नई दिल्ली: ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) ने प्रेस्वू नामक आई ड्रॉप के बनाने और मार्केटिंग करने के लाइसेंस को रद्द कर दिया है। मालूम हो कि यह वही आई ड्रॉप है जिसे लेकर पहले यह दावा किया गया था कि यह पढ़ने के लिए चश्मे की जरूरत को खत्म कर देगा।
डीसीजीआई द्वारा यह फैसला तब लिया गया है जब आई ड्रॉप बनाने वाली कंपनी एंटोड फार्मास्यूटिकल्स पर प्रेस्वू को लेकर गलत दावों के आरोप लगे हैं। हालांकि कंपनी ने इन आरोपों को खारिज किया है और सफाई भी दी है।
कंपनी ने कहा है कि आई ड्रॉप को पहले 234 मरीजों पर टेस्ट किया गया था और सफल परीक्षणों के आधार पर डीसीजीआई ने मंजूरी दी थी। एंटोड फार्मास्यूटिकल्स ने डीसीजीआई के आदेश से असमति जताई है।
डीसीजीआई के इस फैसले को कंपनी ने कोर्ट में चुनौती देने की बात कही है। एंटोड फार्मास्यूटिकल्स ने अपने तर्क में यह भी कहा है कि अमेरिका में पहले से ही इस तरह के आई ड्रॉप बिना किसी साइड इफेक्ट के बिक रही हैं।
मंजूरी के एक महीने से भी कम समय में रद्द किया गया लाइसेंस
आदेश के अनुसार, ईएनटीओडी फार्मास्यूटिकल्स को 20 अगस्त 2024 को मंजूरी मिली थी। लेकिन पिछले कई दिनों से कंपनी द्वारा मीडिया में किए गए कई अस्वीकृत दावों के बाद कंपनी के खिलाफ एक्शन लिया गया है और चार सितंबर को नोटिस जारी किया गया है।
डीजीएचएस ने जनहित की चिंताओं का हवाला देते हुए ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट 1940 के तहत इसे बनाने और मार्केटिंग करने के लाइसेंस को कैंसिल कर दिया है।मामले में ड्रग्स महानियंत्रक डॉ. राजीव सिंह रघुवंशी ने कहा है कि 20 अगस्त 2024 को आई ड्रॉप बनाने की अनुमति देने को अगले आदेश तक निलंबित की जाती है।
क्या आरोप लगे हैं
सूत्रों के अनुसार, आई ड्रॉप को मंजूरी इस आधार पर दी गई थी कि इसे बिना किसी प्रिस्क्रिप्शन के बिक्री नहीं किया जाएगा। लेकिन कंपनी पर यह आरोप लगे हैं कि मीडिया और अन्य जगहों में इसे ऐसे प्रचार किया है कि इसे बिना किसी डॉक्टर के प्रिस्क्रिप्शन के खरीदा जा सकता है और इस्तेमाल भी किया जा सकता है।
रेगुलेटर का कहना है कि इस तरह के प्रचार से लोग भ्रमित हो सकते हैं। डीजीएचएस ने तीन उदाहरणों को पेश किया है जहां कंपनी ने कथित तौर पर अपने उत्पाद की क्षमताओं को बढ़ा-चढ़ाकर बताया है। आरोप है कि कंपनी ने दावा किया है कि इसके इस्तेमाल से पढ़ने के लिए चश्मे की जरूरत खत्म हो जाएगी।
यही नहीं कंपनी पर यह भी आरोप लगे हैं कि उसने यह भी दावा किया है कि आंखों में बिना किसी चीर फाड़ के 15 मिनट में नजदीक की दृष्टि में सुधार का यह सरल और सुरक्षापूर्व ऑप्शन देता है। नियामक ने स्पष्ट किया कि इन दावों के लिए कंपनी अधिकृत नहीं है और इससे संभावित रूप से लोग गुमराह भी हो सकते हैं।
बचाव में कंपनी ने क्या कहा है
लाइसेंस रद्द होने पर बोलते हुए ईएनटीओडी फार्मास्यूटिकल्स के सीईओ निखिल के मसूरकर ने कंपनी के प्रोडक्ट को लेकर उस पर लगे सभी आरोपों का खंडन किया है।
निखिल ने कहा है कि प्रोडक्ट से संबंधित जो कुछ भी मीडिया में प्रचार किया गया है उसे डीसीजीआई द्वारा हाल में मंजूरी दी गई है और उसके आधार पर तथ्य पेश किए गए हैं। उनका यह भी कहना है कि आई ड्रॉप को पहले क्लिनिक में ट्रायल किया गया है और फिर इसे लॉन्च करने की तैयारी की गई है।
फैसले के खिलाफ कोर्ट जाएगी कंपनी
ईएनटीओडी ने डीसीजीआई की कार्रवाई को “अन्यायपूर्ण” बताते हुए रेगुलेटर के फैसले को अदालत में चुनौती देने की बात कही है। कंपनी ने तर्क दिया है कि रेगुलेटर के इस नियम के कारण भारतीय फार्मास्युटिकल क्षेत्र में कुछ नया करना और नई प्रोडक्ट को बनाना संभव नहीं हो पाएगा।
कोर्ट जाने के फैसले पर बोलते हुए निखिल ने कहा है कि “यह लड़ाई न केवल भारत में नई दवाओं को बनाने की अनुमति देगी बल्कि अन्य एमएसएमई दवा कंपनियों को भी अपना शोध जारी रखने के लिए प्रोत्साहित करेगी।”
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
मेडिकल एक्सपर्ट ने प्रेस्वु आई ड्रॉप्स के बारे में चिंता व्यक्त की है और इसे प्रेसबायोपिया नामक आंखों की बीमारी के लिए एक “अपूर्ण और अस्थायी समाधान” बताया है।
जानकारों का कहना है कि यह आई ड्रॉप आंखों की पुतलियों को सिकोड़कर एक पिनहोल इफेक्ट को तैयार करता है जिससे पास की जीजें सही से दिखाई देने लगती है। उनका यह भी कहना है कि यह समाधान केवल कुछ समय के लिए है जबकि प्रेसबायोपिया से पीड़ित मरीजों के लिए चश्मा ही काफी अधिक प्रभावी और विश्वसनीय समाधान है।
एक्सपर्ट का यह भी कहना है कि इस आई ड्रॉप को बनाने के लिए पाइलोकार्पिन का अपयोग किया जाता है। उनका कहना है कि पाइलोकार्पिन गंभीर दुष्प्रभाव पैदा कर सकता है।
जानकारों का कहना है कि क्लिनिकल ट्रायल में तो यह आई ड्रॉप सही निकला है लेकिन जब यह लोगों द्वारा इस्तेमाल किया जाएगा तो यह कितनी सुरक्षित होगी, यह एक चिंता का विष्य है।