40 साल पहले जब सुप्रीम कोर्ट ने भारत में ईवीएम के पहले प्रयोग को कर दिया था रद्द...

एडिट
For the first time in India, votes were cast through EVM in 1980.

भारत में पहली बार 1980 में ईवीएम के जरिए डाले गए थे वोट (फोटो- IANS)

सुप्रीम कोर्ट ने ईवीएम से वोटिंग की व्यवस्था पर अपनी मुहर लगा दी है। कोर्ट ने शुक्रवार को स्पष्ट किया कि पेपर बैलेट सिस्टम पर लौटने का सवाल ही नहीं उठता और मौजूदा व्यवस्था में कुछ नए निर्देश जारी करते हुए सभी याचिकाएं खारिज कर दीं। हालांकि, पहली बार जब भारत में ईवीएम का इस्तेमाल हुआ था, तो 40 साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने ही उस चुनाव को रद्द कर दिया था। पहली बार ईवीएम का इस्तेमाल केरल के परूर विधानसभा क्षेत्र में हुआ था और तब कोर्ट ने चुनाव को रद्द करते हुए 85 में से 50 मतदान केंद्रों पर फिर से चुनाव कराने का आदेश दिया था।

ईवीएम का जब पहली बार हुआ भारत में इस्तेमाल

दरअसल, साल 1980 के अगस्त में इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ECIL) ने राजनीतिक दलों के सामने एक प्रोटोटाइप वोटिंग मशीन प्रस्तुत की। इसके बाद 1982 में भारत निर्वाचन आयोग ने घोषणा की कि केरल में उसी साल के विधानसभा चुनावों के दौरान परूर निर्वाचन क्षेत्र के 84 मतदान केंद्रों में से 50 में ईवीएम का इस्तेमाल पायलट प्रोजेक्ट के रूप में किया जाएगा। केंद्र सरकार ने तब मशीनों के उपयोग की मंजूरी नहीं दी थी, हालांकि चुनाव आयोग ने संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत अपनी संवैधानिक शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए ईवीएम के इस्तेमाल को लेकर आगे बढ़ने का फैसला किया।

इस चुनाव के नतीजे 20 मई 1982 को घोषित हुए और परूर में सीपीआई के सिवन पिल्लई ने 123 वोटों से कांग्रेस के अंबत चाको जोस को मात दी। पिल्लई को कुल 30,450 वोट मिले थे और इसमें से 19182 वोट उन्हें ईवीएम मशीन इस्तेमाल वाले बूथों से मिले थे।

कांग्रेस नेता जोस इस नतीजे से संतुष्ट नहीं थे और उन्होंने ट्रायल कोर्ट में इसे चुनौती दी। हालांकि निचली अदालत ने मशीन से वोटिंग और चुनाव के नतीजों को सही बताया। जोस ने इसके बाद सुप्रीम कोर्ट का रुख किया जहां जस्टिस मुर्तजा फजल अली, अप्पाजी वर्धराजन और रंगनाथ मिश्रा की बेंच ने मामले पर सुनवाई की।

सुप्रीम कोर्ट ने ईवीएम से हुए चुनाव को किया था रद्द

इस मामले में सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 324 के तहत उसकी शक्तियां संसद के किसी भी नियम से ऊपर हैं, और यदि कानून और ईसीआई की शक्तियों के बीच टकराव होता है, तो आयोग की बात मानी जाएगी।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार इस तर्क जवाब में जस्टिस फजल अली ने कहा, 'यह एक बहुत ही आकर्षक तर्क है लेकिन बारीकी से जांच करने और गहन विचार-विमर्श करने पर यह समझ में आता है कि ये आर्टिकल 324 के दायरे में नहीं आता।' उस बेंच ने सर्वसम्मति से कहा कि वोटिंग मशीनों का इस्तेमाल एक विधायी शक्ति है जिसका प्रयोग केवल संसद और राज्य विधानसभाएं ही कर सकती हैं (अनुच्छेद 326 और 327) न कि निर्वाचन आयोग।

सुनवाई के दौरान निर्वाचन आयग ने सुप्रीम कोर्ट के सामने लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम-1951 की धारा 59 और चुनाव संचालन नियम- 1961 के नियम 49 का भी हवाला दिया। धारा 59 कहती है- 'वोट मतपत्र द्वारा उस तरह से ही डाले जाएंगे जैसा बताया गया है।' आगे नियम कहता है कि चुनाव आयोग 'मतदान से जुड़ा निर्देश देने के लिए एक अधिसूचना प्रकाशित कर सकता है और अधिसूचना में निर्दिष्ट मतदान केंद्रों पर मतपत्र द्वारा मतदान अथवा निर्धारित पद्धति का पालन किया जाएगा।'

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान मतदान के लिए 'निर्धारित पद्धति' की व्याख्या करते हुए कहा कि इसका आशय मतपत्र का इस्तेमाल था न कि वोटिंग मशीन का। अदालत ने यह भी साफ किया कि 'मतपत्र' शब्द का मतलब उसी का इस्तेमाल है और ऐसे में वोटिंग मशीनों के माध्यम से मतदान नहीं किया जा सकता है। अदालत ने कहा केंद्र को इस मामले में नियम बनाने का अधिकार है और वह मशीनों से मतदाने के लिए अभी तैयार नहीं है।

कोर्ट ने यह भी कहा कि अदालत ने कहा कि अगर मशीन की प्रक्रिया अपनाई जाती है तो मतदाताओं को पूर्ण और उचित प्रशिक्षण देना होगा जिसमें काफी समय लगेगा।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद क्या हुआ?

ईवीएम इस्तेमाल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद 22 मई 1984 को फिर से केरल के परूर में उन मतदान केंद्र पर उपचुनाव हुआ, जहां पहले मशीन का इस्तेमाल किया गया था। इसके बाद आए नतीजों में कांग्रेस नेता जोस ने जीत हासिल की। हालांकि, इसके बावजूद आयोग ने मशीनों के जरिए वोटिंग के विचार को नहीं छोड़ा।

बाद में साल 1988 में चुनाव कानून में संशोधन किए गए और धारा 61ए को शामिल किया गया। इसके तहत आयोग को यह अनुमति मिली कि वह उन निर्वाचन क्षेत्रों का चयन कर सकता है जहां वोट मशीनों द्वारा डाले जाएंगे। करीब एक दशक बाद मध्य प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली की 16 विधानसभा सीटों पर ईवीएम का इस्तेमाल किया गया। वहीं, 1999 में ईवीएम का इस्तेमाल 46 लोकसभा सीटों पर किया गया। इसके बाद साल 2001 में तमिलनाडु, केरल, पुडुचेरी और पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव पूरी तरह से ईवीएम के जरिए कराए गए। 2004 के लोकसभा चुनाव में पहली बार सभी 543 सीटों पर मतपत्रों की जगह ईवीएम के जरिए वोट डाले गए।

यह भी पढ़ें
Here are a few more articles:
Read the Next Article