नारायणपुरः छत्तीसगढ़ के नारायणपुर में सुरक्षाबलों को बड़ी सफलता मिली है। सुरक्षाबलों ने यहां 26 नक्सली मारे गए हैं। इनमें एक वसवा राजू भी है जिस पर एक करोड़ रुपये का इनाम था।
सुरक्षाबलों और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ अबूझमाड़ के जंगलों में हुई। इस दौरान नंबाला केशव राव उर्फ वसवा राजू को भी मार गिराया। वसवा राजू प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का महासचिव था। सुरक्षाबलों को हाल के वर्षों में मिली यह सबसे बड़ी सफलताओं में से एक है।
वसवा राजू की उम्र करीब 70 वर्ष थी। उसका नाम मोस्ट वांटेड माओवादी नेताओं में गिना जाता था। उस पर 1.5 करोड़ रुपये का इनाम था। वह आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले का निवासी था। उसने वारंगल के क्षेत्रीय इंजीनियरिंग कॉलेज से बी.टेक की डिग्री हासिल की थी।
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वह 1970 के दशक में माओवादी आंदोलन में शामिल हो गया था और गंगन्ना, कृष्णा, नरसिम्हा और प्रकाश सहित कई उपनामों से काम करने के लिए जाना जाता था।
इसके बाद उसका कद पार्टी में लगातार बढ़ता गया। साल 2018 में उसे सीपीआई (माओवादी) का महासचिव बनाया गया। उसे गणपति की जगह पर महासचिव बनाया गया था। गणपति को मुप्पला लक्ष्मण राव के नाम से भी जानते हैं। 2004 में माओवादी पार्टी और पीपल्स वार ग्रुप के एक में शामिल होने के बाद गणपति पार्टी के पहले महासचिव थे।
ऐसा माना जाता है गणपति फिलीपींस फरार हो गया है। वहीं,वसवा राजू को भारत में कुछ खतरनाक माओवादी हमलों का मास्टर माइंड माना जाता है।
किन घटनाओं में शामिल था राजू?
वसवा राजू ने साल 2010 में चिंतलनार में सीआरपीएफ के 76 जवानों की हत्या में शामिल था। इसके अलावा वह झीरम घाटी हत्याकांड में भी शामिल था जिसमें कांग्रेस के शीर्ष नेताओं समेत 30 से अधिक लोग मारे गए थे।
सुरक्षाबलों के पास वसवा राजू की कोई हाल की फोटो नहीं थी जिससे उसका पता लगाना मुश्किल हो। राजू की पहुंच छत्तीसगढ़ के अलावा तेलंगाना और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में भी थी।
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साल 1980 में उसने सीपीआई-एमएल (पीपल्स वार) के गठन में भूमिका निभाई थी और साल 1992 में वह केंद्रीय समिति का हिस्सा बना।
2004 में सीपीआई (माओवादी) के विलय के बाद उन्हें केंद्रीय सैन्य आयोग का सचिव नियुक्त किया गया, जहाँ उन्होंने सशस्त्र अभियानों और रणनीति की देखरेख की।
राजू की मौत को माओवादी आंदोलन के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। बीते कुछ समय से सुरक्षाबलों ने अभियान तेज किए हैं।। हाल के कुछ वर्षों में माओवादी संगठनों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा है।