क्या है GBS बीमारी जिससे पुणे में मचा हड़कंप, 73 केस आए सामने, वेंटिलेटर पर 14 मरीज

GBS या गुलैन-बेर सिंड्रोम के मामलों में पुणे में आई तेजी के बाद प्रशासन सतर्क हो गया है। केंद्र सरकार भी अपनी टीम भेज रही है।

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Bengaluru : Deserted look of the hospital wards during a nationwide strike called by the Indian Medical Association (IMA)at KC General Hospital

प्रतीकात्मक तस्वीर- IANS

पुणे: महाराष्ट्र के पुणे शहर में इन दिनों गुलैन-बेर सिंड्रोम (GBS/ Guillain-Barré syndrome) ने दहशत मचा रखी है। इस दुर्लभ बीमारी को लेकर पिछले सोमवार को पुणे के तीन अस्पतालों ने स्थानीय प्रशासन को अलर्ट भेजा था कि अचानक इस बीमारी के केस तेजी से बढ़ रहे हैं।

इस बीच शुक्रवार तक जीबीएस से पीड़ित लोगों की संख्या शहर में 73 तक पहुंच गई। इनमें से 14 मरीज वेंटिलेटर हैं और उनकी स्थिति गंभीर है। इससे पहले सोमवार तक 26 केस सामने आए थे। जीबीएस के मामलों में इस तरह की वृद्धि ने चिंता पैदा कर दी है। फिलहाल जीबीएस से पुणे में किसी की मौत की सूचना नहीं है।

जीबीएस क्या है?

गुलैन-बैरी सिंड्रोम (जीबीएस) एक दुर्लभ ऑटोइम्यून बीमारी है। यह दरअसल इंसान के इम्यून सिस्टम को ही निशाना बनाता है। इस वजह से यह बेहद खतरनाक भी साबित होता है। हालाकि, इसका इलाज समय पर शुरू होने से इससे पीड़ित हुए लोग पूरी तरह ठीक हो सकते हैं।

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार पिछले सप्ताह अस्पताल में भर्ती मरीजों में से 14 वेंटिलेटर सपोर्ट पर हैं। महाराष्ट्र में स्वास्थ्य अधिकारियों ने घर-घर जाकर सर्वे भी शुरू किया है। संक्रमण के लक्षणों की तलाश की जा रही है और जीबीएस के बारे में जागरूकता भी बढ़ाई जा रही है। अधिकारियों ने कहा कि नगरपालिका और जिला स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने दो दिनों में लगभग 7,200 घरों का सर्वेक्षण किया।

जीबीएस से हड़कंप, क्या कह रहे हैं विशेषज्ञ?

विशेषज्ञों ने बताया है कि रोगजनक बैक्टीरिया कैम्पिलोबैक्टर जेजुनी (Campylobacter jejuni) जीबीएस के लिए मुख्यतौर पर जिम्मेदार माना जाता है। इसमें रोगी की अपनी ही प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यून सिस्टम) तंत्रिकाओं पर हमला करती है।

हाल ही में कई अस्पतालों से रोगियों के मल के नमूनों में इस बैक्टीरिया के मिलने के बाद इसे इस बीमारी के फैलने की वजह माना जा रहा हैं। नए सामने आए मामलों के मुताबिक शिशु और बच्चे भी इस बीमारी से पीड़ित हैं। इसे देखते हुए बीमारी के फैलने को लेकर चिंता गहरा गई है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों और डॉक्टरों को संदेह है कि फैलाव का यह क्लस्टर 9 जनवरी को बना था, जिसमें भर्ती होने वाला पहला मरीज आठ साल का लड़का था।

केंद्र सरकार पुणे भेज रही अपनी टीम

इस बीच केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की केंद्रीय निगरानी इकाई (सीएसयू) ने पुणे में बढ़ते जीबीएस मामलों का संज्ञान लिया है। स्थानीय अधिकारियों की सहायता के लिए डॉक्टरों की एक टीम भेजने का फैसला किया गया है। बड़े अस्पतालों के साथ-साथ पुणे के कई अन्य अस्पतालों में भी ऐसे मरीजों के इलाज के लिए प्रबंध किया जा रहा है। साथ ही दवाओं का भंडारण भी किया जा रहा है।

शुक्रवार तक रिपोर्ट किए गए 73 जीबीएस रोगियों में से 44 पुणे ग्रामीण से, 11 पुणे निगम क्षेत्र में और 15 पिंपरी-चिंचवड़ नगर निगम बेल्ट से हैं। सबसे ज्यादा मरीज किर्कितवाड़ी (14), डीएसके विश्वा (8), नांदेड़ शहर (7) और खडकवासला (6) से हैं। तीन मरीज पांच साल से कम उम्र के हैं। इसके अलावा 18 मरीज छह से 15 साल के बीच के हैं। सात मरीज 60 साल से ऊपर के हैं।

गुलैन-बेर सिंड्रोम (GBS) के लक्षण क्या हैं?

जीबीएस के कई लक्षण हैं, जो आम दिखते हैं। कुछ मामलों में अलग-अलग मरीजों में लक्षण थोड़े अलग भी हो सकते हैं। पहले लक्षण में पैरों में कमजोरी या लगातार झुनझुनी महसूस होना शामिल है। यह कभी-कभी बांहों और शरीर के ऊपरी हिस्से तक फैल जाता है। कई लोगों को पीठ दर्द या हाथ-पैर में दर्द होता है।

कुछ लक्षण बदतर हो सकते हैं। कुछ मामलों में आप अपनी मांसपेशियों का बिल्कुल भी उपयोग करने में सक्षम नहीं होते हैं। मरीज लकवाग्रस्त भी जाते हैं और सांस लेना कठिन हो जाता है। आपका ब्लड प्रेशर और हृदय की कार्यप्रणाली प्रभावित होती है। कुल मिलाकर जीबीएस का लक्षण नजर आने पर इसका तुरंत इलाज किया जाना जरूरी है नहीं तो ये जानलेवा साबित हो सकता है।

कई बार जीबीएस के शुरुआती लक्षण कुछ इस तरह होते हैं, कि बीमारी समय में नहीं पकड़ आती है। वैसे, कुछ बातों पर अगर ध्यान दिया जाए तो बीमारी की गंभीरता को समझा जा सकता है। मसलन शरीर के दोनों तरफ मांसपेशियो में दर्द, महीनों के बजाय घंटों या हफ्तों में इसमें तेजी से वृद्धि, सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूइड (सीएसएफ) में प्रोटीन स्तर का बढ़ना जैसी बदलाव जीबीएस के बड़े लक्षण हैं। यहां बता दें कि सीएसएफ एक तरह का तरल पदार्थ है जो रीढ़ की हड्डी और मस्तिष्क को घेरे रहता है। लक्षण दिखने पर डॉक्टर कुछ टेस्ट की सलाह देते हैं, जिसके बाद बीमारी की पुष्टि होती है।

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