नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा यौन अपराधों से जुड़े दो अलग-अलग मामलों में दिए गए फैसलों पर सख्त नाराजगी जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जजों को ऐसे संवेदनशील मामलों में अधिक सतर्कता और जिम्मेदारी के साथ टिप्पणियां करनी चाहिए। जस्टिस गवई ने कहा कि चार सप्ताह बाद इस पूरे मामले की विस्तृत समीक्षा की जाएगी। साथ ही उन्होंने दोहराया कि न्यायाधीशों को विशेष रूप से यौन अपराध जैसे संवेदनशील मामलों में अत्यंत सावधानी और जिम्मेदारी से काम लेना चाहिए, क्योंकि उनकी टिप्पणियों का समाज और पीड़ितों पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
हाईकोर्ट ने आरोपी को दी जमानत
मामला उत्तर प्रदेश के एक रेप केस से जुड़ा है, जहां हाईकोर्ट ने आरोपी को जमानत देते हुए कहा था कि पीड़िता "इतनी समझदार थी कि वह अपने कृत्य के नैतिक पक्ष और उसके महत्व को समझ सकती थी।" पीड़िता एमए की छात्रा है। अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि वह शराब के नशे में आरोपी के घर गई और "खुद ही मुसीबत मोल ली।" कोर्ट ने आगे कहा, "अगर पीड़िता की एफआईआर में कही गई बातों को सच मान भी लिया जाए, तब भी यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि उसने खुद ही मुसीबत को बुलाया और वह स्वयं भी इसके लिए जिम्मेदार थी।" यह आदेश हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने पिछले महीने पारित किया था। इस टिप्पणी के बाद देशभर में कानूनी और सामाजिक हलकों में तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली।
अगली सुनवाई चार हफ्ते बाद
आदेश पर टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा, "अगर बेल देनी है, तो दीजिए, लेकिन यह कहना कि 'उसने खुद मुसीबत को बुलाया' – इस तरह की टिप्पणियों से बचना चाहिए। न्यायाधीशों को इस तरह की बातें कहते समय बेहद सतर्क रहना चाहिए।" सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी पीठ से सहमति जताते हुए कहा कि "आम आदमी इन टिप्पणियों को किस नजरिए से देखता है, इसे ध्यान में रखना जरूरी है।" शीर्ष अदालत ने इस मामले की अगली सुनवाई चार हफ्ते बाद तय की है।
सुप्रीम कोर्ट ने लिया था स्वतः संज्ञान
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की पीठ इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक और विवादास्पद आदेश का स्वतः संज्ञान लेते हुए सुनवाई कर रही थी। पुराने आदेश में कहा गया था कि "एक लड़की के स्तनों को पकड़ना, उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ना और उसे पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास करना बलात्कार या बलात्कार के प्रयास का अपराध नहीं है।" इसी मामले की आज मंगलवार को जब दोबारा सुनवाई शुरू हुई तो जस्टिस बीआर गवई ने कहा, "अब एक और जज ने दूसरा आदेश दिया है। ऐसी टिप्पणी करनी की क्या जरूरत थी?"