नई दिल्ली: खाद्य सुरक्षा नियामक भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने खाद्य कंपनियों और ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों से दूध और डेयरी प्रोडक्‍ट से जुड़े कुछ दावों को हटाने की आदेश दिया है।

इन कंपनियों और प्लेफार्मों को जारी निर्देश में एफएसएसएआई ने कहा है कि दूध, घी, मक्खन और दही जैसे डेयरी उत्पादों पर A1 और A2 वाले 'लेबल' के दावे सही नहीं हैं और इन्हें जल्द से जल्द हटा देना चाहिए।

नियामक ने इन 'लेबल' को भ्रमक बताया है और कहा है कि ये खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम 2006 का अनुपालन नहीं करते हैं।

रेगुलेटर के इस आदेश पर उद्योग जगत की भी प्रतीक्रिया सामने आई है। पराग मिल्क फूड्स के अध्यक्ष देवेन्द्र शाह ने इस आदेश का स्वागत किया है। हालांकि जानाकारों ने लोगों से इस तरह के 'लेबल' पर ज्यादा ध्यान नहीं देने की बात कही है। उनका कहना है कि 'लेबल' के बजाय दुध की क्वालिटी पर इसका चयन करना चाहिए।

रेगुलेटर ने क्या कहा है

रेगुलेटर ने इन कंपनियों और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्मों को A1 और A2 प्रोटीन से संबंधित किसी भी दावे को तुरंत हटाने का निर्देश दिया है। एफएसएसएआई ने इन दावों को अपने वेबसाइटों से भी हटाने का आदेश दिया है।

रेगुलेटर ने यह भी कहा है कि जिन खाद्य कंपनियों ने इन 'लेबल' वाले प्रिंट को पहले से छपवा लिया, वे आने वाले छह महीने में इसे इस्तेमाल कर खत्म कर ले। ऐसा इसलिए क्योंकि आगे और उन्हें समय नहीं दिया जाएगा और छह महीने बात इस तरह के 'लेबल' के इस्तेमाल पर बैन लगेगा।

A1 और A2 दूध में क्या फर्क है

A1 और A2 दूध में बीटा-कैसिइन प्रोटीन का स्‍ट्रक्‍चर अलग-अलग होता है और यह गाय के नस्ल के ऊपर निर्भर करता है। आमतौर पर यह देखा गया है कि A1 दूध होल्स्टीन और फ़्रीज़ियन जैसी नस्लों से आता है जबकि A2 दूध ग्वेर्नसे और जर्सी जैसी नस्लों वाले गायों में पाया जाता है।

A1 और A2 'लेबल' को लेकर कुछ शोध का यह दावा है कि A1 दूध सुरक्षित नहीं माने जाते हैं लेकिन A2 दूध को एक सुरक्षित विकल्प के रूप में पेश किया गया है। इन अध्ययनों में यह दावा किया गया है कि A1 बीटा-कैसिइन हानिकारक हो सकते हैं जबकि A2 बीटा-कैसिइन एक सुरक्षित विकल्प है।

बता दें कि दूध में पाए जाने वाले प्रोटीनों के सबसे बड़े समूह को कैसिइन कहते हैं जो कुल प्रोटीन सामग्री का लगभग 80 फीसदी हिस्सा होता है।

इंड्रस्टी के लोगों ने क्या कहा है

पराग मिल्क फूड्स के अध्यक्ष देवेन्द्र शाह ने रेगुलेटर के फैसले का स्वागत करते हुए A1 और A2 'लेबल' वाले दूध को मार्केटिंग का एक हथकंडा बताया है जो आम लोगों को गुमराह कर सकता है।

शाह ने कहा है कि, ‘ए-1 और ए-2 मार्केट‍िंग को ध्‍यान में रखकर तैयार की गई कैटेगरी है। जरूरी है कि हम गलत दावों को खत्म करें, ज‍िनसे ग्राहकों को गलत जानकारी म‍िल सकती है।’

A1 और A2 'लेबल' पर क्या बोलते हैं जानकार

उधर जानकारों की अगर बात माने तो वे लोगों को A1 और A2 के मार्केटिंग लेबल में फंसने के बजाय दूध की गुणवत्ता पर ध्यान देने की सलाह देते हैं।

उनका कहना है कि लोगों को दूध खरीदते समय दूध में फैट कितना है, उसमें कैल्शियम का स्तर कितना है और वह कितना ताजा है, इन सब बातों पर ज्यादा ध्यान देना न कि वह उन्हें A1 और A2 'लेबल' के मार्केटिंग वाले झांसे में फंसना चाहिए।

एक्सपर्ट ने यह भी कहा है कि लोगों को गाय के दूध के कुछ और विकल्पों को भी तलाश करनी चाहिए। उनके अनुसार, लोगों को नारियल, जई, चावल, अखरोट और सोया के दूध को भी गाय के दूध के विकल्प में इस्तेमाल करना चाहिए।

20 से अधिक कंपनियां अमेजन पर बेच रही है A2 घी

एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में अमेजन जैसी ई-कॉमर्स प्लेटफार्म पर सर्च करने पर यह पता चला है कि यहां पर 20 से अधिक कंपनियां A2 घी बेच रही हैं। इन घी के दाम से 700 रुपए से शुरू हैं। इस बात से यह पता चलता है कि A2 'लेबल' के प्रोडक्ट की किस तरह से मार्केटिंग की जाती है।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इस मुद्दे पर पश्चिमी क्षेत्र में इंडियन डेयरी एसोसिएशन के अध्यक्ष जे.बी. प्रजापति ने भी बहुत पहले यह मुद्दा उठाया था। साल 2018 और 2019 में प्रजापति ने भी यह मुद्दा उठाते हुए कहा था कि कैसे कंपनियां मार्केटिंग की दम पर A2 'लेबल' के प्रोडक्ट को बेहतर बता रही हैं।

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समीक्षा में क्या बात आई थी सामने

साल 2009 में यूरोपीय खाद्य सुरक्षा प्राधिकरण ने 107 पेज की एक व्यापक वैज्ञानिक समीक्षा पेश की थी। इस समीक्षा में यह कहा गया था कि A1 और A2 दूध के बीच अंतर करने की कोई जरूरत नहीं है।

यूरोपीय खाद्य सुरक्षा प्राधिकरण और अन्य वैश्विक निकायों ने यह भी कहा था कि इस बात के कोई पोख्ता सबूत नहीं मिले हैं कि A1 से A2 दूध काफी बेहतर हैं।