नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने मंगलवार को लोकसभा को बताया कि 2020 से 2022 के बीच महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल 1,245,037 मामले दर्ज किए गए। गृह राज्य मंत्री बंडी संजय कुमार ने एक लिखित जवाब में कहा कि हाल के वर्षों में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की रिपोर्टिंग बढ़ी है, लेकिन इसका कारण अपराधों में वृद्धि नहीं, बल्कि बेहतर रिपोर्टिंग है।
तृणमूल कांग्रेस की सांसद जून मालिया द्वारा पूछे गए एक सवाल के जवाब में मंत्री ने कहा कि, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार, 2020 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 3,71,503 मामले, 2021 में 4,28,278 और 2022 में 4,45,256 मामले दर्ज किए गए।
पुलिसिंग सुधार से रिपोर्टिंग में हुई वृद्धि
मंत्री ने कहा कि रिपोर्टिंग में यह वृद्धि महिलाओं के अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ने, पुलिस तक उनकी पहुंच में सुधार, अधिकारियों के लिए लैंगिक संवेदनशीलता प्रशिक्षण और गलत व्यवहार करने वाले अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के कारण हुई है।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि 'पुलिस' और 'सार्वजनिक व्यवस्था' संविधान की राज्य सूची में आते हैं, और कानून-व्यवस्था बनाए रखने की प्राथमिक जिम्मेदारी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की है। हालांकि, केंद्र सरकार आपराधिक कानूनों में संशोधन, धन, प्रशिक्षण, तकनीकी उपकरणों और सलाह के जरिए उनका समर्थन करती है।
नए कानूनों में न्याय की सख्त समय-सीमा
मंत्री ने बताया कि हाल ही में लागू किए गए बीएनएस, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए) में कई अहम सुधार किए गए हैं। इनमें ऑनलाइन रिपोर्टिंग और जीरो एफआईआर की सुविधा, महिलाओं और कमजोर वर्गों को थाने जाने से छूट, समयबद्ध मुआवजा और जांच व मुकदमों के लिए सख्त समय-सीमा जैसी व्यवस्थाएं शामिल हैं।
प्रमुख चरणों के लिए समय भी तय किया गया है—प्रारंभिक जांच 14 दिन में, पूरी जांच 90 दिन में, आरोप तय करने की प्रक्रिया 60 दिन में और फैसला सुनाने की समय-सीमा 45 दिन में पूरी की जानी होगी। साथ ही अदालतों को अधिकतम दो बार ही स्थगन देने की अनुमति होगी। अपराजिता विधेयक के संबंध में मंत्री ने बताया कि इसे संबंधित मंत्रालयों द्वारा जांचा गया है और राज्यों से उनके विचार व स्पष्टीकरण मांगे गए हैं। आगे का निर्णय इन्हीं पर आधारित होगा।