क्या था नक्सलियों का ग्रुप 'पेरमिली दलम'? 39 साल बाद महाराष्ट्र के गढ़चिरौली को मिली इससे मुक्ति

पेरमिली दलम की स्थापना कुछ तेलुगू युवकों ने 1985 में की थी। यह विंग महाराष्ट्र में 14,400 वर्ग किमी में फैले नक्सल प्रभावित जिले में इन्हें रसद और अन्य सहायता देने में अहम भूमिका निभाता था।

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What was the Naxalite group 'Peramili Dalam'? Gadchiroli of Maharashtra got relief from this after 39 years

39 साल बाद महाराष्ट्र के गढ़चिरौली को 'पेरमिली दलम' से मिली मुक्ति (प्रतीकात्मक तस्वीर, IANS)

नागपुर: आखिरकार महाराष्ट्र के गढ़चिरौली को 'पेरमिली दलम' से मुक्ति मिल चुकी है। नक्सल गुट पीपल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (पीएलजीए) के गुट 'पेरमिली दलम' को खत्म करने में करीब 39 साल लग गए। जानकारों के अनुसार नक्सलियों का यह विंग पूर्वोत्तर महाराष्ट्र में 14,400 वर्ग किमी में फैले नक्सल प्रभावित जिले में इन्हें रसद और अन्य सहायता देने में अहम भूमिका निभाता था। नक्सल विरोधी अभियान में लगे कमांडो अब जंगल में पीएलजीए के हेडक्वार्टर के मुहाने तक पहुंच गए हैं और रणनीतिक तौर पर नक्सलियों से ज्यादा मजबूत स्थिति में हैं।

टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार नक्सलियों का अबूझमाड़ में स्थित एक मुख्य ग्रुप जिसे 'कंपनी 10' भी कहा जाता है, वो अब सीधे सुरक्षा बलों की पहुंच में आ गया है। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि 'पेरमिली दलम' के नियंत्रण वाला बफर जोन सुरक्षाबलों ने तोड़ दिया है। दरअसल, अबूझमाड़ छत्तीसगढ़ से लेकर महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में फैला पहाड़ी जंगली इलाका है। नक्सली इन्हीं जंगलों में छुप कर अपने अभियान को अंजाम देते आए हैं।

कई राज्यों से इस जंगल की सीमा लगने की वजह से भी नक्सलियों को फायदा मिलता रहा है। वे एक राज्य से दूसरे राज्य में आसानी से पहुंच जाते हैं। 'पेरमिली दलम' इनके लिए मुख्य तौर पर सप्लाई-चेन का काम करता था।

'पेरमिली दलम' क्या है...इसका टूटना कितनी बड़ी सफलता?

'पेरमिली दलम' की स्थापना कुछ तेलुगु युवकों ने 1985 में की थी। ये सभी युवक शिक्षित थे। अपनी स्थापना के बाद से ही पेरमिली दलम ने गढ़चिरौली को नक्सली हिंसा का केंद्र बना दिया था। यह दंडकारण्य जंगल क्षेत्र में नक्सलियों के दक्षिण गढ़चिरौली डिवीजन के तहत आने वाले पांच सशस्त्र संरचनाओं में से एक था।

गढ़चिरौली एसपी निलोत्पल के अनुसार 'पेरमिली दलम' की ताबूत में आखिरी कील सी-60 कमांडो सुरक्षाबलों ने लगाई। उन्होंने
पीएलजीए कमांडर और डिविजनल कमेटी के सदस्य वासु कोरचा को मार गिराया। इस पर 22 लाख रुपये का इनाम था। इसके अलावा दो अन्य महिला नक्सली भी इस ऑपरेशन में मारी गईं। इस ऑपरेशन को 13 मई को अंजाम दिया गया था।

इससे पहले पिछले साल दलम के कमांडर बिटलू मडावी और उसके दो सहयोगियों को पुलिस भर्ती के एक अभ्यर्थी को गोली मारने के बाद मार गिराया गया था। बिटलू की जगह वासु ने ले ली थी। इसके बाद से वासु ने इस इलाके में भामरागढ़ के जंगलों में दबदबा बना लिया था।

8 युवकों ने मिलकर बनाया था 'पेरमिली दलम'

पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार 'पेरमिली दलम' का गठन आठ सदस्यों ने किया था। इनमें देवन्ना उर्फ देवूजी की मुख्य भूमिका थी। इसके अलावा गंगना को उपप्रमुख नियुक्त किया गया था। खुफिया और सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसार देवूजी संभावित रूप से अभी नक्सलियों के सेंट्रल मिलिट्री कमिशन का प्रमुख है। वह पीएलजीए के लिए लड़ाकों को तैयार करता है और उन्हें प्रशिक्षण देता है। इसके अलावा वह हमले के लिए योजनाओं को तैयार करने और सुरक्षा बलों का मुकाबला करने के लिए तकनीक के इस्तेमाल में भी अहम भूमिका निभाता है।

80 के दशक की शुरुआत में तत्कालीन एकीकृत आंध्र प्रदेश के विद्रोही गुटों ने 'पेरमिली दलम' का नेतृत्व करने के लिए गढ़चिरौली में अपना आधार बनाया। ये अक्सर माओवादी थिंक-टैंकों को महाराष्ट्र की ओर से अबूझमाड़ तक ले जाया करते थे। पुलिस सूत्रों के अनुसार साल 1991 में महाराष्ट्र के खाद्य और औषधि मंत्री धर्मराव बाबा अत्राम के अपहरण में भी 'पेरमिली दलम' की अहम भूमिका थी।

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