नई दिल्लीः भारत, जो लंबे समय से हीरे के कारोबार में ग्लोबल लीडर रहा है, मौजूदा दौर में एक गंभीर संकट से गुजर रहा है। दुनिया भर में हीरे की कटाई और पॉलिशिंग के लिए मशहूर भारत के इस उद्योग पर, विशेष रूप से सूरत जैसे शहरों ने अप्रत्याशित ऊंचाइयां हासिल की हैं। लेकिन हाल के वर्षों में वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों और बदलती उपभोक्ता प्राथमिकताओं के कारण इस उद्योग में भारी गिरावट देखने को मिल रही है।
राजस्व में गिरावट और मांग की कमी
क्रिसिल (क्रेडिट रेटिंग इंफॉर्मेशन सर्विसेज ऑफ इंडिया लिमिटेड) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत की प्राकृतिक हीरे की पॉलिशिंग उद्योग का राजस्व इस वित्तीय वर्ष में 25-27 प्रतिशत गिरकर लगभग 12 बिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है, जो पिछले एक दशक का सबसे निचला स्तर होगा। इसके तीन प्रमुख कारण माने जा रहे हैं: अमेरिका और चीन जैसे प्रमुख निर्यात बाजारों में मांग में कमी, हीरे की कीमतों में 10-15 प्रतिशत की गिरावट और उपभोक्ताओं का लैब-ग्रोाउन डायमंड्स (एलजीडी) की ओर बढ़ता रुझान।
हीरे की मांग में गिरावट की वजह?
हीरे की कीमतों में गिरावट और उपभोक्ता रूचि में बदलाव ने भारत के हीरा कारोबार को प्रभावित किया है। विशेष रूप से अमेरिका और चीन में उपभोक्ता अब सोने को प्राथमिकता दे रहे हैं, क्योंकि हालिया महामारी और आर्थिक अनिश्चितताओं ने उन्हें महसूस कराया है कि हीरे की पुनर्विक्रय कीमत काफी कम होती है। चीन में उपभोक्ता अब सोने को सुरक्षित निवेश के रूप में देख रहे हैं, जबकि अमेरिका में लैब-ग्रोाउन डायमंड्स की बढ़ती लोकप्रियता देखी जा रही है। यह डायमंड्स दिखने में प्राकृतिक हीरों जैसे होते हैं लेकिन उनकी कीमत 90 प्रतिशत तक सस्ती होती है।
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उद्योग की चुनौतियाँ
पिछले तीन वित्तीय वर्षों से, प्राकृतिक हीरे के निर्यात में लगातार गिरावट हो रही है। वित्त वर्ष 2023 में 9 प्रतिशत की गिरावट के बाद, पिछले वित्त वर्ष में 29 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई थी। भारत से अमेरिका को होने वाले हीरे के निर्यात में पिछले दो वर्षों में 43 प्रतिशत की गिरावट आई है। वहीं, चीन, जो भारत के कुल हीरा निर्यात का 28 प्रतिशत हिस्सा रखता है, वहां भी सोने की बढ़ती लोकप्रियता ने हीरे की मांग को कम कर दिया है।
60 व्यापारियों ने की आत्महत्या
भारत में सूरत और मुंबई जैसे शहरों में 7,000 से अधिक कंपनियां हीरे की कटाई और पॉलिशिंग का काम करती हैं। इस उद्योग से सीधे तौर पर लगभग 13 लाख लोग जुड़े हैं, जिनमें से अकेले सूरत में लगभग 8 लाख लोग काम करते हैं। लेकिन निर्यात में गिरावट के कारण, कई कंपनियों के दिवालिया होने की स्थिति उत्पन्न हो गई है। गुजरात के हीरा उद्योग से जुड़े लगभग 60 लोगों ने आत्महत्या कर ली है, और कई फैक्ट्रियों में काम बंद हो चुका है।
भविष्य की राह
रिपोर्टों के अनुसार, हीरे की मांग में गिरावट के कारण खनिकों और पॉलिशर्स ने हीरों की खरीदारी और उत्पादन को सीमित कर दिया है। इसका असर ये हुआ कि कच्चे हीरों की कीमतें स्थिर होने लगी हैं। साथ ही, हीरे की कम मांग ने उद्योग को लागत और इन्वेंट्री प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करने के लिए मजबूर कर दिया है जिससे कार्यशील पूंजी की जरूरतों में कमी आई है।
क्रिसिल की रिपोर्ट के अनुसार, कंपनियों की कार्यशील पूंजी की आवश्यकताएं घटने से उधारी पर निर्भरता कम होगी, जिससे क्रेडिट प्रोफाइल में सुधार होगा। हालांकि, इस क्षेत्र में चुनौतीपूर्ण समय बना रहेगा क्योंकि प्राकृतिक हीरे के निर्यातकों को एलजीडी के बढ़ते बाजार से प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है।
कई कंपनियां बंद, बेरोजगारी का संकट
हीरा उद्योग में आई इस गिरावट का प्रभाव सिर्फ व्यापारियों और कंपनियों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसका असर उन लाखों लोगों पर भी पड़ा है जो इस उद्योग से जुड़े हुए हैं। हाल के वर्षों में कच्चे हीरों का आयात 24.5 प्रतिशत घटकर 14 बिलियन डॉलर पर आ गया है, जबकि पॉलिश किए गए हीरों का निर्यात 34.6 प्रतिसत घटकर 13.1 बिलियन डॉलर ( लगभग 1,09,424 करोड़ ) रह गया है। कई कंपनियों के बंद होने और बड़े पैमाने पर नौकरियों के जाने से गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में बेरोजगारी का संकट भी खड़ा हो गया है।
पॉलिश हीरे की बिक्री की मांग में कमी की वजह से कुछ महीने पहले गुजरात की दिग्गज डायमंड कंपनी किरण जेम्स को बड़ा कदम उठाना पड़ा था। कंपनी ने अपने 50 हज़ार कर्मचारियों को 10 दिन की छुट्टी दे दी थी! कंपनी का कहना था कि ये उद्योग मुश्किल दौर से गुजर रहा है और पॉलिश किए हुए हीरे की बिक्री नहीं हो रही है। ऐसे में हीरे के उत्पादन को नियंत्रित करने के लिए ये कदम उठाया गया है। कंपनी में 50 हज़ार से ज्यादा लोग काम करते हैं, जिनमें से 40 हजार असली हीरे और 10 हजार कृत्रिम हीरे पर काम करते हैं।