बिहार के बाढ़ संकट में नेपाल की भूमिका कितनी, क्या है समस्या का समाधान?

बिहार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अनुसार, राज्य के उत्तरी हिस्से का 73.63 प्रतिशत क्षेत्र बाढ़ संभावित है। यहां की बड़ी आबादी हर साल मानसून के दौरान बाढ़ के खतरे का सामना करती है। राज्य के 38 में से 28 जिले लगभग हर वर्ष बाढ़ की चपेट में आते हैं, जिनमें से 15 जिले सबसे गंभीर रूप से प्रभावित होते हैं।

बिहार के बाढ़ संकट में नेपाल की भूमिका कितनी, क्या है समस्या का समाधान?

बाढ़ से ग्रसित पटना का एक इलाका। (फोटो: आईएएनएस)

पटनाः दक्षिण-पश्चिम मानसून की वापसी जहां एक ओर देशभर से शुरू हो चुकी है, वहीं उत्तर प्रदेश और बिहार सहित उत्तर भारत के कई हिस्सों में हाल ही की बारिश से बाढ़ की स्थिति गंभीर हो गई है। बिहार में हालात सबसे ज्यादा खराब हैं, जहां 19 जिलों में 12 लाख से अधिक लोग बाढ़ से प्रभावित हो चुके हैं। सबसे अधिक प्रभावित जिलों में पश्चिमी चंपारण, किशनगंज, सारण, अररिया, सहरसा, मधेपुरा, गोपालगंज, शिवहर, सीतामढ़ी, सुपौल, मुजफ्फरपुर, पूर्णिया, मधुबनी, दरभंगा और कटिहार शामिल हैं।

बिहार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अनुसार, राज्य के उत्तरी हिस्से का 73.63 प्रतिशत क्षेत्र बाढ़ संभावित है। यहां की बड़ी आबादी हर साल मानसून के दौरान बाढ़ के खतरे का सामना करती है। राज्य के 38 में से 28 जिले लगभग हर वर्ष बाढ़ की चपेट में आते हैं, जिनमें से 15 जिले सबसे गंभीर रूप से प्रभावित होते हैं।

नेपाल की भूमिका और कोसी की तबाही

बिहार के बाढ़ संकट में नेपाल की भूमिका भी अहम है। कोसी नदी, जिसे "बिहार का शोक" कहा जाता है, नेपाल के हिमालय से निकलकर भारत में प्रवेश करती है। नेपाल में भारी बारिश के दौरान यह नदी अपना रौद्र रूप धारण कर लेती है और अतिरिक्त पानी भारत की ओर छोड़ दिया जाता है, जिससे बिहार में बाढ़ की स्थिति विकराल हो जाती है। कोसी में सात सहायक नदियों के मिलने से इसका जलस्तर और अधिक बढ़ जाता है, जिससे हर साल राज्य को भारी तबाही का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा, नेपाल से बहने वाली कमला बलान, बागमती, गंडक और बूढ़ी गंडक जैसी अन्य नदियां भी बिहार में बाढ़ का कारण बनती हैं।

समस्या का समाधान क्या है?

नेपाल से सटे बिहार के कई जिले—सीतामढ़ी, सुपौल, अररिया, पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, मधुबनी और किशनगंज—हर साल इस आपदा से बुरी तरह प्रभावित होते हैं। नेपाल की ऊंचाई अधिक होने के कारण वहां से बहकर आने वाला पानी बिहार के निचले इलाकों में तबाही मचाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर नेपाल में कोसी नदी पर एक बांध का निर्माण हो, तो इस समस्या का समाधान संभव हो सकता है। भारत ने कई बार इस मांग को नेपाल के सामने रखा है, लेकिन नेपाल सरकार पर्यावरणीय चिंताओं के चलते इस पर सहमत नहीं हो पाई है।

फरक्का बैराज और गंगा की गाद

बिहार में हर साल मानसून के बाद आने वाली बाढ़ का एक और प्रमुख कारण गंगा नदी पर बना फरक्का बैराज भी है। इस बैराज पर गंगा और उसकी सहायक नदियों से बहकर आई गाद जमा हो जाती है, जिससे नदियों के प्रवाह में बाधा उत्पन्न होती है और क्षेत्र में बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है। इसका परिणाम बिहार के कई हिस्सों में भयंकर बाढ़ के रूप में सामने आता है, जिससे जन-जीवन बुरी तरह प्रभावित होता है।

बिहार में हर साल आने वाली इस प्राकृतिक आपदा से निपटने के लिए दीर्घकालिक योजनाओं और नेपाल के साथ सहयोग की आवश्यकता है, ताकि बाढ़ की समस्या को स्थायी रूप से सुलझाया जा सके।

आईएएनएस इनपुट

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