इस्लामाबाद: ईरान-पाकिस्तान गैस पाइपलाइन परियोजना में देरी पर ईरान ने पाकिस्तान के खिलाफ मध्यस्थता न्यायालय में मुकदमा ठोक दिया है। पाकिस्तान ने ऐसे में अब ईरान की ओर से दायर इस अंतरराष्ट्रीय मुकदमे में खुद का बचाव करने के लिए तीन शीर्ष कानूनी फर्मों को नियुक्त किया है। ईरान ने पाकिस्तान से अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में विफल रहने के लिए कुल 18 अरब डॉलर (15,14,16,11,93,400 भारतीय रुपये) जुर्माने की मांग रखी है। यदि मध्यस्थों द्वारा इस राशि का कुछ हिस्सा भी ईरान को दिया जाता है, तो भी पहले से गर्त में जा रही पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और गिर जाएगी।
अमेरिकी प्रतिबंध प्रस्तावों के कारण 2014 से रुकी हुई ईरान-पाकिस्तान (आईपी) गैस पाइपलाइन परियोजना को एक दशक से अधिक की देरी का सामना करना पड़ा है।
दूसरी ओर, पहले से ही अनिश्चित स्थिति में चल रही पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से लिए गए भारी ऋण द्वारा कैसे भी बचाए रखने की कोशिश की जा रही है। वर्तमान में, प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के नेतृत्व वाली पाकिस्तान सरकार ने देश को दिवालिया होने से बचाने के लिए आईएमएफ के साथ 7 बिलियन डॉलर का समझौता किया था।
पेरिस के मध्यस्थता न्यायालय में मुकदमा
ईरान ने यह दावा करते हुए अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में मामला दायर किया कि पाकिस्तान पाइपलाइन के अपने हिस्से को पूरा करने और द्विपक्षीय समझौते के तहत अपेक्षित 750 MMCFD गैस प्राप्त करने में विफल रहा है। ईरान की ओर से मुकदमा पेरिस में दायर किया गया है।
जीएसपीए (गैस बिक्री खरीद समझौता) पर 2009 में फ्रांसीसी कानून के तहत हस्ताक्षर किए गए थे। मध्यस्थता न्यायालय दो देशों के बीच उत्पन्न होने वाले विवादों का निर्णय करती है। यहां ये भी बता दें कि फ्रांसीसी मध्यस्थता न्यायालय अमेरिकी प्रतिबंधों को मान्यता नहीं देता है।
पाकिस्तान की अंतर-राज्य गैस सिस्टम्स (आईएसजीएस) और नेशनल ईरानी गैस कंपनी (एनआईजीसी) ने सितंबर 2019 में संशोधित अनुबंध पर हस्ताक्षर किए थे। अनुबंध के तहत, अगर पाइपलाइन के निर्माण में देरी होती है तो ईरान किसी भी अंतरराष्ट्रीय अदालत का रुख नहीं करेगा। हालांकि, पाकिस्तान को 2024 तक अपनी पाइपलाइन खड़ी करने के लिए कहा गया था, जिसके बाद उसे ईरान से प्रतिदिन 750 मिलियन क्यूबिक फीट गैस की आपूर्ति होती।
संशोधित अनुबंध के तहत पाकिस्तान फरवरी-मार्च 2024 तक अपने क्षेत्र में पाइपलाइन के हिस्से को तैयार करने के लिए बाध्य था। समय सीमा समाप्त होने के बाद ईरान ने पाकिस्तान को और मोहलत दी और इसे 180 दिन बढ़ाकर सितंबर 2024 तक कर दिया। हालांकि, पाकिस्तानी अधिकारी फिर भी पाइपलाइन बिछाने में विफल रहे। इसके बाद ईरान ने अपना अंतिम नोटिस दिया और इसके बाद मध्यस्थता न्यायालय का रुख किया।
पाकिस्तान पर लटक रही अरबों डॉलर जुर्माने की तलवार!
मामले में अपना बचाव करने के लिए पाकिस्तान ने तीन प्रमुख अंतरराष्ट्रीय कानून फर्मों – व्हाइट एंड केस, थ्री क्राउन्स, और विल्की फर्र एंड गैलाघेर के ऑस्ट्रेलिया के एक प्रमुख बैरिस्टर को भी नियुक्त किया है जो तेल और गैस संबंधित मुकदमों में व्यापक अनुभव रखते हैं। पिछले कुछ दिनों के दौरान पाकिस्तान के अधिकांश समाचार पत्रों, टीवी चैनलों और पोर्टलों ने पाकिस्तान के खिलाफ ईरान के मामले से संबंधित रिपोर्ट प्रकाशित की है।
अधिकारियों के अनुसार कानूनी टीम को पाइपलाइन परियोजना की पृष्ठभूमि के बारे में जानकारी दी गई है, जिसे ईरान-पाकिस्तान (आईपी) पाइपलाइन के रूप में जाना जाता है। साथ ही उन बाधाओं के बारे में बताया गया है जिसकी वजह से यह पूरा नहीं हो सका है। पाकिस्तान का प्रतिनिधित्व करने वाली कानूनी टीम का विवरण 18 अक्टूबर 2024 को पेरिस में मध्यस्थता अदालत के सचिवालय में प्रस्तुत किया गया था।
मध्यस्थता प्रक्रिया के अनुसार पाकिस्तान अब अपनी कानूनी टीम की मदद से समन्वय से एक मध्यस्थ का चयन करेगा। ईरान भी एक को नामांकित करेगा। फिर दोनों पक्षों से अपेक्षा की जाती है कि वे संयुक्त रूप से एक तीसरे मध्यस्थ की नियुक्ति करेंगे, जो ट्रिब्यूनल को पूरा करेगा और फिर सुनवाई शुरू की जा सकेगी। सुनवाई शुरू होने के एक साल के भीतर मध्यस्थता पैनल से निर्णय आने की उम्मीद जताई जाती है।
ग्वादर से ईरान की सीमा तक बिछनी थी पाइपलाइन
ईरान ने अगस्त 2024 में इस मध्यस्थता के संबंध में एक अंतिम नोटिस जारी किया था। यह साफ संकेत था कि वह पाकिस्तान द्वारा पाइपलाइन परियोजना को पूरा करने में विफल रहने पर सितंबर में मुकदमा दायर करने की तैयारी में है। अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण 2014 से रुकी हुई आईपी गैस पाइपलाइन परियोजना को एक दशक से अधिक की देरी का सामना करना पड़ा है।
अमेरिका प्रतिबंधों के जरिए ईरान पर दबाव बनाए रखना चाहता है और इसका असर प्रस्तावित पाइपलाइन परियोजना पर पड़ा है। आईपी गैस पाइपलाइन परियोजना का लक्ष्य पाकिस्तान के ग्वादर से ईरान तक 80 किलोमीटर की पाइपलाइन का विस्तार करना था।
इस परियोजना की परिकल्पना 1989 में राजेंद्र के. पचौरी ने अली शम्स अर्देकानी और ईरान के पूर्व उप विदेश मंत्री सरवर शार के साथ की थी। पचौरी ने ईरानी और भारतीय दोनों सरकारों को योजना का प्रस्ताव दिया था। ईरान सरकार ने प्रस्ताव पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी। इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ एनर्जी इकोनॉमिक्स के 2010 के वार्षिक सम्मेलन में अर्देकानी ने पचौरी के प्रस्ताव का समर्थन किया था।
शुरुआत में भारत को भी इस पाइपलाइन परियोजना का हिस्सा बनना था। हालांकि, 2009 में भारत मूल्य निर्धारण और सुरक्षा मुद्दों को लेकर इस परियोजना से हट गया था। इसके बाद मार्च 2010 में भारत ने पाकिस्तान और ईरान के साथ मई 2010 में तेहरान में होने वाली त्रिपक्षीय वार्ता में दिलचस्पी दिखाई। 4 सितंबर 2012 को इस परियोजना को अक्टूबर 2012 से पहले शुरू करने और दिसंबर 2014 तक पूरा करने की घोषणा की गई थी।