मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए शुक्रवार को राज्य सरकार से जवाब मांगा है। दरअसल, याचिका में सवाल उठाया गया है कि राज्य सरकार द्वारा संचालित धार्मिक स्थलों में पुजारी के रूप में केवल ब्राह्मणों को ही क्यों मौका दिया जाता है। याचिका अनुसूचित जाति-जन जाति अधिकारी कर्मचारी संघ की ओर से दायर की गई है।
सरकार के विधेयक पर अजाक्स ने उठाए सवाल
याचिका में कहा गया है ऐसे मंदिर जो सरकारी जमीन पर बने हैं और राज्य सरकार के अधीन हैं, इन मंदिरों में ब्राह्मण पूजा करते हैं। इन्हें शासन तनख्वाह देता है। मध्य प्रदेश शासन के अध्यात्म विभाग द्वारा 4 अक्टूबर 2018 एवं 4 फरवरी 2019 में मंदिर विधेयक 2019 पास किया गया।
अजाक्स ने इसी की संवैधानिकता को चुनौती दी है जनहित याचिका को स्वीकार करते हुए हाई कोर्ट ने नोटिस जारी किए हैं। जनहित याचिका पर सुनवाई मुख्य न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत तथा विवेक जैन की खंडपीठ द्वारा की गई। मध्यप्रदेश में सरकार के अधीन साढ़े 3 सौ मंदिर याचिकाकर्ता की ओर से पक्ष रखते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर एवं पुष्पेंद्र शाह ने कोर्ट को बताया मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध मंदिरों तथा अधीनस्थ मंदिरों, भवन तथा अन्य संरचनाओं सहित लगभग 350 से अधिक मंदिरों को अधिसूचित किया गया है।
मध्यप्रदेश में सरकार के अधीन साढ़े 3 सौ मंदिर
याचिकाकर्ता की ओर से पक्ष रखते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर एवं पुष्पेंद्र शाह ने कोर्ट को बताया मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध मंदिरों तथा अधीनस्थ मंदिरों, भवन तथा अन्य संरचनाओं सहित लगभग 350 से अधिक मंदिरों को अधिसूचित किया गया है। इनमें ब्राह्मण पुजारी काम कर रहे हैं, अधिसूचित मंदिरों को मध्य प्रदेश सरकार ने राज्य कंट्रोल्ड के अधीन रखा है, जिनमे पुजारियों की नियुक्तियों की पॉलिसी मध्य प्रदेश के अध्यात्म विभाग ने बनाई थी, इसके तहत केवल ब्राह्मण को ही पुजारी के पद पर नियुक्ति दिए जाने की व्यवस्था की गई है।
राज्य सरकार की ओर से डिप्टी एडवोकेट जनरल अभिजीत अवस्थी ने पक्ष रखते हुए कहा कि याचिकाकर्ता कर्मचारियों का संगठन है, जिसे याचिका दायर करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। इस पर याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि सदियों से मंदिरों में केवल ब्राह्मण ही पूजा करते आ रहे हैं। सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं रहा है। 2019 से राज्य सरकार ने धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करते हुए वेतन आधारित पुजारी नियुक्त करने का कानून बना दिया है। इसके बारे में आम जनता को जानकारी नहीं है।