दिल्ली: भारत में हर चुनाव के बाद एग्जिट पोल (Exit polls) को लेकर लोगों में काफी दिलचस्पी रहती है। इसके सटीक होने को लेकर समय-समय पर सवाल उठते रहते हैं लेकिन ये भी सच है कि कई बार ये सही साबित हुए हैं। नतीजों के आने से पहले एग्जिट पोल के जरिए ये अनुमान लगाने की कोशिश होती है कि चुनाव कौन जीत रहा है। इस बार लोकसभा चुनाव-2024 के सात चरण खत्म होने के बाद एक जून की शाम से देश की तमाम पोल एजेंसियां और न्यूज चैनल एग्जिट पोल जारी करेंगे। आईए, जानते हैं कि एग्जिट पोल होता क्या और कैसे कराया जाता है? साथ ही इतिहास में जाकर भी ये देखने की कोशिश करेंगे कि एग्जिट पोल कब और कैसे शुरू हुआ?
Exit poll क्या होता है, कैसे कराया जाता है?
एग्जिट (exit) अंग्रेजी का शब्द है जिसका मतलब है बाहर निकलना। दरअसल, मतदाता जब वोट देकर बूथ से बाहर निकलता है तो पोल एजेंसियों के लोग उससे जानने की कोशिश करते हैं कि उसने किसे वोट दिया। साथ ही सर्वे के तौर पर कुछ और सवाल भी पूछे जा सकते हैं। मसलन मतदाता की उम्र क्या है, कौन से राजनेता बतौर पीएम उम्मीदवार या मुख्यमंत्री उम्मीदवार उसे पसंद है आदि। पोल एजेंसियां ऐसा देश भर में कई मतदान केंद्रों पर करती हैं। मतदाताओं के दिए जवाब को नोट किया जाता है और फिर इन्हें इकट्ठा कर अनुमान लगाया जाता है कि कौन सी पार्टी या उम्मीदवार कहां से चुनाव जीत रहा है। इन जवाबों के आधार पर ये भी अनुमान लगाया जाता है कि किस पार्टी को कितनी सीटें आ सकती हैं।
वोट देने के ठीक बाद मतदाता से एजेंसियां या तो फोन पर या फिर अपने लोगों को फील्ड पर भेज कर उनसे जुड़े डेटा इकट्ठा करती हैं। अब इसमें दो बातें हैं। ऐसा हो सकता है कि जिन मतदाता से जवाब लिया गया हो, वे सही जवाब दें। ऐसे में मोटामाटी अनुमान ठीक बैठता है। कई बार आपने जिस मतदाता को बतौर सैंपल चुना है, उसने सच नहीं कहा तो अनुमान गलत भी हो सकता है। इसके अलावा एग्जिट पोल की सटीकता इस बार पर भी निर्भर है कि सैंपल किस तरह का चुना गया। इसमें कितनी विविधता है और किन-किन मतदान केंद्रों से सैंपल लिए गए।
ये सबकुछ इस बात पर भी निर्भर है कि पोल एजेंसियां कितना बड़ा सैंपल साइज चुन रही हैं। पहले के एग्जिट पोल में कुछ हजार के सैंपल साइज होते थे। हालांकि, अब तकनीक के इस्तेमाल से एजेंसियां लाखों लोगों को बतौर सैंपल साइज चुनती हैं। ये 10 से 20 लाख या इससे ज्यादा भी हो सकती है। तकनीक के इस्तेमाल से इनका औसत भी निकालना आसान हो जाता है। यही वजह है अब कुछ एजेंसियां हर सीट के अनुमान को दिखाती हैं। पहले आमतौर पर केवल कुल लोकसभा सीटों के जीतने के अनुमान को ही दर्शाया जाता था।
एग्जिट पोल के लिए भारत में नियम क्या हैं?
भारत में एग्जिट पोल को लेकर निर्वाचन आयोग समय समय पर गाइडलाइंस जारी करता रहता है। एग्जिट पोल को लेकर नियम लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 126ए के तहत आते है। इसके तहत मतदान सत्र के दौरान किसी को भी एग्जिट पोल आयोजित करने और कागज, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया या किसी अन्य तरीके से परिणामों का खुलासा करने की इजाजत नहीं है।
पहले के कुछ सालों में हर चरण की वोटिंग के बाद एग्जिट पोल जारी होते थे। अब हालांकि, इसमें बदलाव कर दिया गया है। नियमों के अनुसार पहले चरण के मतदान के घंटों की शुरुआत से लेकर आखिरी चरणों के अंतिम दिन मतदान समाप्त होने के तीस मिनट बाद तक एग्जिट पोल जारी नहीं किए जा सकते हैं। इसका मकसद एग्जिट पोल को मतदाताओं को प्रभावित करने से रोकना है।
एग्जिट पोल कितना सटीक होता है, क्या गलत साबित भी होते है Exit Polls?
एग्जिट पोल चूंकी कुछ हजार या लाख मतदाताओं के जवाब पर आधारित अनुमानों का खेल है तो कई बार ये गलत भी साबित हो सकता है। हालांकि, पिछले रिकॉर्ड्स बताते हैं कि अब तकनीक और बेहतर सर्वे की वजह से नतीजे अक्सर एग्जिट पोल के आसपास आते नजर आते हैं। वैसे, फिर भी ये सटीक ही होंगे…इस बारे में शत-प्रतिशत कुछ नहीं कहा जा सकता है।
उदाहरण के तौर पर 2019 के लोकसभा चुनाव को ही लें तो ज्यादातर एग्जिट पोल सही साबित हुए थे। ज्यादातर एजेंसियों और न्यूज चैनलों ने भाजपा और एनडीए को 300 से अधिक सीटें मिलने का अनुमान जताया था। साथ ही कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए के लिए 100 के आसपास सीटें आने का अनुमान लगाया गया था। यही सही साबित हुआ।
वहीं, पश्चिम बंगाल में 2021 में हुए चुनाव के बाद आए ज्यादातक एग्जिट पोल गलत साबित हुए। कई एजेंसियों ने भाजपा को 100 से अधिक सीटें आने का अनुमान जताया था। कुछ ने तो ये भी कहा था कि भाजपा पहली बार बंगाल में सरकार बना सकती है। लेकिन भाजपा 77 सीटें ही जीत सकी और तृणमूल कांग्रेस मजबूती के साथ दुबारा सरकार बनाने में कामयाब रही। भाजपा का प्रदर्शन जरूर बेहतर रहा क्योंकि उसने 2016 के चुनाव में केवल तीन सीटें जीती थी।
ऐसे ही 2022 के हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव की बात करें तो इसमें भी ज्यादातर एग्जिट पोल गलत साबित हुए। पोल में भाजपा को बढ़त दिया गया था। हालांकि, नतीजे उलट रहे। हिमाचल प्रदेश की 68 सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस ने 40 सीटें जीती। भाजपा को 25 सीटें ही मिल सकी। दूसरी ओर कर्नाटक के 2022 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो एजेंसियों ने कांग्रेस के बेहतर प्रदर्शन की बात कही थी। इस मामले में ये अनुमान सही साबित हुए।
वहीं, छत्तीसगढ़ के 2023 के चुनाव में कांग्रेस और भाजपा में कांटे की टक्कर की बात कही गई थी। एक तरह से कांग्रेस के लिए बढ़त का अनुमान लगाया गया था लेकिन असल नतीजे भाजपा के पक्ष में आए। भाजपा ने 54 सीटें जीती और कांग्रेस को केवल 35 सीट पर जीत मिली। इसके अलावा तेलंगाना की बात करें तो यहां पिछले साल विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए ज्यादा सीट आने का अनुमान जताया गया जो सही साबित हुआ। नतीजों में कांग्रेस को 64 सीटें मिली जबकि बीआरएस (भारत राष्ट्र समिति) को 39 सीट मिलने के बाद सत्ता से बाहर होना पड़ा।
भारत में एग्जिट पोल कब से शुरू हुए?
भारत में पहली बार एग्जिट पोल 1957 में कराए गए थे। इस समय भारत का दूसरा आम चुनाव हुआ था। इस पोल को इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक ओपिनियन ने किया था। दूरदर्शन ने 1996 में देश भर में एग्जिट पोल आयोजित करने के लिए सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज की सेवा ली थी। इसके बाद लगभग हर चुनाव के बाद एग्जिट पोल करने की प्रथा शुरू हो गई। आज भारत में कई समाचार चैनल और एजेंसियां हैं जो एग्जिट पोल करती हैं।
वैसे एग्जिट पोल के इतिहास की बात करें सबसे पहली बार इसे अमेरिका में 1936 में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान कराया गया था। इसके बाद यह दुनिया के अन्य दूसरे देशों में भी लोकप्रिय होने लगा। खासकर टीवी का दौर आने के बाद इसका महत्व काफी बढ़ गया। ये बड़ी संख्या में दर्शकों को खींचने वाला कार्यक्रम है और इसलिए आज लगभग कई बड़े देशों में एग्जिट पोल किया जाता है।