तेलंगाना राज्य गठन के 10 साल पूरे होने के बाद हैदराबाद पर से आंध्र प्रदेश का नियंत्रण क्यों खत्म हो गया? नई राजधानी को लेकर क्या है मतभेद?

आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 की धारा 5 के तहत तेलंगाना को भारत के 29वें राज्य के रूप में बनाया गया था।\xa0अधिनियम के अनुसार, हैदराबाद को दोनों राज्यों\xa0 की साझा राजधानी के रूप में 10 साल की अवधि (2 जून 2024 तक) के लिए घोषित किया गया था। इस दौरान, आंध्र प्रदेश को अपनी नई राजधानी विकसित करनी थी।

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Why did Andhra Pradesh lose control over Hyderabad after completion of 10 years of Telangana state formation? What is the difference of opinion regarding the new capital?

Why did Andhra Pradesh lose control over Hyderabad after completion of 10 years of Telangana state formation? What is the difference of opinion regarding the new capital?

हैदराबादः  2 जून 2024 को तेलंगाना राज्य के गठन के 10 साल पूरे होने के बाद से संयुक्त राजधानी के रूप में हैदराबाद पर से आंध्र प्रदेश का नियंत्रण खत्म हो गया। अब से हैदराबाद सिर्फ तेंलगाना की राजधानी बन गई। 2 जून 2014 को तेलंगाना के गठन के बाद हैदराबाद को 10 वर्षों की अवधि के लिए आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की संयुक्त राजधानी के रूप में नामित किया गया था।

विभाजन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 की धारा 5 के तहत तेलंगाना को भारत के 29वें राज्य के रूप में बनाया गया था।  हैदराबाद को उसकी राजधानी के रूप में चुना गया था। इस अधिनियम ने एकीकृत आंध्र प्रदेश को दो राज्यों- आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में विभाजित कर दिया। अधिनियम के अनुसार, हैदराबाद को दोनों राज्यों  की साझा राजधानी के रूप में 10 साल की अवधि (2 जून 2024 तक) के लिए घोषित किया गया था। इस दौरान, आंध्र प्रदेश को अपनी नई राजधानी विकसित करनी थी।

चूंकि हैदराबाद एक प्रमुख आईटी और आर्थिक केंद्र है, दोनों राज्यों के लोगों के लिए भावनात्मक और आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था। वहीं, हैदराबाद के रविवार (2जून) से तेलंगाना और आंध्र प्रदेश की साझा राजधानी नहीं रह गया है, इसलिए हैदराबाद में आंध्र प्रदेश को आवंटित भवनों के भविष्य को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है।

इस 10 साल की अवधि के दौरान, आंध्र प्रदेश अपना प्रशासन और विधानसभा की कार्यवाही हैदराबाद से संचालित कर सकता था, जब तक कि उसका अपना राजधानी शहर न हो। समझौते के अनुसार, सचिवालय परिसर का एक हिस्सा और हैदराबाद में कुछ इमारतें प्रशासन चलाने के लिए आंध्र प्रदेश को आवंटित की गई थीं। इसी तरह, सोमाजीगुडा में राजभवन के पास स्थित लेक व्यू गेस्ट हाउस भी आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री के कैंप कार्यालय को आवंटित किया गया था।

संयुक्त राज्य के विभाजन के लगभग एक साल बाद, आंध्र प्रदेश का प्रशासन हैदराबाद से संचालित हुआ।  हालाँकि, तत्कालीन मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने अमरावती में एक नई राजधानी बनाने का फैसला किया। उन्हें पड़ोसी राज्य से आंध्र प्रदेश का प्रशासन चलाना असुविधाजनक लगा, हालाँकि हैदराबाद 10 साल तक आम राजधानी बनी रही।

नई राजधानी का इंतजार किए बिना चंद्रबाबू नायडू ने प्रशासन को विजयवाड़ा और गुंटूर के कुछ हिस्सों में स्थानांतरित करने का फैसला किया। और एक साल के भीतर, उन्होंने अमरावती के वेलागापुडी में राज्य सचिवालय बनवाया। नायडू ने प्रशासनिक व्यवस्था को वहां स्थानांतरित कर दिया। इसके बाद राज्य विधानसभा और कुछ साल बाद उच्च न्यायालय को भी अमरावती में स्थानांतरित कर दिया गया।

समय के साथ, आंध्र प्रदेश सरकार ने हैदराबाद में अपने आवंटित भवनों में से अधिकांश को खाली कर दिया, जिसमें राज्य सचिवालय में दिए गए भवन भी शामिल थे। इन भवनों को तेलंगाना को सौंप दिया। केवल तीन इमारतें - आदर्श नगर में हर्मिटेज आधिकारिक भवन परिसर, लकड़ी-का-पूल में अपराध जांच विभाग (सीआईडी) भवन और लेक व्यू गेस्ट हाउस अभी भी आंध्र सरकार के नियंत्रण में हैं।

आंध्र प्रदेश ने किराए पर तेलंगाना से मांगी तीन इमारतें

हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, तेलंगाना सचिवालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि आंध्र प्रदेश सरकार ने कुछ दिन पहले तेलंगाना सरकार को पत्र लिखकर अनुरोध किया था कि उसे इन तीन इमारतों को एक और साल के लिए अपने पास रखने की अनुमति दी जाए, जब तक कि वह आंध्र में उनके लिए स्थायी आवास नहीं ढूंढ लेती। इसके लिए आंध्र प्रदेश ने किराया देने की भी पेशकश की है। माना जा रहा है कि  6 जून को आदर्श आचार संहिता हटने के बाद रेवंत रेड्डी सरकार इस मुद्दे पर फैसला ले सकती है। यह इस बात पर निर्भर करेगा कि आंध्र प्रदेश में कौन सी सरकार बनेगी।

नई राजधानी के स्थान को लेकर मतभेद

आंध्र प्रदेश के पास अभी भी कोई स्थायी राजधानी नहीं है क्योंकि यह निर्णय राजनीतिक गतिरोध में उलझा हुआ है। राज्य की दो प्रमुख पार्टियां, वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी) और तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी), नई राजधानी के स्थान को लेकर मतभेद में हैं। जबकि टीडीपी कृष्णा नदी के तट पर विजयवाड़ा और गुंटूर के बीच स्थित ग्रीनफील्ड राजधानी अमरावती के लिए प्रतिबद्ध है। वहीं, वाईएसआरसीपी तीन राजधानियों के विकेंद्रीकृत मॉडल की वकालत करती है। जिसमें अमरावती (विधायी राजधानी), विशाखापत्तनम (कार्यकारी राजधानी), और कर्नूल (न्यायिक राजधानी) बनाने पर जोर देती है।

4 जून को घोषित होने वाला चुनाव परिणाम निर्णायक होगा?

चुनावों से पहले के हफ्तों में, वाईएसआरसीपी के वरिष्ठ नेता वाईवी सुब्बा रेड्डी ने हैदराबाद को कुछ और वर्षों के लिए साझा राजधानी बने रहने का सुझाव दिया था। हालाँकि, तेलंगाना के राजनीतिक दलों ने इस विचार को तुरंत खारिज कर दिया और विपक्षी टीडीपी ने वाईएसआरसीपी पर राजधानी मुद्दे से ध्यान भटकाने का प्रयास करने का आरोप लगाया। नतीजतन, वाईएसआरसीपी ने आधिकारिक तौर पर सुब्बा रेड्डी के प्रस्ताव का समर्थन नहीं किया ।

चुनावी प्रचार के दौरान, जगन मोहन रेड्डी ने कार्यकारी राजधानी के रूप में विशाखापत्तनम के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की। उन्होंने संकेत दिया कि अगर वह दोबारा चुने गए तो विशाखापत्तनम में मुख्यमंत्री की शपथ लेंगे। वहीं भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने वाईएसआरसीपी के साथ गठबंधन करते हुए कहा है कि राज्य की राजधानी के निर्धारण में केंद्र की कोई भूमिका नहीं है, हालांकि वह अमरावती का समर्थन करती है। वाईएसआरसीपी को छोड़कर अधिकांश राजनीतिक दल तीन- राजधानी प्रस्ताव का विरोध करते हैं।

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