अल्ताफ हुसैन पीएम मोदी Photograph: (सोशल मीडिया)
नई दिल्ली: पाकिस्तान और भारत में चल रहे तनाव के बीच पाकिस्तान के निर्वासित नेता और मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट (MQM) के संस्थापक अल्ताफ हुसैन ने पीएम मोदी से मुहाजिरों को बचाने की अपील की है। मुहाजिर उर्दू बोलने वाले वो मुसलमान हैं जो भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद पाकिस्तान के कराची शहर में बस गए थे। पाकिस्तान की सत्ता पर कभी इनकी मजबूत पकड़ हुआ करती थी, लेकिन अब दशकों से इनकी हालत खराब है और उन्हें भेदभाव और उत्पीड़न झेलना पड़ता है।
अल्ताफ हुसैन ने लंदन के एक प्रोग्राम में पीएम मोदी से मुहाजिरों की रक्षा करने की अपील की। उन्होंने कहा कि पीएम मोदी ने बलोच लोगों के अधिकारों का समर्थन किया है, जो उचित कदम है और उन्हें मुहाजिर समुदाय के लिए भी इसी तरह से समर्थन जताना चाहिए। मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट के संस्थापक ने पाकिस्तानी सेना पर भी आरोप लगाया और कहा कि सैन्य कार्रवाई में अब तक 25 हजार से ज्यादा मुहाजिरों की मौत हो गई है और हजारों गायब कर दिए गए हैं। उन्होंने पीएम मोदी से अपील की कि वो मुहाजिरों की आवाजों को अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाएं।
अल्ताफ हुसैन ने की थी भारत में शरण देने की मांग
पीएम मोदी से मुहाजिरों की आवाज उठाने की अपील करने वाले अल्ताफ हुसैन ने कुछ साल पहले पीएम मोदी से भारत में शरण देने की मांग की थी। नवंबर 2019 में हुसैन ने पीएम मोदी से भारत में राजनीतिक शरण की मांग की थी और कहा कि उन्हें भारत में शरण दी जाए ताकि वो भारत में दफनाए गए अपने पुरखों की कब्रों पर जा सकें। उस दौरान ब्रिटेन पुलिस ने उनके खिलाफ नफरत फैलाने और आतंकवाद को बढ़ावा देने के आरोप में मामला दर्ज किया था। पाकिस्तानी सरकार लगातार आरोप लगाती रही है कि हुसैन और उनकी पार्टी भारत की खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW) के एजेंट हैं।
कौन है अल्ताफ हुसैन?
अल्ताफ हुसैन का जन्म 1953 में सिंध के कराची शहर में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। उनका परिवार मूल रूप से उत्तर प्रदेश से था जो देश के विभाजन के बाद पाकिस्तान चला गया था। उन्होंने कराची विश्वविद्यालय से फार्मेसी की पढ़ाई की, लेकिन उनका झुकाव शुरू से ही राजनीति की ओर था। पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने महसूस किया कि पाकिस्तान में मुहाजिर समुदाय (विभाजन के बाद भारत से आए मुस्लिम प्रवासी) का प्रभाव धीरे-धीरे कम होता जा रहा है। जहां एक समय मुहाजिर समुदाय कारोबार, सिविल सर्विस और सत्ता में प्रमुख भूमिका निभाता था, वहीं 1970 का दशक खत्म होते-होते उनकी स्थिति कमजोर होने लगी। उनकी जगह पर स्थानीय सिंधी और पंजाबी समुदाय ने धीरे-धीरे वर्चस्व बनाना शुरू कर दिया।