नई दिल्लीः कथित दिल्ली शराब घोटाले में तिहाड़ जेल से बाहर आने के बाद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने रविवार अपनी इस्तीफे की बात कहकर सबको हैरान कर दिया। लोगों में यह सवाल उठने लगा कि जब जेल के भीतर थे, तब उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया लेकिन जैसे ही बाहर आए, अगले दिन अचानक से सीएम पद छोड़ने का निर्णय क्यों ले लिया और इस्तीफा देना ही है तो उन्होंने दो दिन का वक्त क्यों लिया?
पार्टी सूत्रों की मानें तो इसके पीछे की एक खास वजह रही है। इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि केजरीवाल का यह कदम भ्रष्टाचार के आरोपों और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की गिरफ्तारी के चलते नैतिक ऊँचाई को वापस प्राप्त करने की कोशिश है।
एक पार्टी नेता ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “भ्रष्टाचार के आरोपों और गिरफ्तारियों की चर्चा ने हमें और हमारे समर्थकों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि शायद इन आरोपों में कुछ सच्चाई हो। केजरीवाल की राजनीति का मूल भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस है। और इस स्थिति को सुधारने के लिए यह कदम उठाना जरूरी था।”
जेल में रहते केजरीवाल ने क्यों नहीं दिया इस्तीफा?
लेकिन केजरीवाल ने यह कदम जेल में रहते क्यों नहीं उठाया? नेता ने कहा कि केजरीवाल ने जेल में रहते हुए इस्तीफा नहीं दिया, ताकि यह संदेश जाए कि वह अपनी लड़ाई जारी रखेंगे। उसने कहा कि ‘जेल में रहते हुए इस्तीफा न देना एक राजनीतिक निर्णय था। बीजेपी-नेतृत्व वाले केंद्र का यही उद्देश्य था कि वह इस्तीफा दे दें। केजरीवाल ने जमानत मिलने और जेल से बाहर आने के बाद खुद इस्तीफा देने का फैसला किया।’
बकौल सूत्र- यह निर्णय उनके व्यक्तिगत विचारों पर आधारित है, न कि केवल एक राजनीतिक रणनीति। यह एक जोखिम भरा कदम है, लेकिन यह एक व्यक्तिगत निर्णय भी है जो उन्होंने अपनी शर्तों पर लिया है।
अरविंद केजरीवाल अपने सिविल लाइंस आधिकारिक आवास को भी छोड़ने के लिए तैयार हैं, जिसके रेनोवेशन के कारण विवादों में थे। बीजेपी ने इस पर अनियमितताओं और अत्यधिक खर्च का आरोप लगाया है जिसकी जांच चल रही है और अब तक तीन इंजीनियरों को निलंबित किया जा चुका है।
जब नए सीएम की घोषणा होनी ही है तो जल्दी चुनाव क्यों?
केजरीवाल ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के साथ ही नवंबर में दिल्ली का चुनाव कराने की मांग भी की है। हालांकि, पार्टी के कुछ सदस्यों के बीच यह सवाल उठ रहा है कि आखिर केजरीवाल जल्दी चुनाव की बात क्यों कर रहे हैं, जबकि उन्होंने नया मुख्यमंत्री नियुक्त करने की भी घोषणा कर दी है। इस विरोधाभास पर एक वरिष्ठ आप नेता ने कहा, हम तो जल्दी चुनाव चाहते हैं, लेकिन यह पूरी तरह से हमारे बस में नहीं है। हम नहीं चाहते कि जनता को परेशानी हो या कामकाज ठप हो जाए, इसलिए आप की सरकार तो बनी रहेगी।
पार्टी सूत्र ने कहा कि केजरीवाल और मनीष सिसोदिया का फिर से मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री बनने में झिझक का कारण यही है कि वो चाहते हैं कि जनता एक बार फिर उन पर विश्वास जताए और भ्रष्टाचार के टैग से छुटकारा पाए। एक अन्य नेता ने कहा कि अब चुनाव कब होंगे, ये तो चुनाव आयोग की मर्जी है। विधानसभा के कार्यकाल के आखिरी छह महीनों में चुनाव जब चाहें हो सकते हैं। अब गेंद चुनाव आयोग के पाले में है, हम तो तैयार बैठे हैं।
इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए एक पार्टी सूत्र ने कहा कि अब तक हमारे विधायक घर-घर जाकर केजरीवाल जी के लिए वोट मांग रहे थे। अब अचानक नया मुख्यमंत्री आ गया तो पूरी स्क्रिप्ट बदलनी पड़ेगी। अच्छा-खासा प्लान था, अब देखिए कैसे एडजस्ट करना होगा।
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पार्टी के अंदरूनी लोगों का कहना है कि यह विचार तब जोर पकड़ा जब शुक्रवार को केजरीवाल जमानत पर बाहर आए और शनिवार को इस पर और गहरी चर्चा की गई। शनिवार रात जब संजय सिंह के घर वरिष्ठ नेताओं को बताया गया कि केजरीवाल जी इस्तीफा देने वाले हैं, तो कई चेहरे चौंक गए। एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि वैसे, इस बात की भनक तो थी, लेकिन केवल मनीष जी को ही पूरा यकीन था कि यह होने वाला है।”
जल्दी चुनाव की संभावना पर एक अधिकारी ने बताया कि मतदाता सूची की तैयारी चल रही है और जनवरी में अंतिम अपडेट होगी। हालांकि, कुछ आप नेताओं का कहना है कि चूंकि सूची हाल ही में लोकसभा चुनाव के लिए अपडेट हुई थी, इसे तेजी से भी निपटाया जा सकता है।
विपक्ष के एंटी-बीजेपी अभियान से फायदा उठाने की कोशिश
दिल्ली विधानसभा का मौजूदा कार्यकाल फरवरी 2025 में समाप्त हो रहा है, लेकिन अरविंद केजरीवाल का नवंबर 2024 में चुनाव कराने का आह्वान महाराष्ट्र और झारखंड जैसे राज्यों के विधानसभा चुनाव कार्यक्रम से मेल खाता है।
2024 के लोकसभा चुनाव के बाद मौजूदा राजनीतिक माहौल में बीजेपी के खिलाफ असंतोष बढ़ता जा रहा है। महाराष्ट्र में बीजेपी, जो शिवसेना और अजीत पवार की एनसीपी के नेतृत्व वाली मौजूदा सरकार का हिस्सा है, कई मुद्दों पर जनता की नाराज़गी का सामना कर रही है, जिसमें मराठा आरक्षण का मामला प्रमुख है।
इसी तरह, झारखंड में भी बीजेपी झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के नेतृत्व वाले महागठबंधन को चुनौती देने की कोशिश कर रही है, लेकिन हाल के वर्षों में उसे झारखंड में अधिक सफलता नहीं मिली है। ज़मानत पर बाहर हेमंत सोरेन, झारखंड विधानसभा चुनाव से पहले विपक्ष के लिए एक और मौका हैं।
केजरीवाल चाहते हैं कि दिल्ली के चुनाव नवंबर में हों, ताकि विपक्षी राज्यों में चल रहे एंटी-बीजेपी अभियान से दिल्ली में भी फायदा उठाया जा सके।
आप पार्टी शायद व्यापक एंटी-बीजेपी भावना का लाभ उठाने की कोशिश कर रही है, जिसे महाराष्ट्र और झारखंड के चुनावों से और अधिक बढ़ावा मिलेगा। केजरीवाल का इस्तीफा और जल्दी चुनाव की मांग शायद इसी रणनीतिक समय के तहत की गई है ताकि दिल्ली की 70 सीटों वाली विधानसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ माहौल बनाया जा सके। एंटी-बीजेपी अभियान से दिल्ली चुनावों में भी आप को मजबूत विपक्षी संदेश तैयार करने में मदद मिल सकती है, जिससे पार्टी की चुनावी आवाज़ को बढ़ावा मिलेगा।
अरविंद केजरीवाल ने इस्तीफे के लिए क्यों लिया दो दिन का समय?
गौरतलब है कि रविवार पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए केजरीवाल ने कहा कि वह अगले दो दिन में अपना इस्तीफा दे देंगे। और वह कुर्सी पर तब तक नहीं बैठेंगे जब तक जनता अपना फैसला नहीं सुना देती। उन्होंने मंच से यह भी साफ कर दिया कि मनीष सिसोदिया भी दिल्ली के मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे। न ही डिप्टी सीएम और शिक्षामंत्री का पद संभालेंगे जब तक कि दिल्ली की जनता ईमानदारी का प्रमाणपत्र नहीं दे देती।
केजरीवाल द्वारा दो दिन का वक्त लेना विपक्षी पार्टियों को हजम नहीं हुआ। भाजपा सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि उन्होंने (अरविंद केजरीवाल) जो 48 घंटे का समय मांगा है, वह रहस्य में डूबा हुआ है कि वह किस लिए प्रतिस्थापन की तलाश कर रहे हैं या कुछ नियुक्तियां करने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि बाद में दिल्ली की मंत्री आतिशी ने साफ किया कि आज रविवार है और कल ईद है, इसलिए वह अगले कार्यकारी दिन, यानी मंगलवार (17 सितंबर) को इस्तीफा देंगे।