नई दिल्लीः सरकार गठन की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। पुराने संसद भवन में शुक्रवार को एनडीए की बैठक में पीएम नरेंद्र मोदी संसदीय दल के नेता चुने गए। रिपोर्ट के मुताबिक 9 जून को नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद की शपथ ले सकते हैं। हालांकि चुनाव में बहुमत के आंकड़े से पीछे रह गई भाजपा के लिए दबाव की स्थित बन गई है।
भाजपा को 240 सीटें मिली हैं जो बहुमत से 32 सीटें कम रहीं, जबकि उसके नेतृत्व वाले एनडीए को 293 सीटें हासिल हुई हैं। लिहाजा इस बार सत्ता चलाने के लिए मोदी सरकार को दो प्रमुख घटक दलों- जदयू और टीडीपी की आवश्यकता होगी। दोनों पार्टियों के पास कुल 28 सांसद हैं। यही कारण है कि दोनों ही पार्टियां सरकार गठन में सत्ता बंटबारे पर भाजपा के सामने अपनी मांगे रखी हैं। ऐसा कई मीडिया रिपोर्टों में दावा किया गया।
चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार जदयू के पास 14 सांसद है। उसने भी भाजपा से 3 कैबिनेट मंत्री और एक राज्यमंत्री पद की मांग की है। वहीं 16 संसदीय सीटें जीतने वाली तेलगु देशम पार्टी ( टीडीपी) ने 3 कैबिनेट मंत्री पद की मांग रखी है। हालांकि पार्टी का फोकस लोकसभा स्पीकर (लोकसभा अध्यक्ष) के पद पर है। आईए जानते हैं लोकसभा स्पीकर का पद इतना अहम क्यों हैं, इसकी भूमिका क्या होती है, और इस पद के लिए चुनाव की प्रक्रिया क्या होती है?
लोकसभा स्पीकर का चुनाव कैसे होता है?
नई सरकार के गठन के बाद नवनिर्वाचित सांसदों को शपथ दिलाने के लिए प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति की जाती है। राष्ट्रपति लोकसभा के सबसे वरिष्ठ सांसदों में से एक को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त करते हैं। प्रोटेम स्पीकर आमतौर पर वे सांसद होते हैं जो सबसे लंबे समय से लोकसभा के सदस्य रहे होते हैं। प्रोटेम स्पीकर स्वयं राष्ट्रपति के समक्ष शपथ ग्रहण करते हैं। इसके बाद प्रोटेम स्पीकर लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया का संचालन करते हैं। स्थायी स्पीकर के चुनाव के बाद, प्रोटेम स्पीकर की भूमिका समाप्त हो जाती है।
लोकसभा स्पीकर की भूमिका
सदन की कार्यवाही का संचालन: स्पीकर सदन का औपचारिक और संवैधानिक प्रमुख होता है। वह की सभी बैठकों की अध्यक्षता करते हैं और सुनिश्चित करते हैं कि कार्यवाही सुचारू और व्यवस्थित रूप से चलें।
वोटिंग: सदन में अगर किसी दल को बहुमत परीक्षण के दौर से गुजरना पड़ता है तब स्पीकर की भूमिका काफी अहम हो जाती है। दोनों पक्षों के वोट समान होने पर स्पीकर को मतदान करने का भी अधिकार होता है। यानी स्पीकर केवल तब वोट देते हैं जब सदन में टाई हो जाता है। इसे कास्टिंग वोट कहा जाता है।
दलबदल कानून में निर्णायक भूमिकाः सदन में बहुमत साबित करने या दलबदल कानून के मामलों में स्पीकर की भूमिका काफी महत्वपूर्ण होती है। संसद सदस्यों की अयोग्यता पर निर्णय स्पीकर द्वारा लिया जाता है। दलबदल विरोधी कानून के तहत, स्पीकर को सदस्य की अयोग्यता पर निर्णय लेने की शक्ति होती है, हालांकि, उनके फैसले को कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।
सदस्यों का अनुशासन: स्पीकर सदस्यों के अनुशासन और मर्यादा बनाए रखने के लिए उत्तरदायी होते हैं। लोकसभा अध्यक्ष के पास किसी भी सदस्य को अनुचित आचरण के लिए चेतावनी देने या निष्कासित करने का अधिकार होता है।
विवादों का समाधान: स्पीकर सदन में उत्पन्न होने वाले किसी भी विवाद का समाधान करते हैं और नियमों के अनुसार निर्णय लेते हैं।
पारित प्रस्तावों का निर्धारण: स्पीकर यह तय करते हैं कि किस प्रस्ताव को चर्चा के लिए उठाया जाए और किसे नहीं।
कमेटियों का गठन: स्पीकर विभिन्न संसदीय समितियों का गठन करते हैं और उनके कार्यों की निगरानी करते हैं।
नियमों की व्याख्या: स्पीकर सदन के नियमों और प्रक्रियाओं की व्याख्या करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि सभी सदस्य इनका पालन करें।
बिलों का प्रमाणीकरण: स्पीकर सभी विधायी कार्यों को प्रमाणीकरण करते हैं, जिसमें बिलों की स्वीकृति शामिल होती है।
सदस्यों के अधिकारों का संरक्षण: स्पीकर सदस्यों के अधिकारों और विशेषाधिकारों का संरक्षण करते हैं।
टीडीपी क्यों चाहती है स्पीकर का पद?
कई मीडिया रिपोर्टों में ये कहा गया कि टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू लोकसभा में स्पीकर के पद की मांग की है। टीडीपी के सूत्रों के मुताबिक, नायडू स्पीकर के पद के महत्व को जानते हैं। 1998 में भी टीडीपी एनडीए सरकार की घटक दल थी और अटल बिहारी वाजपेयी को अपना समर्थन दिया था। टीडीपी ने तब कैबिनेट पद मांगने के बजाय स्पीकर का पद मांगा था। इसके बाद पार्टी के जीएमसी बालयोगी को निचले सदन का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था।
लोकसभा स्पीकर सदन के मुख्य प्रवक्ता होते हैं। स्पीकर का काम सदन में व्यवस्था और शिष्टाचार बनाए रखना होता है जिसमें आवश्यकता पड़ने पर सदन की कार्यवाही को स्थगित करना भी शामिल है। स्पीकर का पद इसलिए भी महत्वपूर्ण होता है क्योंकि भले ही सरकार गिर जाए, स्पीकर को सदन भंग होने तक नहीं हटाया जा सकता। इसलिए, अगर टीडीपी को स्पीकर का पद मिलता है और भविष्य में वह कांग्रेस के साथ चली जाती है, फिर भी स्पीकर पद पर बने रहेंगे। सदन केवल एक प्रभावी बहुमत से पारित प्रस्ताव के माध्यम से स्पीकर को हटा सकता है, जिसका मतलब है कि सदन की कुल शक्ति का 50% से अधिक समर्थन होना चाहिए।