क्यों 2025 में कोलकाता की सड़कों से गायब हो जाएंगी आधी से ज्यादा पीली टैक्सियां?

कोलकाता की सड़कों पर पहली पीली टैक्सी 1908 में चली थी। उस समय प्रति मील 50 पैसे का किराया तय किया गया था। 1962 में कलकत्ता टैक्सी एसोसिएशन ने एंबेसडर मॉडल को मानक टैक्सी के रूप में अपनाया।

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कोलकाता की सड़कों पर पहली पीली टैक्सी 1908 में चली थी। (Photo: Kuntal Chakrabarty/IANS)

कोलकाताः  कोलकाता की प्रतिष्ठित पीली टैक्सियों में से 64 प्रतिशत से अधिक मार्च 2025 तक सड़कों से हट जाएंगी, क्योंकि राज्य परिवहन विभाग ने 15 साल से अधिक पुरानी टैक्सियों पर पाबंदी लगा दी है। यह कदम पर्यावरणीय कारणों और प्रदूषण मानदंडों को ध्यान में रखते हुए लिया गया है।

क्या है कारण?

परिवहन विभाग के रिकॉर्ड के अनुसार, वर्तमान में कोलकाता में लगभग 7,000 पीली टैक्सियां पंजीकृत हैं, जिनमें से 4,500 टैक्सियां 15 साल या उससे अधिक पुरानी हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार, इतने पुराने वाहनों को सड़कों से हटाना अनिवार्य है। ये सभी एंबेसडर मॉडल की टैक्सियां हैं, जिन्हें हिंदुस्तान मोटर्स लिमिटेड द्वारा पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के हिंद मोटर संयंत्र में बनाया गया था। चूंकि इस मॉडल का निर्माण अब बंद हो चुका है, इसलिए इनके बदलने की संभावना भी समाप्त हो गई है।

टैक्सी चालकों की परेशानियां और अपील

टैक्सी चालकों के लिए यह निर्णय एक बड़े झटके की तरह है। 30 वर्षों से टैक्सी चला रहे मुहम्मद आलम ने समाचार एजेंसी आईएएनएस से कहा, "हमारे लिए यह व्यवसाय जीवनयापन का मुख्य स्रोत है। अगर टैक्सियां बंद हो जाएंगी, तो हमें गंभीर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ेगा। हमारी उम्र इस समय किसी और काम के लिए उपयुक्त नहीं है।"

इसी तरह, 20 सालों से टैक्सी चला रहे राकेश मिश्रा ने आईएएनएस को बताया कि "टैक्सी से हमारा घर चलता है। हम सरकार से अपील करते हैं कि वह हमारे हालात को समझे और कोई व्यावहारिक समाधान निकाले।"

पीली टैक्सियों के साथ कोलकाता के लोगों की भावनाएं भी जुड़ी हुई हैं। यह सिर्फ एक वाहन नहीं, बल्कि उनकी संस्कृति और पहचान का हिस्सा है। एक स्थानीय यात्री ने IANS से कहा, "बचपन से पीली टैक्सियों को सड़कों पर चलते देखा है। यह सुनकर बहुत दुख हो रहा है कि ये टैक्सियां अब नहीं रहेंगी।"

पीली टैक्सी का ऐतिहासिक सफर

कोलकाता की सड़कों पर पहली पीली टैक्सी 1908 में चली थी। उस समय प्रति मील 50 पैसे का किराया तय किया गया था। 1962 में कलकत्ता टैक्सी एसोसिएशन ने एंबेसडर मॉडल को मानक टैक्सी के रूप में अपनाया। सूरज ढलने के बाद भी पीला रंग स्पष्ट दिखाई देने के कारण इसे टैक्सी का रंग चुना गया। हालांकि, ऐप कैब्स के आगमन के बाद से पीली टैक्सियों की लोकप्रियता घटने लगी। आरामदायक सेवाओं और डिजिटल सुविधाओं ने यात्रियों का रुझान आधुनिक कैब्स की ओर बढ़ा दिया।

सरकार का संभावित समाधान

राज्य परिवहन विभाग इस ऐतिहासिक पहचान को बचाने के लिए कुछ वैकल्पिक उपायों पर विचार कर रहा है। विभाग के एक अधिकारी ने कहा, "हम एंबेसडर मॉडल को वापस नहीं ला सकते क्योंकि इसका उत्पादन बंद हो चुका है। लेकिन जिन टैक्सी मालिकों के पास पुराना परमिट है, उन्हें नए वाणिज्यिक परिवहन परमिट दिए जा सकते हैं। साथ ही, जो भी पीले रंग की टैक्सी चलाना चाहते हैं, उन्हें विभाग से विशेष अनुमति लेनी होगी।"

क्या बच पाएगी कोलकाता की यह पहचान?

राज्य सरकार और टैक्सी यूनियन के बीच विचार-विमर्श चल रहा है। ड्राइवर और यात्री, दोनों ही चाहते हैं कि इस पहचान को बचाने के लिए कोई ठोस कदम उठाया जाए। यह देखना दिलचस्प होगा कि कोलकाता की ये ऐतिहासिक पीली टैक्सियां, जो शहर की रगों में दशकों से दौड़ रही हैं, क्या नए रूप में वापस आएंगी या इतिहास के पन्नों में समा जाएंगी। कोलकाता की पीली टैक्सियां सिर्फ एक वाहन नहीं, बल्कि इस शहर की आत्मा और संस्कृति का प्रतीक रही हैं। इनका जाना केवल एक परिवहन व्यवस्था का अंत नहीं, बल्कि कोलकाता की ऐतिहासिक धरोहर के एक अध्याय का बंद होना होगा।

IANS इनपुट के साथ

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