नई दिल्लीः शिक्षाविदों योगेंद्र यादव और सुहास पालशिकर ने एनसीईआरटी की नई पुस्तकों में नाम होने पर आपत्ति जाहिर की है। शिक्षाविदों ने एनसीईआरटी को पत्र लिखकर नाम हटाने को कहा है। उन्होंने चेताया कि अगर ऐसा नहीं किया गया तो वे वे मुकदमा करेंगे।
योगेंद्र यादव और सुहास पालशिकर एनसीईआरटी की 9 से 12 वीं तक की राजनीतिक विज्ञान की पुस्तकों के मुख्य सलाहकार रह चुके हैं। शिक्षाविदों ने एनसीईआरटी प्रमुख डी पी सकलानी को पत्र लिखा है जिसमें नई पाठ्यपुस्तकों में बतौर सलाहकार नाम छापे जाने पर आपत्ति जाहिर की।
सकलानी को लिखे पत्र में उन्होंने कहा कि वे यह जानकर “चौंक गए” कि सार्वजनिक रूप से खुद को इन पाठ्यपुस्तकों से अलग करने और सकलानी से उनके नाम हटाने का अनुरोध करने के एक साल बाद भी, परिषद ने फिर से संशोधित पाठ्यपुस्तकों को उनके नाम प्रमुख सलाहकार के रूप में छाप दिया है।
एनसीईआरटी को लेकर क्या है ताजा विवाद?
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, यह पत्र उस दिन लिखा गया जब यह खबर आई कि कक्षा 12 की राजनीति विज्ञान की संशोधित पाठ्यपुस्तक में अयोध्या विवाद पर सामग्री को कम किया गया है। संशोधित पाठ्यपुस्तक पिछले सप्ताह बाजार में आई। जिसमें बाबरी मस्जिद का नाम हटाकर उसे “तीन गुंबद वाला ढांचा” बताया गया है। इसमें पहले के संस्करण की कई महत्वपूर्ण जानकारी हटा दी गई है।
इन हटाई गई जानकारियों में गुजरात के सोमनाथ से अयोध्या तक बीजेपी की रथ यात्रा; कारसेवकों की भूमिका; 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद हुई सांप्रदायिक हिंसा; बीजेपी शासित राज्यों में राष्ट्रपति शासन; और अयोध्या में हुई घटनाओं पर भाजपा के “अफसोस” का उल्लेख शामिल है।
डेक्कन हेराल्ड से बात करते हुए यादव ने कहा कि “कुछ लोग अपने नाम प्रकाशन में रखने के लिए लड़ते हैं, हम बिल्कुल विपरीत मांग कर रहे हैं। वे हमें हमारे नाम डालने के लिए कैसे मजबूर कर सकते हैं? जब हमने पिछली बार उनसे पूछा, तो उन्होंने हमें कोई जवाब नहीं दिया बल्कि सार्वजनिक रूप से कहा कि वे बस हमें मान्यता दे रहे हैं।”
शिक्षाविदों ने यह भी कहा कि पत्र के बावजूद, एनसीईआरटी ने उनके नाम हटाए बिना इन छह नई पाठ्यपुस्तकों का प्रकाशन और वितरण कर दिया, जिनसे वे “जुड़े नहीं रहना चाहते”। पत्र में, उन्होंने यह भी कहा कि वे दोनों नहीं चाहते कि एनसीईआरटी उनके नामों का सहारा ले। “हम नहीं चाहते कि एनसीईआरटी हमारे नामों का उपयोग कर ऐसे राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तकों को छात्रों तक पहुँचाए, जिन्हें हम राजनीतिक रूप से पक्षपाती, अकादमिक रूप से असमर्थनीय और शिक्षण के दृष्टिकोण से अनुपयोगी पाते हैं।”
एक साल पहले भी नाम हटाने को लेकर एनसीईआरटी को लिखे गए थे पत्र
गौरतलब है कि पिछले साल जून में ही योगेंद्र यादव सुहास पालशिकर के अलावा 33 सलाहकारों ने किताबों से अपने नाम हटाने के लिए एनसीईआरटी को पत्र लिखा था। इसके बाद देशभर के कई विश्वविद्यालयों के कुलपतियों समेत 73 शिक्षाविदों ने एक बयान जारी किया था। उन्होंने नाम हटाए जाने की मांग को ‘गलत प्रोपेगेंडा’ बताया था। तब यूजीसी के चेयरमेन जगदीश कुमार ने ट्वीट कर नाम वापस लेने की मांग करने वालों की आलोचना की थी। उन्होंने कहा था कि एनसीईआरटी को अपनी पाठ्यपुस्तक सामग्री के रैशनलाइजेशन का पूरा अधिकार है।