शिमला: हिमाचल प्रदेश के दो वरिष्ठ जिला न्यायाधीशों ने हाईकोर्ट कॉलेजियम पर सवाल खड़े किए हैं। उनका आरोप है कि न्यायाधीशों के चयन के दौरान उनके अनुभव और वरिष्ठता को नजरअंदाज किया गया है और उनसे ‘कम सीनियर’ जज को उनका स्थान दिया गया है और उनसे जजमेंट मांगी जा रही है।
न्यायाधीशों ने यह भी कहा है कि उनसे जूनियर जजों के चयन के लिए हाई कोर्ट कॉलेजियम ने सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम के सलाह की भी अनदेखी की है।
बिलासपुर के जिला जज चिराग भानु सिंह और सोलन के जिला जज अरविंद मल्होत्रा ने सु्प्रीम कोर्ट में एक जॉइंट रिट पिटीशन दाखिल की है और मांग की है कि इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय चयन प्रक्रिया की समीक्षा करें और यह भी सुनिश्चित करे कि उनका चयन सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के नियमों के अनुसार हुआ है कि नहीं।
यही नहीं पिटीशन में यह भी कहा गया है कि जब तक सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मामले का समाधान नहीं निकल जाता, तब तक अन्य ‘जूनियर’ जजों की नियुक्तियों पर अस्थायी रोक लगनी चाहिए।
क्या है पूरा मामला
याचिका में दोनों जजों ने कहा है कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट कॉलेजियम को दोनों न्यायाधीशों के नामों पर पुनर्विचार करने को कहा था। इसके बाद मामले में केंद्रीय कानून मंत्री ने हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को एक चिट्ठी भी लिखी थी।
न्यायाधीशों ने कहा है कि हाई कोर्ट कॉलेजियम ने सुप्रीम कोर्ट की सलाह और केंद्रीय कानून मंत्री के पत्र को नजरअंदाज कर उनसे ‘कम अनुभव’ रखने वाले जजों को चयन कर लिया है।
न्यायाधीशों का मानना है कि सु्प्रीम कोर्ट की सलाह के बावजूद जिस तरीके से हाईकोर्ट कॉलेजियम ने ‘जूनियर’ जजों की नियुक्तियां की है इससे उनके संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन हुआ है। ऐसे में न्यायाधीशों की यह मांग है कि सुप्रीम कोर्ट हाईकोर्ट कॉलेजियम के फैसले को पलट दें।
क्या है कॉलेजियम सिस्टम
कॉलेजियम सिस्टम एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों की नियुक्तियां और तबादले होते हैं। हालांकि भारत के संविधान में इसका कहीं भी जिक्र नहीं है और न ही संसद में किसी कानून के पास करने से यह लागू हुआ है। यह स्सिटम सुप्रीम कोर्ट में तीन फैसलों के बाद शुरू हुआ है।
1981 में पहले केस यानी ‘फर्स्ट जजेस केस’ में सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा था कि देश के कोर्टों में जजों की नियुक्तियों में केवल चीफ जस्टिस का ही एकाधिकार नहीं होना चाहिए।
वहीं इसके बाद साल 1993 में दूसरे केस यानी ‘सेकेंड जजेस केस’ में सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने यह कहा था कि जजों की नियुक्तियों में चीफ जस्टिस की राय को अहमियत मिलनी चाहिए।
क्या है राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग
इसके बाद साल 1998 में तीसरे केस यानी ‘थर्ड जजेस केस’के फैसले के बाद से कॉलेजियम की शुरूआत हुई थी। बता दें कि जिस तरीके से सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के साथ चार और वरिष्ठतम जज होते हैं उसी तरीके से हाईकोर्ट कॉलेजियम में भी हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और चार वरिष्ठतम जज होते हैं।
साल 2014 के बाद राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) का गठन किया गया था जिसे कॉलेजियम की जगह लेनी थी लेकिन बाद में इस प्रस्ताव को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था।