दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक एनजीओ की उस याचिका पर फिलहाल विचार करने से इनकार कर दिया जिसमें चुनाव आयोग को फॉर्म 17-सी या एक बूथ पर डाले गए वोटों की कुल संख्या को प्रकाशित करने का निर्देश देने की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनाव के बीच में आयोग के लिए यह बड़ा बदलाव करना मुश्किल होगा।
जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि वह इस स्तर पर अभी ऐसा कोई निर्देश जारी नहीं कर सकती। कोर्ट ने मामले को छुट्टियों के बाद उचित पीठ के सामने सूचीबद्ध करने की बात कही। इससे पहले 17 मई को पीठ ने शुरू में मामले में हस्तक्षेप करने में अनिच्छा जाहिर की थी लेकिन चुनाव आयोग के जवाब को सुनने के लिए याचिका को सूचीबद्ध करने पर सहमति जता दी थी।
दरअसल, एनजीओ असोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और कॉमन कॉज की याचिका में चुनाव आयोग को फॉर्म 17-सी की स्कैन की गई प्रतियां अपलोड करने का निर्देश देने की मांग की गई है। आसान भाषा में समझें तो इस दस्तावेज में एक बूथ पर डाले गए वोटों की संख्या सहित कई और विवरण दर्ज रहते हैं। क्या है फॉर्म-17 सी, इसे विस्तार से समझते हैं-
Form 17C क्या है?
सुप्रीम कोर्ट में जो मामला पहुंचा है वो कंडक्ट ऑफ इलेक्शन रूल्स, 1961 के तहत फॉर्म 17सी के पहले भाग के डेटा को जल्द से जल्द जारी करने को लेकर है। इसमें कई विवरण रहते हैं। मसलन हर पोलिंग बूथ का नाम, वहां के मतदाताओं की संख्या आदि इसमें लिखा जाता है। साथ ही कितने वोट रिजेक्ट हो गए या उन मतदाताओं की संख्या जिन्हें किसी वजह से वोट नहीं देने दिया गया और कुल कितने वोट पड़े, ये सब डिटेल भी इसमें दर्ज किया जाता है। ये सबकुछ फॉर्म के पहले पार्ट में दर्ज किया जाता है। मतदान खत्म होने के बाद चुनाव अधिकारी समेत पोलिंग एजेंट्स के हस्ताक्षर भी इसमें लिए जाते हैं।
इसके बाद इसी फॉर्म का पार्ट-2 होता है, जिसका इस्तेमाल मतों की गिनती के दिन किया जाता है। यहां बूथ पर पड़े कुल वोट और फिर गिनती के बाद हर उम्मीदवार को मिले वोटों की संख्या से मिलान किया जाता है। इस संख्या को फॉर्म पर लिखा जाता है। इससे किसी तरह की धांधली या वोटों की संख्या गलत बताने आदि की संभावना कम हो जाती है।
कोर्ट से क्या मांग की गई थी?
याचिकाकर्ताओं की मांग थी कि चुनाव आयोग को फॉर्म-17C के पहले पार्ट के डेटा को मतदान खत्म होने के 48 घंटे के भीतर जारी करना चाहिए। याचिका में कहा गया था कि जारी लोकसभा चुनाव के अगले चरण से चुनाव आयोग को ऐसा करने के लिए निर्देशित किया जाए। हालांकि, कोर्ट ने कहा कि सात चरण के चुनाव में पांच चरण के मतदान हो चुके हैं और दो हफ्ते से भी कम समय के अंदर नतीजे आने हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर गौर करते हुए 17 मई को चुनाव आयोग से इस संबंध में जवाब भी मांगा था। आयोग ने 22 मई को अपना हलफनामा दाखिल किया। आयोग ने अपने जवाब में कहा था कि वेबसाइट पर हर मतदान केंद्र के मतदान का आंकड़ा सार्वजनिक करने से भ्रम की स्थिति पैदा होगी।
आयोग ने देरी से मतदान प्रतिशत की जानकारी देने के सवाल पर कहा कहा था कि पूरी जानकारी देना और फॉर्म 17सी को सार्वजनिक करने का कोई कानून आधार नहीं है। आयोग ने कहा था कि इससे चुनाव के बीच आंकड़ों की तस्वीरों को मॉर्फ किया जा सकता है।