नई दिल्लीः राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार (आरवीपी) के चयन प्रक्रिया को लेकर विवाद पैदा हो गया है। दरअसल 26 सम्मानित वैज्ञानिकों ने चयन प्रक्रिया की पारदर्शिता और अंतिम सूची से तीन वैज्ञानिकों के नाम बाहर कर दिए जाने को लेकर सवाल उठाए थे। वैज्ञानिकों ने भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार (पीएसए) को इस बाबत पत्र लिखकर चिंता जताई थी।
दो हफ्ते पहले लिखे पीएसए अजय सूद को पत्र में शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार से सम्मानित वैज्ञानिकों ने पूछा था कि क्या राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार समिति (आरवीपीसी) द्वारा सुझाए गए नामों को पूरी तरह स्वीकार किया जाता है या इन्हें किसी अन्य समिति या प्राधिकरण द्वारा संशोधित किया जाता है। साथ ही, उन्होंने यह भी मांग की थी कि इन समितियों की संरचना और उनके निर्णयों के मानदंड सार्वजनिक किए जाएं।
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, अजय सूद ने इस पत्र के जवाब में कहा है कि समिति द्वारा विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री को नामों की सिफारिश की जाती है और अंतिम निर्णय मंत्री के अधिकार में होता है।
चयन प्रक्रिया के अनुसार, विषय विशेषज्ञों द्वारा चयनित नामों को शीर्ष समिति आरवीपीसी को भेजा जाता है जो प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार के नेतृत्व में कार्य करती है। इसके बाद समिति विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री को नामों की सिफारिश करता है।
हाल ही में, सरकारी वेबसाइट पर पुरस्कारों की चयन प्रक्रिया में एक नया वाक्य जोड़ा गया है, जिसमें यह स्पष्ट किया गया है कि “राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार समिति माननीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री, भारत सरकार को नामों की सिफारिश करेगा”। पहले, वेबसाइट पर केवल यह उल्लेख था कि सभी नामांकनों को समिति के समक्ष रखा जाएगा।
पीएसए ने वैज्ञानिकों को जवाब दिया है कि चयन प्रक्रिया वेबसाइट पर दी गई जानकारी के अनुसार पूरी की जा रही है। यह आरवीपी का पहला साल है, जिसमें चार श्रेणियों में 33 पुरस्कार विजेताओं की घोषणा की गई है।
किन बातों को लेकर है विवाद?
सरकार ने 7 अगस्त को पुरस्कारों की घोषणा की थी जिसके बाद शीर्ष समिति और विषय विशेषज्ञ समितियों के कुछ सदस्यों ने सरकार से यह स्पष्ट करने की मांग की थी कि किन मानदंडों के आधार पर अंतिम सूची बनाई गई और चयन के अंतिम चरण में तीन प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों को सूची से बाहर क्यों किया गया।
ये तीन वैज्ञानिक सुब्रत राजू (भौतिक विज्ञानी, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च), प्रतीक शर्मा (भौतिक विज्ञानी, भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु), और सुमन चक्रवर्ती (आईआईटी खड़गपुर) हैं, जिन्हें 2022 में इंफोसिस पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
सुब्रत राजू और प्रतीक शर्मा ने पिछले साल आईआईएससी द्वारा यूएपीए पर एक चर्चा को अंतिम समय में रद्द किए जाने की आलोचना की थी। इस चर्चा का नेतृत्व छात्र कार्यकर्ता नताशा नरवाल और देवांगना कलिता को करना था। दोनों वैज्ञानिकों ने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और भीमा कोरेगांव मामले में एनआईए की कार्रवाई पर खुले पत्रों पर हस्ताक्षर भी किए थे।