नई दिल्ली: 2024 लोकसभा चुनाव के नतीजे सामने आने के बाद अब सरकार बनाने की कवायद शुरू हो गई है। इस चुनाव में कुछ सीटों पर चौंकाने वाले नतीजे सामने आए हैं, जिसमें जेल में बंद दो उम्मीदवारों ने जबरदस्त जीत दर्ज की है।
इनमें से एक खालिस्तान समर्थक नेता अमृतपाल सिंह और कश्मीरी नेता अब्दुल राशिद हैं। दोनों नेताओं की जीत ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। बड़ा सवाल यह है कि क्या ये नेता सांसद होने की शपथ ले सकेंगे। यह सवाल भी महत्वपूर्ण है कि क्या वे जेल से अपनी जिम्मेदारी निभा सकेंगे। आइए जानते हैं कि नियम क्या कहते हैं।
कौन हैं ये दो नेता और क्या आरोप लगे हैं
अमृतपाल सिंह एक खालिस्तानी समर्थक नेता है जो राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) के तहत असम के डिब्रूगढ़ जेल में बंद है। उसने खडूर साहिब सीट से जीत हासिल की है। दूसरी तरफ कश्मीर के बारामूला लोकसभा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीत दर्ज करने वाले शेख अब्दुल राशिद पर टेरर फंडिंग के आरोप हैं।
साल 2019 में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने उसे गिरफ्तार किया था और अभी वह जेल में हैं। इस चुनाव में रशीद ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के कद्दावर नेता उमर अब्दुल्ला को हराया है।
इन दोनों नेताओं पर गंभीर आरोप लगे हैं। ये देश के अलग-अलग राज्यों में बंद हैं। चूंकी भारत का संविधान जेल में बंद लोगों को चुनाव लड़ने की इजाजत देता है, ऐसे में इन नेताओं ने चुनाव लड़ा और जीत भी हासिल की है। आगे चलकर अगर इन नेताओं पर अपराध साबित होते हैं तो इनकी मुश्किलें बढ़ सकती है।
क्या कहते हैं नियम
जेल में बंद ये नेता नव निर्वाचित सांसदों के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने की इजाजत पा सकेंगे। विधान विशेषज्ञ और लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी अचारी ने कहा है इस मामले में संवैधानिक प्रावधानों का पालन होता है।
अचारी के अनुसार, संसद सदस्य के रूप में शपथ लेना एक संवैधानिक अधिकार है। ऐसे में जब ये नेता जेल में हैं तो इस केस में उन्हें शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने के लिए अधिकारियों से इजाजत लेनी होगी और समारोह के बाद जेल वापस भी जाना होगा।
शपथ के बाद की यह है प्रक्रिया
इसकी प्रक्रिया पर बात करते हुए अचारी ने संविधान के अनुच्छेद 101(4) का हवाला देते हुए कहा कि शपथ समारोह के पूरा होने के बाद उन्हें एक पत्र भी लिखना होगा। उन्हें अध्यक्ष को पत्र लिखकर यह बताया होगा कि कानूनी बंधनों की वजह से वे सदन में उपस्थित नहीं हो पाएंगे।
इसके बाद उनके अनुरोधों को अध्यक्ष द्वारा सदस्यों की अनुपस्थिति संबंधी सदन समिति को भेजी जाएगी। उनके अनुरोधों पर समिति यह सिफारिश करेगी की क्या उन्हें सदन की कार्यवाही के दौरान अनुपस्थित रहने की अनुमति दी जानी चाहिए या नहीं। इसके बाद अध्यक्ष इस सिफारिश पर सदन में मतदान कराएंगे।
दोषी ठहराए जाने पर बढ़ सकती हैं मुश्किलें
चूंकि अभी अब्दुल राशिद और अमृत पाल सिंह पर केवल आरोप ही लगे हैं और आगे चलकर अगर इन पर अपराध साबित हो जाते हैं तो इनकी मुश्किलें बढ़ भी सकती है। अब्दुल राशिद और अमृत पाल सिंह पर जो आरोप लगे हैं और वे दोषी ठहराए गए तो उन्हें कम से कम दो साल की सजा हो सकती है।
ऐसे में अगर उन्हें दो साल की सजा होती है तो 2013 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार वे अपने लोकसभा सीट को खो सकते हैं। इस फैसले में यह कहा गया है कि इस तरह के मामलों में सांसद या विधायक अयोग्य घोषित हो जाते हैं।
कोर्ट के इस फैसले ने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8(4) को रद्द कर दिया है। इस धारा के तहत पहले दोषी सांसदों और विधायकों को अपनी सजा के खिलाफ अपील करने के लिए तीन महीने का समय मिलता था।
पहले भी शपथ के लिए रिहा हुए हैं निर्वाचित प्रतिनिधि
यह पहला मामला नहीं होगा जब किसी निर्वाचित प्रतिनिधि को जमानत या पैरोल पर रिहाई मिलने वाली है। इससे पहले भी निर्वाचित प्रतिनिधियों को रिहाई मिल चुकी है। साल 2020 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बसपा नेता अतुल राय को पैरोल दिया था।
अतुल राय को सांसद की शपथ लेने के लिए पैरोल मिला था। यही नहीं साल 2022 में यूपी में विधानसभा के शपथ ग्रहण के लिए सपा विधायक नाहिद हसन को जमानत मिली थी।
क्या निर्वाचित प्रतिनिधि जेल से पूरी कर सकते हैं जिम्मेदारी
कोई भी निर्वाचित प्रतिनिधि जेल से अपनी जिम्मेदारी पूरी कर सकता है। वह ऑनलाइन बैठकें कर सकते हैं और अपनी क्षेत्र की समस्या का समाधान भी कर सकते हैं। जो सांसद या विधायक जेल में बंद हैं वे अपने पार्टी के सीनियर सदस्यों, लीगल टीम और परिवार के लोगों को मिल सकते हैं।
हर जेल में कुछ नियम भी होते हैं जिनका पालन करते हुए सांसद या विधायक यहां से अपनी जिम्मेदारी निभा सकता है। चूंकि वह जेल में है वह जमीनी तौर पर किसी समस्या का समाधान नहीं कर सकता है, उसे जेल से ही इसका समाधान करना होगा।