारियां भी इन दवाओं से ठीक नहीं हो रही है। रिपोर्ट में इन दवाओं के प्रभावशीलता को बरकरार रखने के लिए कुछ जरूरी कदम भी उठाने की बात की गई है।
रिपोर्ट में और क्या दावा किया गया है
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के एनुअल रिपोर्ट एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस (AMR) 2023 में इन दावों का जिक्र किया गया है।
इसमें कहा गया है कि यूरिनेरी ट्रैक्ट इंफेक्शन (UTIs), ब्लड इन्फेक्शंस, निमोनिया और टाइफाइड जैसी बीमारियों में इस्तेमाल होने वाली एंटीबायोटिक दवाओं का असर धीरे-धीरे कम होते जा रहा है।
रिपोर्ट में एक जनवरी से 31 दिसंबर 2023 के बीच पब्लिक और प्राइवेट सेक्टर के हेल्थ सेंटर के 90 हजार से अधिक नमूनों की टेस्टिंग हुई है। यह नमूने खून, पेशाब, सांस लेने की नली जैसी जगहों से लिए गए थे।
इस रिपोर्ट में अपर रेस्पिरेटरी इंफेक्शन्स, बुखार और ब्लड इंफेक्शंस जैसी बीमारियों की इलाज से जुड़ी एंटीबायोटिक दवाओं को शामिल किया गया था। रिपोर्ट में एंटीबायोटिक प्रतिरोध में इजाफा और प्रमुख एंटीबायोटिक दवाओं के प्रभाव में कमी का दावा किया गया है।
इन बैक्टीरिया को किया गया था शामिल
ई. कोली, क्लेबसिएला निमोनिया, स्यूडोमोनास एरुगिनोसा और स्टैफिलोकोकस ऑरियस जैसी बैक्टीरिया को इस रिपोर्ट में शामिल किया गया था। इसमें यह दावा किया गया है कि आम तरह के बैक्टीरिया के लिए एंटीबायोटिक्स को ज्यादा असरदार नहीं पाया गया है।
आईसीयू और आउट पेशेंट दोनों तरह के मरीजों में ई. कोली बैक्टीरिया में सीफोटैक्सिम, सेफ्टाजिडाइम, सिप्रोफ्लोक्सासिन और लेवोफ्लोक्सासिन जैसे एंटीबायोटिक्स का असर 20 फीसदी से भी कम देखा गया है।
पिपेरसिलिन-टाजोबैक्टम की प्रभावशीलता में आई है गिरावट
क्लेबसिएला निमोनिया और स्यूडोमोनस एरुगिनोसा जैसे अन्य बैक्टीरिया पिपेरसिलिन-टाजोबैक्टम, इमिपेनेम और मेरोपेनेम जैसे महत्वपूर्ण एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति भी अधिक प्रतिरोधी हो रहे हैं।
इसे समझने के लिए पिपेरसिलिन-टाजोबैक्टम की प्रभावशीलता को अगर देखा जाए तो साल 2017 में इसकी प्रभावशीलता 56.8 फीसदी थी जो साल 2023 में घटकर 42.4 फीसदी हो गई है।
एंटीबायोटिक्स इंफेक्शन के इलाज में ये भी हो रहे हैं कम असरदार
यही नहीं आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले एमिकासिन और मेरोपेनेम जैसे एंटीबायोटिक्स जो पहले काफी अधिक प्रभावी साबित हो रही थी। अब ये एंटीबायोटिक्स इंफेक्शन के इलाज में कम असरदार साबित हो रही हैं।
रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि गैस्ट्रोएंटेराइटिस के लिए जिम्मेदार बैक्टीरिया जैसे साल्मोनेला टाइफी ने फ्लोरोक्विनोलोन के प्रति 95 फीसदी से ज्यादा रेजिस्टेंस डेवलप कर लिया है। फ्लोरोक्विनोलोन एंटीबायोटिक दवाओं का एक समूह है जिसे अक्सर गंभीर संक्रमण के लिए उपयोग किया जाता है।
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रिपोर्ट में यह कदम उठाने पर दिया गया है जोर
एंटीबायोटिक के असर में कमी के बढ़ते प्रभाव से निपटने के लिए रिपोर्ट में इसके खिलाफ तुरंत कार्रवाई करने को कहा गया है। रिपोर्ट में रोगियों के लिए बेहतर इलाज सुनिश्चित करने और प्रतिरोधी बैक्टीरिया के आगे प्रसार को रोकने के लिए एंटीबायोटिक प्रतिरोध की निरंतर निगरानी के महत्व पर जोर दिया गया है।
यही नहीं खेती में एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग पर सख्त नियमों लगाने की बात कही गई है। ऐसा इसलिए क्योंकि कृषि में इन एंटीबायोटिक दवाओं का दुरुपयोग एंटीबायोटिक प्रतिरोध की समस्या को बढ़ावा देता है।
जानकारों ने एंटीबायोटिक दवाओं की प्रभावशीलता को बरकरार रखने के लिए इस पर एक उचित रणनीति बनाने की मांग की है।