नई दिल्ली: भारतीय वायुसेना वर्तमान में फाइटर प्लेन की कमी का सामना कर रही है। यह दावा एक रिपोर्ट में की गई है। दावा है कि वायुसेना के पास अभी केवल 31 स्क्वाड्रन ही है जो उसकी स्वीकृत ताकत से काफी कम है।
यही नहीं रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि वायुसेना की वास्तव में प्रभावी परिचालन शक्ति और भी कम है। वायु सेना के पास 42 स्क्वाड्रन की स्वीकृत ताकत है।
31 स्क्वाड्रन में से अभी केवल 29 स्क्वाड्रन ही सही से इस्तेमाल में हैं बाकी दो कम से कम उड़ान भर रहे हैं। इन दो विमानों में पुराने मिग-21 लड़ाकू विमान भी शामिल हैं जिनकी संरक्षण के लिए उन्हें कम से कम ऑपरेशन में शामिल किया जा रहा है। ये विमान रिटायर होने के काफी करीब हैं।
वायुसेना में लड़ाकू विमानों की कमी की रिपोर्ट तब सामने आई है जब भारत को चीन और पाकिस्तान जैसे देशों से संभावित खतरों का सामना करना पड़ रहा है।
चीन एक तरफ जहां अपनी सेना में युद्धक विमानों के साथ-साथ जहाजों को भी शामिल कर रहा है और अपनी ताकत बढ़ा रहा है। वहीं दूसरी ओर भारत के लड़ाकू विमानों में लगातार कमी आने का दावा किया जा रहा है।
मिग-21 की सेवानिवृत्ति में हो रही है देरी
भारतीय वायुसेना अधिक उन्नत एलसीए एमके1ए लड़ाकू विमानों का इंतेजार कर रही है। अपने वार्षिक प्रेस कॉन्फ्रेंस में एयर चीफ मार्शल अमर प्रीत सिंह ने कहा है कि स्वदेशी हल्के लड़ाकू विमानों (एलसीए) का उत्पादन समय से पीछे चल रहा है।
यही नहीं तेजस जेट का उत्पादन भी धीमा है। तेजस विमान के धीमे उत्पादन पर बोलते हुए अमर प्रीत सिंह ने कहा है कि उत्पादन में तेजी लाने की जरूरत है। इन विमानों के आने और सविर्स में शामिल होने में देरी के कारण मिग-21 की सेवानिवृत्ति में देरी हो रही है।
विमानों की कमी पर बोलते हुए अमर प्रीत सिंह ने कहा है कि ‘भारतीय वायुसेना के पास जो भी है, वह उसी से लड़ने’ के लिए प्रतिबद्ध है। अमर प्रीत सिंह ने यह भी माना कि नए विमानों की खरीद, भर्ती और कर्मियों को प्रशिक्षित करने में समय लगता है।
एयर चीफ मार्शल ने उन्नत विमानों की विशेष रूप से लड़ाकू विमानों की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया है। बता दें कि भारतीय वायुसेना को “कल से ही” अधिक लड़ाकू विमानों की जरूरत है। लेकिन इसे लेकर अभी तक कोई भी फैसला नहीं लिया गया है।
मार्च 2025 तक 18 तेजस मार्क -1 ए जेट की होगी आपूर्ति
भारतीय रक्षा मंत्रालय (एमओडी) ने हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) को मार्च 2025 तक 18 तेजस मार्क -1 ए जेट की आपूर्ति को पूरा करने का निर्देश दिया है।
फरवरी 2021 में एचएएल को कुल 180 तेजस मार्क-1ए जेट के उत्पादन का ऑर्डर मिला था। 48 हजार करोड़ के इस अनुबंध में एचएएल को 83 जेट विमानों को सप्लाई करने का ऑर्डर मिला था।
एग्रीमेंट के तहत विमानों की डिलीवरी तीन साल बाद करनी थी यानी इसकी आपूर्ति मार्च 2024 तक हो जानी थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ है और अभी तक इसमें से एक भी जेट की आपूर्ति नही हुई है।
इसी साल अप्रैल में एमओडी ने एचएएल को अतिरिक्त 97 तेजस मार्क-1ए जेट के उत्पादन का ऑर्डर दिया था। इस ऑर्डर से एचएएल को अब तक कुल 180 जेट विमानें बनाने का ऑर्डर मिल गया है।
क्यों घटे हैं लड़ाकू विमानों की संख्या
पिछले कुछ वर्षों में वायु सेना द्वारा मिग और जगुआर जैसे पुराने विमानों को चरणबद्ध तरीके से हटाया गया है। इसके साथ ही जिस तरीके से इन विमानों को हटाया गया है, उनकी जगह नई विमानों को शामिल नहीं किया गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि विमानों का चयन, खरीद, या फिर उत्पादन में कमी से यह प्रक्रिया प्रभावित हुई है।
नए विमानों को वायुसेना में शामिल नहीं किया गया जबकि पुराने विमानों को चरणबद्ध तरीके से हटाया गया है। इस कारण भारतीय वायुसेना की विमान संख्या में साल दर साल लगातार गिरावट देखी गई है। विमानों की इस कमी से क्षेत्रीय सुरक्षा को लेकर चिंताएं बढ़ गई है।
साल 1965 के बाद से भारत के पास सबसे कम स्क्वाड्रन-दावा
पिछले रिकॉर्ड की अगर बात करे तो सन 1965 के समय जब भारत का पाकिस्तान के साथ युद्ध हुआ था। उस समय भारत के पास 31 स्क्वाड्रन थी जो अब की ताकत के बराबर है।
रिकॉर्ड बताते हैं कि पाकिस्तान के साथ युद्ध के बाद भारत की विमानों की ताकत लगातार बढ़ी है। साल 1996 में यह ताकत 41 स्क्वाड्रन की हो गई थी। विमानों की ताकत में यह भारत की सबसे अधिक ताकत थी।
इसके बाद से इसमें गिरावट देखी गई है। साल 2013 में यह ताकत घट कर 35 हो गई थी। तब से लेकर अब तक इसमें लगातार कमी होते जा रही है। दशकों से रुकी हुई खरीद के साथ-साथ विमानों की धीरे-धीरे समाप्ति का मतलब है कि भारतीय वायुसेना की संख्या पिछले कुछ वर्षों में कम होती जा रही है।