नई दिल्लीः ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ बिल को मंगलवार लोकसभा में स्वीकार कर लिया गया। लोकसभा में इस बिल के समर्थन में 269 और विपक्ष में 198 सांसदों ने वोट किया। नई संसद में पहली बार इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम से इसके लिए वोटिंग कराई गई। इस बिल का उद्देश्य देश में लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों को एक साथ आयोजित करने की व्यवस्था लागू करना है, जिससे चुनावी खर्चों में कमी, प्रक्रिया की सरलता और समय की बचत हो सके। हालांकि, इस बिल को स्वीकार किए जाने के बाद इसे कानून बनने तक एक लंबी प्रक्रिया से गुजरना होगा, जिसमें कई संवैधानिक और कानूनी कदम उठाए जाएंगे।
‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ बिल जेपीसी में चर्चा के लिए भेजा जाएगा
अब इस बिल को संसद की संयुक्त समिति (JPC) में भेजा जाएगा, जहां विस्तृत विचार-विमर्श किया जाएगा। जेपीसी एक संसदीय समिति है, जिसमें विभिन्न दलों के सांसद होते हैं, और इसका उद्देश्य बिल के सभी पहलुओं पर गहन चर्चा करना है। जेपीसी का गठन आम तौर पर विभिन्न दलों के सांसदों की संख्या के आधार पर किया जाता है, और चूंकि भाजपा सबसे बड़ी पार्टी है, इस समिति की अध्यक्षता भाजपा सांसद द्वारा किए जाने की संभावना है।
जेपीसी समिति में सभी दलों के प्रतिनिधि बिल के विभिन्न पहलुओं पर विचार करेंगे और विशेषज्ञों से सुझाव लेंगे। इस प्रक्रिया में समय लगता है, क्योंकि जेपीसी को बिल में सुधार करने और उस पर सामूहिक सहमति बनाने के लिए पर्याप्त समय चाहिए होता है। इसके बाद, जेपीसी अपनी रिपोर्ट लोकसभा स्पीकर को सौंपेगी। अगर जेपीसी रिपोर्ट को मंजूरी देती है, तो बिल फिर संसद में पेश किया जाएगा।
लोकसभा और राज्यसभा से पारित होने के बाद संविधान संशोधन
लोकसभा से पास होने के बाद इस बिल को राज्यसभा में भेजा जाएगा, जहां इस पर बहस और मतदान होगा। यदि राज्यसभा में भी यह विधेयक पारित हो जाता है, तो इसके अगले कदम की ओर बढ़ा जाएगा। चूंकि यह एक संविधान संशोधन बिल है, इसके लिए दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है।
लोकसभा में वर्तमान में एनडीए के पास 543 में से 292 सीटें हैं, जबकि राज्यसभा में एनडीए के पास 245 में से 112 सीटें हैं। हालांकि, विपक्षी दलों के पास राज्यसभा में 85 सीटें हैं, और दो-तिहाई बहुमत के लिए उन्हें 164 सीटों की आवश्यकता है। एनडीए के सामने परेशानी ये कि इंडिया गठबंधन के सभी दल एक देश एक चुनाव के खिलाफ हैं।
बिल को राज्य विधानसभाओं से भी मंजूरी मिलनी जरूरी
दोनों सदनों से मंजूरी मिलने के साथ ही इस बिल को राज्य विधानसभाओं से भी मंजूरी मिलनी जरूरी है। क्योंकि दूसरा विधेयक संविधान में अनुच्छेद 324A पेश करेगा। यह केंद्र सरकार को लोकसभा और विधानसभा चुनावों के साथ नगर पालिकाओं और पंचायतों के साथ चुनाव कराने के लिए कानून बनाने का अधिकार देगा। स्थानीय निकायों में मतदान से जुड़े मामले राज्य के अधीन हैं। इसलिए अगर 50 प्रतिशत से अधिक राज्य विधानसभाओं में इसे मंजूरी मिलती है तो इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा, जहां द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी के बाद यह विधेयक कानून में बदल जाएगा।