लखनऊ: उत्तर प्रदेश में 9 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में भाजपा का प्रदर्शन शानदार रहा है। भाजपा गठबंधन ने 7 सीटों पर कब्जा जमाया है। इसमें भी छह पर भाजपा को जीत मिली है। एक सीट राष्ट्रीय लोक दल के खाते में गई। यूपी उपचुनाव में भाजपा के लिए सबसे बड़ी बात ये रही कि वह समाजवादी पार्टी से 60 प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाली कुंदरकी सीट छीनने में कामयाब रही। यहां 31 साल बाद भाजपा को जीत मिली है। कुंदरकी का हाल ये है कि सपा उम्मीदवार की जमानत जब्त हो गई। भाजपा के लिए यूपी उपचुनाव में यह संभवत: सबसे बड़ी जीत है। सपा को केवल सीसामऊ और करहल में जीत मिली है।
लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा का कमबैक!
लोकसभा चुनाव को बमुश्किल पांच से छह महीने बीते होंगे। भाजपा का प्रदर्शन यूपी में बेहद निराशाजनक और उम्मीद के उलट रहा था। इसके बाद से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लेकर सवाल उठाए जाने लगे थे। ऐसे में भाजपा और सीएम योगी के लिए यह उपचुनाव किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं थी।
इन उपचुनाव में पूरी जिम्मेदारी योगी आदित्यनाथ के कंधों पर थी कि वे पार्टी और कार्यकर्ताओं को उस बुरे अनुभव से बाहर निकाल सकें। अब जबकि नतीजे आ गए हैं, तो यह कहना गलत नहीं होगा कि योगी आदित्यनाथ ने आखिर कर दिखाया। आखिर कैसे संभव हुआ यह सबकुछ, आइए कुछ प्वाइंट्स में इसे समझने की कोशिश करते हैं।
1. अखिलेश यादव का PDA दांव फेल: लोकसभा चुनाव के बाद से ही अखिलेश यादव का पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक (पीडीए) फॉर्मूला काफी चर्चा में रहा। उपचुनाव में भी इसी की बात हुई। इसके उलट भाजपा ने ओबीसी फर्स्ट फॉर्मूले पर काम किया। गौर कीजिए, समाजवादी पार्टी ने 9 सीटों पर चार पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे। इसके अलावा दो दलित और तीन ओबीसी उम्मीदवारों को टिकट दिया। अगड़ी जाति से किसी को टिकट नहीं दिया। इसके उलट भाजपा ने पांच ओबीसी उम्मीदवार उतारे। वहीं, तीन अगड़ी जाति और एक दलित थे। ओबीसी पर भरोसा भाजपा के लिए जीत की बड़ी गारंटी साबित हुआ।
2. टिकट बंटवारे का रख गया ध्यान: लोकसभा चुनाव में भाजपा के खराब प्रदर्शन की एक अहम वजह टिकट बंटवारे में गड़बड़ी को भी बताया गया था। इस बार योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में उम्मीदवारों के चयन में सावधानी बरती गई। उदाहरण के लिए सहयोगी दल निषाद पार्टी के लिए इस बार सीट नहीं छोड़ी गई। पिछली बार मंझवा और कटेहरी की सीटें निषाद पार्टी के लिए छोड़ दी गई थीं। इस बार सीएम योगी ने दोनों सीटें बीजेपी के लिए रखी। यह फैसला सही साबित हुआ। कटेहरी में धर्मराज निषाद जीते जबकि मंझवा में सुचिस्मिता मौर्य विजयी रहीं।
3. भाजपा की एकजुटता से बदली तस्वीर: लोकसभा चुनाव में यूपी भाजपा में अंदरूनी कलह की कहानी भी नजर आ रही थी। इस बार ऐसा नहीं था। यूपी भाजपा में पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने एकसाथ होकर जमकर प्रचार किया। चुनाव के अंतिम हफ्ते में ही योगी आदित्यनाथ ने 15 से ज्यादा रैलियां की। यही नहीं, हर सीट के लिए अलग रणनीति और टीम बनी थी। योगी आदित्यनाथ ने सरकार के 30 मंत्रियों की टीम को मैदान में उतारा था। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने भी सभी नौ सीटों पर चुनावी सभा को संबोधित किया। इसके अलावा डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने भी उपचुनाव में सभी नौ सीटों पर रैली की।
4. विपक्षी एकता रही नदारद: लोकसभा चुनाव खत्म होते ही कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच की खाई नजर आने लगी थी। उपचुनाव में कोई सीट शेयरिंग की बात नहीं हुई और न ही कार्यकर्ता साथ आए। अखिलेश यादव अकेले चुनावी मिशन में सफलता हासिल करने निकले थे, लेकिन नतीजों ने बताया कि ये उनकी गलती थी।
5. सीएम योगी का नेतृत्व: इस बार उपचुनाव की तारीखों के ऐलान से पहले से ही योगी आदित्यनाथ काफी सक्रिय दिखे। वे काफी पहले ही सभी विधानसभा सीटों का दौरा कर चुके थे। इसके बाद हर सीट के सामाजिक समीकरण के हिसाब से नेताओं को जिम्मेदारी सौंपी गई। सीएम योगी लगातार हर टीम से संपर्क में बने रहे। उम्मीदवारों के चयन से लेकर बूथ मैनेजमेंट तक पर योगी आदित्यनाथ की नजर थी। योगी का ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ का नारा महाराष्ट्र में खूब चर्चा में रहा लेकिन यूपी में अखिलेश यादव ने जब इसके सहारे भाजपा पर निशाना साधने की कोशिशें शुरू की, तो ये यहां सपा के लिए ही उल्टा पड़ गया।